देहरादून: ग्राम पंचायत देश के बुनियादी विकास की सबसे छोटी और अहम कड़ी होती है. पंचायत स्तर पर विकास को मजबूत करने के लिए ग्राम पंचायत स्तर से जिला पंचायत तक प्रतिनिधियों का चुनाव करवाया जाता है, जिससे कि यह प्रतिनिधि बुनियादी विकास की सबसे छोटी इकाई की आवाज को शासन और प्रशासन तक पहुंचा सके लेकिन उत्तराखंड में आंकड़े कुछ और ही तस्दीक दे रहे हैं.
पंचायत जनाधिकार मंच के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 12 जिलों में पंचायत चुनाव सम्पन्न होने के दो वर्ष बीत जाने के बाद अभी तक करीब 5021 पद रिक्त हैं. उत्तराखंड सरकार ने इन पर अभी तक चुनाव करवाने को लेकर जहमत नहीं उठाई है, जबकि नियमानुसार अब तक पंचायत स्तर पर 4 उपचुनाव हो जाने चाहिए थे, जिससे कि इस पदों को भरा जा सकता था.
पंचायत जनाधिकार मंच के प्रदेश संयोजक व प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट का कहना है कि प्रदेश में 2019 में पंचायत चुनाव संपन्न हुए थे, जिसमें से कई पद पंचायत स्तर पर ग्राम प्रधानों के गलत आरक्षण के कारण खाली रह गए थे. बिष्ट ने बताया कि मंच के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड के 12 जिलों में हरिद्वार को छोड़कर 125 ग्राम प्रधानों के पद गलत आरक्षण के कारण खाली हैं, तो अन्य कारणों से कुल 177 पद ग्राम प्रधानों के रिक्त हैं. इसके साथ ही 26 क्षेत्र पंचायत सदस्य और 2 जिला पंचायत सदस्यों के पद प्रदेश में रिक्त हैं. इसके साथ ही 4816 ग्राम पंचायत सदस्यों के पद खाली हैं.
जोत सिंह बिष्ट ने बताया कि 2019 में पंचायत चुनाव सम्पन्न होने के बाद खाली पदों के लिए नियमानुसार जून 2020, दिसम्बर 2020, जून 2021 और दिसम्बर 2021 में चुनाव हो जाने थे, लेकिन प्रदेश सरकार ने कोविड काल का हवाला देते हुए इस खाली पदों पर चुनाव नहीं करवाया, जो कि देश के बुनियादी विकास की सबसे छोटी इकाई के साथ कुठाराघात है. क्योंकि जब विधानसभा या संसद के उपचुनाव 6 माह के भीतर करवाए जाते हैं, तो ग्राम पंचायत के साथ यही नियम होने के बावजूद भी सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है.
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कोर्ट जाने की बात कही: बिष्ट ने बताया कि पंचायत जनाधिकार मंच की और से राज्य निर्वाचन आयुक्त से इन खाली पदों पर हरिद्वार पंचायत चुनाव के साथ ही प्रक्रिया पूरी करने की मांग की गई है. अगर इसके बाद भी कार्रवाई नहीं होती है तो कोर्ट की शरण में जाने को मजबूर होना पड़ेगा.