देहरादून: पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) की धूम है. क्या मंदिर, क्या गिरजाघर और क्या मस्जिद...तमाम जगहों पर राष्ट्रीयता का प्रतीक भारत का ध्वज (flag of India) लहराता दिखाई दे रहा है. रुड़की में भी आज बेहद खूबसूरत नजारा देखने को मिला है. यहां सैकड़ों की तादाद में मुस्लिम समाज के लोगों ने हाथों में झंडा लेकर एकता का पैगाम दिया.
भारत माता की जय, हिंदुस्तान जिंदाबाद और जय हिंद के नारों के साथ मुस्लिम समाज (Muslim society) ने आजादी के अमृत महोत्सव के इस पावन अवसर पर एक स्वर में भारत की एकता के लिए प्रार्थना (prayer for unity of india) की. ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1857 में तहरीक-ए-रेशमी रुमाल (tehreek e Reshmi Rumal movement) का हेड क्वार्टर रहे रहमानियां मदरसा रुड़की में आजादी का ये अमृत महोत्सव मनाया गया.
बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स (BJP State Spokesperson Shadab Shams) के नेतृत्व में रहमानियां मदरसा में मौलाना अरशद सहित सैकड़ों धर्मगुरुओं और छात्रों ने भारत माता की जय नारे लगाते हुए तिरंगा यात्रा निकाली. सैकड़ों की तादात में हाथों में भारतीय ध्वज लिए मुस्लिम समाज के लोग रुड़की बाजार से होते हुए शहर में दाखिल हुए. इस यात्रा का जगह-जगह लोगों ने स्वागत किया. शादाब शम्स का कहना है कि देश आजादी का 75वां दिवस मना रहा है. ऐसे में हर तबका और हर धर्म के लोग इस उत्सव में शामिल हैं.
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क्या है तहरीक-ए-रेशमी रुमाल: बता दें कि, आजादी के आंदोलन में प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद का अहम योगदान रहा है. यहीं से 'तहरीक-ए-रेशमी रुमाल' आंदोलन (tehreek e Reshmi Rumal movement) शुरू हुआ था. दरअसल, रुमाल पर आंदोलन के गुप्त संदेश लिखकर इधर से उधर भेजे जाते थे ताकि अंग्रेजों को खबर न लगे. आजादी की लड़ाई लड़ने वाले महान क्रांतिकारी मौलाना महमूद हसन (deoband leader Maulana Mahmood Hasan) ने तहरीक रेशमी रुमाल आंदोलन शुरू किया था. रुड़की स्थित रहमानियां मदरसे में इस आंदोलन की मुख्य रणनीतियां बनाई गई थीं.
गौर हो कि, मौलाना महमूद हसन देवबंदी शेखुल हिंद का जन्म 1851 में दारुल उलूम देवबंद के संस्थापक सदस्य मौलाना जुल्फिकार अली देवबंदी के यहां रायबरेली में हुआ था. 6 मई 1866 को दारुल उलूम देवबंद की स्थापना के समय शेखुल हिंद दारुल उलूम देवबंद के पहले छात्र बने थे. वर्ष 1905 में उन्होंने दारुल उलूम की बागडोर संभाली थी. 1916 में रेशमी रुमाल आंदोलन अपने चरम पर रहा. ये देखकर अंग्रेजों ने शेखुल हिंद मौलाना महमूद हसन को उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया और चार सालों तक रोम सागर के मालटा टापू के जंगी कैदखानों में रखा. सजा के बाद शेखुल हिंद हिंदुस्तान पहुंचे तथा महात्मा गांधी से मिलकर आजादी की लड़ाई को नया आयाम दिया. भारत सरकार ने साल 2013 में उनके रेशमी रूमाल आंदोलन के नाम पर डाक टिकट जारी किया.