देहरादून: 10 मार्च का दिन भारतीय जनता पार्टी के लिए खुशियों से भरा रहा. क्योंकि भाजपा ने 5 राज्यों में से 4 प्रदेशों में पूर्ण बहुमत के साथ शानदार वापसी की है. इसी के साथ ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर भाजपा ने मिथक को भी तोड़ दिया. हालांकि, इन सबके बीच सीएम पुष्कर सिंह धामी का खटीमा सीट से चुनाव हार जाना सबको चौंकाने वाला रहा. जिसके बाद से सीएम फेस को लेकर चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं.
धामी के चुनाव हारने के बाद से कयास लगाया जा रहा है कि देवभूमि में किसी और को सीएम बनाया जा सकता है, लेकिन कई पार्टी विधायकों ने पुष्कर धामी के लिए अपना समर्थन जताया है. इतना ही नहीं, उन्होंने धामी के चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट भी छोड़ने की भी बात कही है. पार्टी में कई ऐसे विधायक हैं, जो धामी को एक बार फिर से सीएम बनाना चाहते हैं. रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा ने कहा कि यदि राष्ट्रीय नेतृत्व पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाता है तो वो उनके चुनाव लड़ने के लिए रुड़की सीट छोड़ने को तैयार हैं. पुष्कर धामी रुड़की विधानसभा से 20 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल करेंगे.
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भाजपा प्रदेश मीडिया मनवीर सिंह राणा ने कहा कि चंपावत विधायक कैलाश गहतोड़ी और कपकोट विधायक सुरेश गड़िया के बाद अब भाजपा के चार और विधायकों ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट छोड़ने की पेशकश की है. आधा दर्जन विधायक सीएम के लिए अपनी सीट छोड़ने को तैयार. गौरतलब है कि रामनगर से विधायक दीवान सिंह बिष्ट और काशीपुर से नवनिर्वाचित विधायक त्रिलोक सिंह चीमा की भी पसंद धामी हैं. चीमा का कहना है कि राज्य को धामी जैसा ऊर्जावान और युवा सीएम मिलना चाहिए.
वहीं, अरविंद पांडे ने पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनाने का समर्थन किया है. उन्होंने कहा है कि सीएम पुष्कर धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड में भाजपा बहुमत के साथ जीती है. इसलिए अगर वह दोबारा मुख्यमंत्री बनते हैं, तो इस पर कोई भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए. वहीं, राज्य में नये मुख्यमंत्री के सवाल पर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा जब पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी जीती है तो केवल उनकी हार मात्र से उन्हें रिजेक्ट करना सही नहीं होगा. उनके हार जाने का सीधा मतलब यह है कि उन्होंने पूरे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने में मेहनत की है. इसलिए वह अपनी विधानसभा पर ध्यान नहीं दे पाए. पुष्कर सिंह धामी ऊर्जावान युवा हैं. पार्टी को चाहिए कि उन्हें एक बार फिर मौका दे.
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ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि धामी चुनाव हार कर भी अपने विधायकों और नेताओं के दिलों को जीतने में कामयाब रहे हैं. तभी तो पार्टी में उनके समर्थन में लगातार आवाजें बुलंद हो रही है. धामी के समर्थन में खड़े पार्टी नेताओं की वजह उनका सरल स्वभाव, स्वच्छ छवि और सबको तालमेल के साथ लेकर चलना है. जिसकी वजह से महज 6 माह के कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े एतिहासिक फैसले लिए जो ना सिर्फ पार्टी की जीत की वजह बनी, बल्कि पार्टी में उनका कद भी बढ़ा गया.
जिस वक्त सीएम धामी की हाथ में उत्तराखंड की कमान सौंपी गई थी, उस वक्त उनके पास महज 6 माह का कार्यकाल शेष बचा था, जिसमें पार्टी नेताओं की नाराजगी, सरकार के प्रति एंटीकंबेंसी और विपक्ष के आरोपों से उन्हें पार निकलना था. जब धामी सीएम बने उस समय पूरे प्रदेश में आशा, टीईटी शिक्षक, सचिवालय संघ, उपनलकर्मी की हड़ताल से लेकर देवस्थानम बोर्ड के गठन से चारधाम पुरोहितों की नाराजगी चरम पर थी, लेकिन धामी ने धीरे-धीरे हर मुद्दों को बड़े ही शांति के साथ निपटा दिया.
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जहां सीएम पुष्कर धामी ने आशा कार्यकर्ताओं का वेतनमान बढ़ाया, वहीं सरकारी कर्मचारियों का गोल्डन कार्ड की समस्या हल करवाई. इसके साथ ही कई विभागों में सैंकडों रिक्तियां निकालकर सरकार के विरोध में उठे स्वर को भी कम कर दिया. इसके अलावा देवस्थानम बोर्ड के मुद्दे पर जो पुरोहितों ने सरकार से आर-पार की लड़ाई ठान रखी थी, उस देवस्थानम बोर्ड को भंग कर पुरोहितों की भी नाराजगी को खत्म कर दिया.
धामी सभी मंत्री, विधायक और पार्टी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चले, जिसकी वजह से आज वो अपनोंं के चहेते बने हुए हैं. यही वजह है कि धामी के चुनाव हारने के बावजूद पार्टी के कई विधायक और नेता उन्हें भावी सीएम के रूप में स्वीकारने को तैयार हैं. ऐसे में अब देखना दिलस्चप होगा कि क्या पार्टी हाईकमान किसी दूसरे चेहरे को मौका देती है या फिर से धामी के नाम पर मुहर लगाती है.