देहरादून: आज विश्व जनसंख्या दिवस है. हर साल की तरह इस साल भी जनसंख्या नियंत्रण का संकल्प लिया जा रहा है. बावजूद इसके दिनों-दिन दुनिया भर में आबादी बढ़ रही है. आज विश्वभर में जनसंख्या साढ़े सात अरब के पार पहुंच चुकी है. वहीं बात अगर पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की करें तो यहां हर बीतते दिन के साथ पहाड़ी जिलों में आबादी कम होती जा रही है. उत्तराखंड में लिंगानुपात की मौजूदा तस्वीर को भी बहुत ज्यादा बेहतर नहीं कहा जा सकता है. मौजूदा आंकड़ें इसकी तस्वीर बयां कर रहे हैं.
प्रदेश में सामाजिक लिहाज से जनसंख्या घनत्व का बढ़ना कुछ हद तक तो संतोषजनक है, जबकि आर्थिक लिहाज से दिनों-दिन बढ़ती जनसंख्या का ग्राफ भविष्य के लिए अच्छा नजर नहीं आता. प्रदेश के विकास की दृष्टि से देखें तो जनसंख्या का बढ़ता ग्राफ एक निश्चित अनुपात में संतोषजनक कहा जा सकता है.
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इसके साथ भौगोलिक परिस्थितियां भी जनसंख्या घनत्व के सन्तुलन में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. अब सवाल यह है कि एक सीमित संख्या के आधार पर ही, हम विकसित देश की परिकल्पना कर सकते हैं, इसके लिए जहां सामाजिक जन जागरूकता बहुत अहम है. वहीं, सरकारी सिस्टम को आर्थिक ढांचे को भी और मजबूत करना ही उतना आवश्यक है.
बढ़ती जनसंख्या पर विशेषज्ञ चिंतित
उत्तराखंड के विशेषज्ञ बढ़ती जनसंख्या को लेकर खासे चिंतित नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी तेजी से बढ़ती रही तो 2021 में होने वाली जनगणना के आंकड़े हैरान करने वाले हो सकते हैं. वो दिन दूर नहीं जब भारत विश्व में जनसंख्या के मामले पर पहले पायदान पर पहुंच जायेगा. यही वजह है कि 'विश्व जनसंख्या दिवस' का भारत के लिए विशेष महत्व है.
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विशेषज्ञ मानते हैं कि आज दुनिया के हर विकासशील और विकसित देश जनसंख्या विस्फोट से चिंतित हैं. लिहाजा तेज गति से बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार निरंतर प्रयास भी कर रही हैं.
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जनसंख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने की है जरूरत
भले ही बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के सरकार लाख दावे करती हो लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. अगर सरकारें समय रहते बढ़ती जनसंख्या के प्रति समाज को जागरूक करने में सफल हो जाती हैं, तो मानव समाज की नई पीढ़ियों के लिए यह सबसे बेहतर प्रयास होगा. इससे भविष्य में बच्चों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, वातावरण सहित अन्य बेहतर सुविधाए दी जा सकेंगी.
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पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में मैदानी क्षेत्रो में बढ़ी आबादी
उत्तराखंड की जनसंख्या देखें तो साल 2001 में हुई जनगणना के सापेक्ष साल 2011 में हुई जनगणना में 18.81 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड राज्य के 3 जिले देहरादून, उधमसिंह नगर, हरिद्वार मैदानी क्षेत्रों में आते हैं तो वहीं बाकी 10 जिले पहाड़ी क्षेत्रों में शामिल हैं. लिहाजा, आबादी के अनुसार देखा जाए तो साल 2001 से साल 2011 के दौरान तीनों मैदानी जिलों में करीब 30 से 33 फीसदी तक जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है. वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों के 2 जिले, पौड़ी और अल्मोड़ा ऐसे भी हैं जहां की जनसंख्या में करीब 1 से डेढ़ फीसदी तक की कमी आयी है.
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मैदानी क्षेत्रों में बढ़ रही जनसंख्या खड़ी कर सकती है परेशानी
उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार जय सिंह रावत बताते हैं कि एक ओर शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी पहाड़ी क्षेत्रों में जनसंख्या घट रही है. हालांकि, साल 2011 में भी जनगणना के अनुसार उत्तराखंड के दो पहाड़ी जिले पौड़ी और अल्मोड़ा में 2001 की जनगणना के सापेक्ष जनसंख्या में कमी आई है. ऐसे में जब 2021 में जनगणना होगी तो उस दौरान उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थिति और विपरीत नजर आएगी.
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जिस तरह से उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में सुविधाओं के अभाव के चलते पलायन हुआ है, ऐसे में 2021 की जनगणना में पहाड़ी क्षेत्रों जनसंख्या घटना लाजमी है. यही नहीं, उत्तराखंड राज्य के मैदानी क्षेत्र देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर में जनसंख्या का दबाव भी बढ़ता जा रहा है जो आने वाले समय में परेशानी का सबब बन सकता है.
उत्तराखंड में जनसंख्या की स्थिति
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल जनसंख्या 84,89,349 थी. वहीं साल 2011 में हुई जनगणना में जनसंख्या में 18.81 फीसदी का उछाल देखा गया. जिसके बाद कुल जनसंख्या बढ़कर 1,00,86,292 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार उत्तरकाशी जिले में कुल जनसंख्या 2,95,013 थी. वहीं 2011 में ये संख्या 11.89 फीसदी बढ़कर 3,30,086 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार चमोली जिले में कुल जनसंख्या 3,70,359 थी. वहीं 2011 में ये संख्या 5.74 फीसदी बढ़कर 3,91,605 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार टिहरी गढ़वाल जिले में कुल जनसंख्या 6,04,747 थी. वहीं 2011 में ये संख्या 2.35 फीसदी बढ़कर 6,18,931 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार देहरादून जिले में कुल जनसंख्या 12,82,143 थी. वहीं 2011 में ये संख्या 32.33 फीसदी बढ़कर 16,96,694 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार पौड़ी गढ़वाल जिले में कुल जनसंख्या संख्या 6,97,078 थी. वहीं 2011 में इसमें 1.41 फीसदी की कमी देखी गयी, जिसके बाद पौड़ी गढ़वाल की जनसंख्या 6,87,271 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार रुद्रप्रयाग जिले में कुल जनसंख्या 2,27,439 थी. वहीं 2011 में ये संख्या 6.53 फीसदी बढ़कर 2,42,285 हो गयी थी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार पिथौरागढ़ जिले में कुल जनसंख्या 4,62,289 थी. वहीं 2011 में ये संख्या 4.58 फीसदी बढ़कर 4,83,439 हो गई.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार अल्मोड़ा जिले की कुल जनसंख्या 6,30,567 थी. वहीं 2011 में इस आबादी में 1.28 फीसदी की कमी देखी गयी. जिसके बाद अल्मोड़ा की जनसंख्या 6,22,506 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार नैनीताल जिले की कुल जनसंख्या 7,62,909 थी.वहीं 2011 में ये आबादी 25.13 फीसदी बढ़कर 9,54,605 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार बागेश्वर जिले की कुल जनसंख्या 2,49,462 थी. जो 2011 में 4.18 फीसदी बढ़कर 2,59,898 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार चम्पावत जिले की कुल जनसंख्या 2,24,542 थी, जो 2011 में 15.63 फीसदी बढ़कर 2,59,648 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार उधमसिंह नगर जिले की कुल जनसंख्या 12,35,614 थी, जो 2011 में 33.45 फीसदी बढ़कर 16,48,902 हो गयी.
- साल 2001 में हुई जनगणना के अनुसार हरिद्वार जिले की कुल जनसंख्या 14,47,187 थी, जो साल 2011 में 30.63 फीसदी बढ़कर 18,90,422 हो गयी.
बढ़ रही जनसंख्या की वजह से दुनिया में है भारत की पूछ
वहीं, समाज शास्त्र की असिस्टेंट प्रो. अर्चना पाल ने बताया कि बढ़ती जनसंख्या से जहां कई नुकसान है तो फायदा भी है. बढ़ती जनसंख्या के कारण ही भारत दुनिया में अलग-स्थान रखता है. जिसके कारण भारत की पूछ होती है. बढ़ती जनसंख्या के कारण भारत में बड़ा बाजार है. जिसके कारण हर कोई देश यहां निवेश करना चाहता है. इसके अलावा बढ़ी जनसंख्या के कारण भारत में मैन पावर की कोई कमी नहीं है. जिसके कारण यहां सस्ते दाम पर मजदूर उपलब्ध हो जाते हैं. जिसके कारण भी कई देश भारत की ओर रुख करते हैं.
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बढ़ती जनसंख्या घटा रही है क्वालिटी ऑफ लाइफ
जिस तरह से भारत में जनसंख्या वृद्धि हो रही है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि आने वाले समय में भारत विश्व में जनसंख्या के मामले में पहले पायदान पर पहुंच जाएगा. भारत में बढ़ रही लगातार जनसंख्या देशवासियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है. बढ़ती जनसंख्या की वजह से जो यहां के लोगों की क्वालिटी ऑफ लाइफ पर गहरा असर पड़ेगा. साथ ही इससे यहां के लोगों में सेविंग या फिर निवेश करने की क्षमता पर भी फर्क पड़ता है. जब देश की जनसंख्या बढ़ती है तो पर कैपिटा इनकम घटती चली जाती है. यही नहीं, सीमित संसाधन के चलते लोगों को रोजगार भी नहीं मिल पाते. जिसके कारण बेरोजगारी के हालात पैदा होते हैं.
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कुल मिलाकर देखा जाये तो बढ़ती जनसंख्या न भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की एक बड़ी परेशानी है. जिस पर किस तरह से काबू किया जाये विचार किया जा रहा है. इसी के नतीजे के रूप में विश्व भर में 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज सभी को जरूरत है कि बढ़ती जनसंख्या के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करें. सभी राजनीतिक दल को जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून को बनवाने में मदद करें, ताकि जनता को बेरोजगारी, स्वास्थ्य, पर्यावरण और शिक्षा समेत अन्य प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिल सके.