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मसूरी में मरोज पर्व की धूम, हरुल व लोक गीतों पर जमकर थिरके लोग

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Published : Jan 14, 2020, 7:35 PM IST

मसूरी में लोग मरोज पर्व के जश्न में डूबे हैं. इस मौके पर लोगों ने पंचायती आंगन में हारुल व लोक गीतों पर जमकर नृत्य किया. एक-दूसरे के घर जाकर बधाई दी, साथ ही व्यंजनों का लुत्फ उठाया.

mussoorie news
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मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी समेत पूरा जौनसार बावर मरोज माघ पर्व के जश्न में डूब गया है. पर्व पर लोगों ने एक दूसरे की खूब मेहमाननवाजी की. वहीं, लोगों ने पंचायती आंगन में हरुल व लोक गीतों पर जमकर तांदी नृत्य किया. महापर्व के जश्न में बूढ़े, महिलाएं एवं पुरुषों ने पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य कर समा बांधा.

बता दें, जौनसार बाबर में मरोज पर्व पर बकरे की बलि देने के बाद पूरे महीने जश्न मनाने की परंपरा है. सदियों से चली आ रही यह परंपरा क्षेत्र में आज तक कायम है. जौनपुर रमाई और जौनसार बावर के प्रवासियों का मरोज त्योहार मनाने के लिए अपने गांव पहुंच रहे हैं. प्राचीन काल से मरोज त्योहार मनाने की परंपरा है जो पूरे मार्च माह के दौरान ग्रामीण दावत के साथ आनंद लेते हैं.

मरोज पर्व के जश्न में डूबी पहाड़ों की रानी.

बंगलों की कांडी गांव के निवासी जबर वर्मा ने बताया कि सभी परिवार लगभग एक साल पहले से ही मरोज के लिए बकरा पालन शुरू करते हैं. मरोज त्योहार मनाने के लिए एक मान्यता के अनुसार जौनपुर रामायण और जौनसार बावर के निवासी खुद को पांडवों का वंशज मानते हैं. हर गांव में एक पांडव का मंदिर है, जो इसका पुख्ता प्रमाण है. कोई भी त्योहार मनाने से पहले पांडव मंदिर में पूजा होती है.

मान्यता के अनुसार पांडव जुएं में कौरवों से जब द्रोपदी को हार गए थे तो दुःशासन और दुर्योधन ने द्रोपदी का चीर हरण किया था. तब द्रौपदी ने सभा में अपने केस खोलते हुए शपथ ली थी कि दुःशासन को मार कर खून से केस धोने के बाद अपने केश को बाधूंगी. मरोज त्योहार के दिन घर की वरिष्ठ महिला बकरा काटने के बाद ही पूजा-अर्चना करने के बाद अपने केस बंधती हैं.

पढ़ें- हरदा का अनोखा अंदाज, महिलाओं संग किया झोड़ा-चाचरी डांस

पहली मान्यता

माघ के पूरे माह तक मनाए जाने वाले मरोज का त्योहार कुछ क्षेत्रों में 11 और 12 जनवरी को मनाया गया, जबकि 13 जनवरी को कुल देवी को बकरे की बलि चढ़ाई गई. पूरे माघ महीने मनाए जाने वाले मरोज त्योहार के लिए घर से बाहर रहने वाले लोग अपने गांव पहुंचने लगे हैं. वहीं आज (14 जनवरी) को ब्राह्मण परिवारों की ओर से खिचड़ी त्योहार मनाया गया. इसके साथ ही सभी गांव में घर-घर में सामूहिक नृत्य गीत गाने गाए गये.

दूसरी मान्यता

दूसरी मान्यता यह है कि एक समय जौनसार क्षेत्र में नरभक्षी किरमिर राक्षस का दहशत था जो कि प्रतिदिन एक व्यक्ति का भक्षण करता था. इस पर क्षेत्र के लोगों ने नरभक्षी राक्षस से छुटकारा पाने के लिए महासू देवता की पूजा अर्चना की. जिसके बाद महासू देवता के निर्देश पर सेनापति कैलू देवता व शेडकुड़िया देवता ने 27 गते पूस माह को किरमिर राक्षस का वध किया था. इसके बाद से ही पूरे जौनपुर और जौनसार में माघ के महा में मरोज का त्यौहार मनाया जाता है. मरोज त्योहार में विवाहित महिलाओं को मायके पक्ष की ओर से विशेष आमंत्रण देकर उनकी खातिरदारी की जाती है. इसके साथ ही ग्रामीण पूरे महीने भर सामूहिक रूप से तांदी व रासो नृत्य कर गीत गाते हैं.

मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी समेत पूरा जौनसार बावर मरोज माघ पर्व के जश्न में डूब गया है. पर्व पर लोगों ने एक दूसरे की खूब मेहमाननवाजी की. वहीं, लोगों ने पंचायती आंगन में हरुल व लोक गीतों पर जमकर तांदी नृत्य किया. महापर्व के जश्न में बूढ़े, महिलाएं एवं पुरुषों ने पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य कर समा बांधा.

बता दें, जौनसार बाबर में मरोज पर्व पर बकरे की बलि देने के बाद पूरे महीने जश्न मनाने की परंपरा है. सदियों से चली आ रही यह परंपरा क्षेत्र में आज तक कायम है. जौनपुर रमाई और जौनसार बावर के प्रवासियों का मरोज त्योहार मनाने के लिए अपने गांव पहुंच रहे हैं. प्राचीन काल से मरोज त्योहार मनाने की परंपरा है जो पूरे मार्च माह के दौरान ग्रामीण दावत के साथ आनंद लेते हैं.

मरोज पर्व के जश्न में डूबी पहाड़ों की रानी.

बंगलों की कांडी गांव के निवासी जबर वर्मा ने बताया कि सभी परिवार लगभग एक साल पहले से ही मरोज के लिए बकरा पालन शुरू करते हैं. मरोज त्योहार मनाने के लिए एक मान्यता के अनुसार जौनपुर रामायण और जौनसार बावर के निवासी खुद को पांडवों का वंशज मानते हैं. हर गांव में एक पांडव का मंदिर है, जो इसका पुख्ता प्रमाण है. कोई भी त्योहार मनाने से पहले पांडव मंदिर में पूजा होती है.

मान्यता के अनुसार पांडव जुएं में कौरवों से जब द्रोपदी को हार गए थे तो दुःशासन और दुर्योधन ने द्रोपदी का चीर हरण किया था. तब द्रौपदी ने सभा में अपने केस खोलते हुए शपथ ली थी कि दुःशासन को मार कर खून से केस धोने के बाद अपने केश को बाधूंगी. मरोज त्योहार के दिन घर की वरिष्ठ महिला बकरा काटने के बाद ही पूजा-अर्चना करने के बाद अपने केस बंधती हैं.

पढ़ें- हरदा का अनोखा अंदाज, महिलाओं संग किया झोड़ा-चाचरी डांस

पहली मान्यता

माघ के पूरे माह तक मनाए जाने वाले मरोज का त्योहार कुछ क्षेत्रों में 11 और 12 जनवरी को मनाया गया, जबकि 13 जनवरी को कुल देवी को बकरे की बलि चढ़ाई गई. पूरे माघ महीने मनाए जाने वाले मरोज त्योहार के लिए घर से बाहर रहने वाले लोग अपने गांव पहुंचने लगे हैं. वहीं आज (14 जनवरी) को ब्राह्मण परिवारों की ओर से खिचड़ी त्योहार मनाया गया. इसके साथ ही सभी गांव में घर-घर में सामूहिक नृत्य गीत गाने गाए गये.

दूसरी मान्यता

दूसरी मान्यता यह है कि एक समय जौनसार क्षेत्र में नरभक्षी किरमिर राक्षस का दहशत था जो कि प्रतिदिन एक व्यक्ति का भक्षण करता था. इस पर क्षेत्र के लोगों ने नरभक्षी राक्षस से छुटकारा पाने के लिए महासू देवता की पूजा अर्चना की. जिसके बाद महासू देवता के निर्देश पर सेनापति कैलू देवता व शेडकुड़िया देवता ने 27 गते पूस माह को किरमिर राक्षस का वध किया था. इसके बाद से ही पूरे जौनपुर और जौनसार में माघ के महा में मरोज का त्यौहार मनाया जाता है. मरोज त्योहार में विवाहित महिलाओं को मायके पक्ष की ओर से विशेष आमंत्रण देकर उनकी खातिरदारी की जाती है. इसके साथ ही ग्रामीण पूरे महीने भर सामूहिक रूप से तांदी व रासो नृत्य कर गीत गाते हैं.

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मसूरी और आसपास के संपूर्ण जौनपुर और जौनसार बाबर मरोज माघ पर्व के जश्न में डूब गया परंपरा अनुसार मरोज त्योहार पर बकरे काटने के बाद घर घर में दावतों का दौर शुरू हो गया है लोगों ने पर्व के शुरू होते ही एक दूसरे की खूब मेहमान नवाजी की वहीं लोगों ने पंचायती आंगन में हरुल व लोक गीतों पर जमकर तांदी नृत्य किया महापर्व के जश्न में बूढ़े क्या जवान महिलाएं एवं पुरुषों ने पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य कर समा बांधा बता दें कि जौनसार बाबर में मरोज के बकरे काटने के बाद पूरे महीने जश्न मनाने की परंपरा है सदियों से चली आ रही यह परंपरा क्षेत्र में आज तक कायम है जौनपुर रमाई और जौनसार बावर के प्रवासियों का मनोज त्योहार मनाने के लिए अपने गांव को लौटना शुरू हो गए प्राचीन काल से मरोज त्यौहार मनाने की परंपरा है जो पूरे मार्च माह के दौरान ग्रामीण इस मरोज त्यौहार का दावत के साथ आनंद लेते है


Body:मसूरी के बंगलो की कांडी गांव के ग्रामीण जबर वर्मा ने बताया कि प्रत्येक परिवार लगभग 1 साल पहले से ही मरोज के लिए बकरा पालन शुरू करते हैं मरोज त्योहार मनाने के लिए एक मान्यता के अनुसार जौनपुर रामायण और जौनसार बावर के निवासी अपने आपको पांडवों का वंश मानते हैं और हर गांव में एक पांडव का मंदिर है जो इसका पुख्ता प्रमाण है प्रत्येक त्योहार मनाने से पहले पांडव मंदिर में पूजा होती है मान्यता के अनुसार पांडव जुए में कौरवों से जब द्रोपति को हार गए थे तो दुशासन और दुर्योधन ने द्रोपदी का चीर हरण किया था और द्रौपदी ने सभा मैं अपने केस खोलते हुए शपथ ली थी कि दुशासन को मार के खून से केस धोने के बाद अपने केश को बनाएगी मरोज त्यौहार के दिन घर की वरिष्ठ महिला बकरा काटने के बाद ही पूजा-अर्चना करने के बाद अपने केस की वेणी गूथे है माघ के पूरे माह तक मनाए जाने वाले मरोज का त्यौहार कुछ क्षेत्रों में 11 और 12 जनवरी को मनाया जाता है जबकि 13 जनवरी को कुल देवी को बकरे की बलि चढ़ाई पूरे माघ महीने मनाए जाने वाले मरोज त्योहार के लिए देश परदेश में रहने वाले प्रवासी लोग भी अपने गांव को आने लगे हैं 14 जनवरी को ब्राह्मण परिवारों की ओर से खिचड़ी त्योहार मनाया जाता है इसके साथ ही सभी गांव में घर-घर में सामूहिक नृत्य गीत गाने गाए जाते हैं मान्यता के अनुसार जौनसार क्षेत्र में एक बार में नरभक्षी किर मिर राक्षस का दहशत थी जो कि प्रतिदिन एक व्यक्ति का भाषण करता था इस पर क्षेत्र के लोगों ने नरभक्षी केयर मेल राक्षस के अंत से मुक्त दिलाने के लिए महासू देवता पूजा अर्चना की इस पर महासू देवता के निर्देश पर सेनापति कैलू देवता व शेडकुड़िया देवता ने 27 गते पूस माह को किरमिर राक्षस का वध किया था इसके बाद से ही पूरे जौनपुर और जौनसार में माघ के महा में मरोज का त्यौहार मनाया जाता है मरोज त्योहार में विवाहित महिलाओं को मायके पक्ष की ओर से विशेष आमंत्रण देकर उनकी खातिरदारी की जाती है इसके साथ ही ग्रामीण पूरे महीने भर सामूहिक रूप से तांदी व रासो नृत्य कर गीत गाते हैं


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