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जांबाज गब्बर सिंह नेगी की वीरता की कहानी, जर्मन सेना से लोहा लेते हुए 20 साल की अल्पायु में हो गये थे शहीद

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Published : Apr 22, 2019, 12:05 AM IST

प्रथम विश्व युद्ध के वीर सैनिक गब्बर सिंह नेगी देश के उन वीर सपूतों में शामिल हैं. जिनकी वीरता ने का लोहा पूरी दुनिया ने माना और उन्होंने देश-दुनिया में भारतीय सेना का मान बढ़ाया है.

जाबांज गब्बर सिंह नेगी की वीरता

देहरादून: देश-दुनिया में भारतीय सेना अत्याधुनिक हथियार या गोला बारूद नहीं, बल्कि अपनी हिम्मत जज़्बे और हौसले के लिए जानी जाती है. जो रणभूमि में दुश्मनों को नाको चने चबवा देती है. प्रथम विश्व युद्ध के वीर सैनिक गब्बर सिंह नेगी देश के उन वीर सपूतों में शामिल हैं. जिनकी वीरता ने का लोहा पूरी दुनिया ने माना और उन्होंने देश-दुनिया में भारतीय सेना का मान बढ़ाया है. यही वजह है कि अंग्रेजों ने उन्हें मरणोपरांत ब्रितानी हुकूमत के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा. ईटीवी भारत आज आपको गब्बर सिंह नेगी के जन्मदिन के मौके पर उनकी वीरगाथा से रूबरू करवाने जा रहा है. जिसने गोरों को भी उनका कायल कर दिया था. देखिए खास रिपोर्ट...

जानकारी देते सैन्य अधिकारी.

गब्बर सिंह की वीरगाथा
गब्बर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड में टिहरी जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. गब्बर सिंह नेगी महज 18 साल की उम्र में अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो गए. अक्टूबर 1913 में गब्बर सिंह ने गढ़वाल रायफल में बतौर रायफलमैन अपनी ज़िम्मेदारी सम्भाली. भर्ती होने के कुछ ही समय बाद गढ़वाल रायफल के सैनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेजा गया. युद्ध भूमि में सामने जर्मन की अत्याधुनिक हथियारों से लैस जर्मन सेना मौजूद थी, गब्बर सिंह नेगी ने जर्मन सेना की बड़ी टुकड़ी के सामने अकेले ही मोर्चा संभाल रखा था. 1915 में न्यू शैपल में काफी देर तक चले संघर्ष के बाद जर्मन सेना के हमले से गब्बर सिंह नेगी बुरी तरह से घायल हो गए और 20 साल की अल्पायु में शहीद हो गए. मरणोपरांत गब्बर सिंह को ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित गया. इतना ही नहीं सबसे कम उम्र में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले शहीद भी गब्बर सिंह नेगी ही थे.

martyr gabbar singh negi
गब्बर सिंह नेगी की मूर्ति.

ये भी पढ़ेंः वार्ड बढ़ने से नगर निगम की बढ़ीं मुश्किलें, चरमराई सफाई व्यवस्था

बता दें कि 21 अप्रैल को पूरे उत्तराखंड में गब्बर सिंह का जन्मदिन पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर उनके गृह नगर चम्बा में गढ़वाल रायफल के द्वारा पूरे सैन्य सम्मान के साथ उन्हें श्रद्धांजली दी जाती है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी आज गब्बर सिंह को श्रद्धांजली देते हुए ट्वीट किया और उनकी बहादुरी को नमन किया. रायफलमैन गब्बर सिंह नेगी की वीरता के लिए अंग्रेजों ने उन्हें ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रास से भी नवाज़ा गया. यह सम्मान उन्हें प्रथम विश्व युद्ध में उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत दिया गया. इसी सम्मान ने भारतीय सेना की बहादुरी को जगजाहिर भी किया है.

देहरादून: देश-दुनिया में भारतीय सेना अत्याधुनिक हथियार या गोला बारूद नहीं, बल्कि अपनी हिम्मत जज़्बे और हौसले के लिए जानी जाती है. जो रणभूमि में दुश्मनों को नाको चने चबवा देती है. प्रथम विश्व युद्ध के वीर सैनिक गब्बर सिंह नेगी देश के उन वीर सपूतों में शामिल हैं. जिनकी वीरता ने का लोहा पूरी दुनिया ने माना और उन्होंने देश-दुनिया में भारतीय सेना का मान बढ़ाया है. यही वजह है कि अंग्रेजों ने उन्हें मरणोपरांत ब्रितानी हुकूमत के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा. ईटीवी भारत आज आपको गब्बर सिंह नेगी के जन्मदिन के मौके पर उनकी वीरगाथा से रूबरू करवाने जा रहा है. जिसने गोरों को भी उनका कायल कर दिया था. देखिए खास रिपोर्ट...

जानकारी देते सैन्य अधिकारी.

गब्बर सिंह की वीरगाथा
गब्बर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड में टिहरी जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. गब्बर सिंह नेगी महज 18 साल की उम्र में अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो गए. अक्टूबर 1913 में गब्बर सिंह ने गढ़वाल रायफल में बतौर रायफलमैन अपनी ज़िम्मेदारी सम्भाली. भर्ती होने के कुछ ही समय बाद गढ़वाल रायफल के सैनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेजा गया. युद्ध भूमि में सामने जर्मन की अत्याधुनिक हथियारों से लैस जर्मन सेना मौजूद थी, गब्बर सिंह नेगी ने जर्मन सेना की बड़ी टुकड़ी के सामने अकेले ही मोर्चा संभाल रखा था. 1915 में न्यू शैपल में काफी देर तक चले संघर्ष के बाद जर्मन सेना के हमले से गब्बर सिंह नेगी बुरी तरह से घायल हो गए और 20 साल की अल्पायु में शहीद हो गए. मरणोपरांत गब्बर सिंह को ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित गया. इतना ही नहीं सबसे कम उम्र में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले शहीद भी गब्बर सिंह नेगी ही थे.

martyr gabbar singh negi
गब्बर सिंह नेगी की मूर्ति.

ये भी पढ़ेंः वार्ड बढ़ने से नगर निगम की बढ़ीं मुश्किलें, चरमराई सफाई व्यवस्था

बता दें कि 21 अप्रैल को पूरे उत्तराखंड में गब्बर सिंह का जन्मदिन पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर उनके गृह नगर चम्बा में गढ़वाल रायफल के द्वारा पूरे सैन्य सम्मान के साथ उन्हें श्रद्धांजली दी जाती है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी आज गब्बर सिंह को श्रद्धांजली देते हुए ट्वीट किया और उनकी बहादुरी को नमन किया. रायफलमैन गब्बर सिंह नेगी की वीरता के लिए अंग्रेजों ने उन्हें ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रास से भी नवाज़ा गया. यह सम्मान उन्हें प्रथम विश्व युद्ध में उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत दिया गया. इसी सम्मान ने भारतीय सेना की बहादुरी को जगजाहिर भी किया है.

feed ftp se bheji hai...
folder name- uk_ddn_21 april 2019_Gabbar singh

स्लग- गब्बर की वीरता के अंग्रेज भी कायल
रिपोर्ट- Naveen uniyal
देहरादून।
एंकर- 
भारतीय सेना का लोहा पूरी दुनिया मानती है... इसकी वजह भारतीय सेना के अत्याधुनिक हथियार या गोला बारूद नहीं ,, बल्कि हर जवान की हिम्मत जज़्बा और वो हौसला है जो रणक्षेत्र में ख़ाली हाथ भी हथियारों से लैस दुश्मन को नाकों चने चबवा देता है/ गढ़वाल राइफल के गब्बर सिंह नेगी भी उन्हीं वीर सपूतों में शामिल हैं जिनकी वीरता ने दुनिया में भारतीय सेना को का मान बढ़ाया है। यूं तो गब्बर सिंह किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं लेकिन आज हम आपको गब्बर सिंह की उस बहादुरी के बारे में बतायेंगे जिसने अंग्रेजों को भी उनका कायल कर दिया।

गब्बर सिंह की वीरगाथा

एक छोटे से गांव से निकले गब्बर सिंह नेगी महज़ 18 साल की उम्र में अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए और अक्टूबर 1913 में गब्बर सिंह ने गढ़वाल रायफल में भर्ती होकर बतौर रायफलमैन अपनी ज़िम्मेदारी सम्भाली इस दौरान 2014 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रजों ने गब्बर सिंह  की बटालियन को युद्ध लड़ने के लिए फ्रांस भेज दिया। जहां जर्मन सेना से आमने-सामने की लड़ाई में गब्बर सिंह ने अपनी ऐसी वीरता को दिखाया की अंग्रेज सेना भी रायफलमैन गब्बर की कायल हो गई। युद्ध भूमि में सामने जर्मन की अत्याधुनिक हथियारों से लैस सेना मौजूद थी और दुनिया जीतने की तरफ बढ़ रही थी,,, लेकिन जर्मन सेना के इस हौसले को भी गब्बर सिंह की बहादुरी ने चुनौति दे दी और जर्मन सेना की बड़ी टुकड़ी के सामने अकेले ही मोर्चा संभाले रखा,,,, काफी देर मोर्चा संभालने और जर्मन की सेना को नुकसान पहुंचाने के बाद गब्बर सिंह नेगी बुरी तरह से घायल हो गये लेकिन इस दौरान सीना छलनी होने के बादजूद भी गब्बर सिंह डटे रहे और जर्मन सेना के कई जवानों को मार गिराया जिसके बाद वह खुद भी वीरगती को प्राप्त हो गये।

बाइट- पी.सी. थपलियाल, पूर्व सैन्य अधिकारी

21 अप्रैल को पूरे उत्तराखंड में गब्बर सिंह का जन्मदिन पूरे धूमधाम से मनाया जाता है और उनके गृह नगर चम्बा में गढ़वाल रायफल के द्धारा उन्हें पूरे सैन्य सम्मान के साथ श्रद्धांजली दी जाती है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी आज गब्बर सिंह को श्रद्धांजली देते हुए ट्वीट किया और गब्बर सिंह की बहादुरी को नमन किया। गब्बर सिंह नेगी से जुड़ी खास बात ये भी है की इस रायफलमैन को ब्रिटिश के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रास से  भी नवाज़ा गया है यह सम्मान उन्हें प्रथम विश्व युद्ध में उनकी वीरता के लिए मरणोउपरांत दिया गया है और इसी सम्मान ने भारतीय सेना की बहादुरी को पूरी दुनिया में जग-ज़ाहिर भी किया है।

बाइट- पी.सी. थपलियाल, पूर्व सैन्य अधिकारी

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