देहरादून: देश-दुनिया में भारतीय सेना अत्याधुनिक हथियार या गोला बारूद नहीं, बल्कि अपनी हिम्मत जज़्बे और हौसले के लिए जानी जाती है. जो रणभूमि में दुश्मनों को नाको चने चबवा देती है. प्रथम विश्व युद्ध के वीर सैनिक गब्बर सिंह नेगी देश के उन वीर सपूतों में शामिल हैं. जिनकी वीरता ने का लोहा पूरी दुनिया ने माना और उन्होंने देश-दुनिया में भारतीय सेना का मान बढ़ाया है. यही वजह है कि अंग्रेजों ने उन्हें मरणोपरांत ब्रितानी हुकूमत के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा. ईटीवी भारत आज आपको गब्बर सिंह नेगी के जन्मदिन के मौके पर उनकी वीरगाथा से रूबरू करवाने जा रहा है. जिसने गोरों को भी उनका कायल कर दिया था. देखिए खास रिपोर्ट...
गब्बर सिंह की वीरगाथा
गब्बर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड में टिहरी जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. गब्बर सिंह नेगी महज 18 साल की उम्र में अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो गए. अक्टूबर 1913 में गब्बर सिंह ने गढ़वाल रायफल में बतौर रायफलमैन अपनी ज़िम्मेदारी सम्भाली. भर्ती होने के कुछ ही समय बाद गढ़वाल रायफल के सैनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेजा गया. युद्ध भूमि में सामने जर्मन की अत्याधुनिक हथियारों से लैस जर्मन सेना मौजूद थी, गब्बर सिंह नेगी ने जर्मन सेना की बड़ी टुकड़ी के सामने अकेले ही मोर्चा संभाल रखा था. 1915 में न्यू शैपल में काफी देर तक चले संघर्ष के बाद जर्मन सेना के हमले से गब्बर सिंह नेगी बुरी तरह से घायल हो गए और 20 साल की अल्पायु में शहीद हो गए. मरणोपरांत गब्बर सिंह को ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित गया. इतना ही नहीं सबसे कम उम्र में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले शहीद भी गब्बर सिंह नेगी ही थे.
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बता दें कि 21 अप्रैल को पूरे उत्तराखंड में गब्बर सिंह का जन्मदिन पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर उनके गृह नगर चम्बा में गढ़वाल रायफल के द्वारा पूरे सैन्य सम्मान के साथ उन्हें श्रद्धांजली दी जाती है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी आज गब्बर सिंह को श्रद्धांजली देते हुए ट्वीट किया और उनकी बहादुरी को नमन किया. रायफलमैन गब्बर सिंह नेगी की वीरता के लिए अंग्रेजों ने उन्हें ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रास से भी नवाज़ा गया. यह सम्मान उन्हें प्रथम विश्व युद्ध में उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत दिया गया. इसी सम्मान ने भारतीय सेना की बहादुरी को जगजाहिर भी किया है.