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लॉकडाउन प्रकृति के साबित हुआ मुफीद, सबक लेने की जरूरत

लॉकडाउन प्रकृति के मुफीद साबित हुआ है. इस दौरान वातावरण से साथ-साथ नदियां भी शुद्ध हुईं हैं. लेकिन एक बार फिर से स्थिति पहले की तरह होने जा रही है. ऐसे में पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों ने मामले को गंभीरता से लेकर सबक लेने की बात कह रहे हैं.

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लॉकडाउन प्रकृति के साबित हुआ मुफीद
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Published : Jun 7, 2020, 10:59 PM IST

देहरादूनः वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से बचाव को लेकर लागू देशव्यापी लॉकडाउन से जहां एक ओर आम जनता और देश की आर्थिकी को बड़ा नुकसान पहुंचा है. वहीं, दूसरी ओर प्रकृति पर इसका परिवर्तन भी देखने को मिला है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस आपदा से कुछ नहीं सीखे तो प्रकृति में आए इस परिवर्तन का फायदा ज्यादा दिनों तक नजर नहीं आएगा. आखिर प्रकृति के इस परिवर्तन से कैसे आर्थिक लाभ पहुंचा है और क्यों प्रकृति में आया परिवर्तन ज्यादा दिनों तक नजर नहीं आएगा? देखिए ETV Bharat की स्पेशल रिपोर्ट.

कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने संपूर्ण लॉकडाउन किया था. उस दौरान आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों और दुकानों को छोड़ सभी लोग घरों में कैद हो गए थे. जिसका सीधा असर प्रकृति-पर्यावरण पर देखने को मिला. लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण ना सिर्फ पूरी तरह से स्वच्छ हो गया, बल्कि गंगा भी पूरी तरह से साफ और पारदर्शी हो गई. इतना ही नहीं इस बार फायर सीजन में भी जंगलों में आगजनी की मामले काफी कम दर्ज किए गए हैं.

लॉकडाउन प्रकृति के साबित हुआ मुफीद.

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कुछ ही समय तक बरकरार रहेगा प्रकृति में आया परिवर्तन
लॉकडाउन की वजह से प्रकृति में आया परिवर्तन कुछ ही समय तक रहेगा. जी हां, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि लॉकडाउन के चलते उत्तराखंड समेत अन्य जगहों का हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम इम्प्रूव तो हो गया है, लेकिन प्रकृति में आए इस परिवर्तन का असर ज्यादा समय तक दिखाई नहीं देगा.

हालांकि, इस लॉकडाउन का फायदा यह हुआ है कि हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम में सुधार हो गया है. ऐसे में अब पृथ्वी और पर्यावरण की लिमिट्स को समझने की जरूरत है. साथ ही बताया कि हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से व्यवहार करता है, जिसका समाधान भी अलग-अलग हैं.

प्रकृति में आए परिवर्तन से सबक लेने की जरूरत
वैज्ञानिक प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि जिस तरह से इस लॉकडाउन के दौरान प्रकृति में परिवर्तन देखने को मिला है. इससे साफ जाहिर है कि प्रकृति सबसे ऊपर है. लिहाजा, प्रकृति में आए इस परिवर्तन का लाभ हमें लंबे समय तक मिलता रहे, इससे सीख लेने की जरूरत है. क्योंकि, जिस तरह से प्रकृति को ताक पर रखकर विकास कार्यों को किया जा रहा है, ऐसे में प्रकृति के साथ बैलेंस बनाने की जरूरत है.

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अनलॉक से प्रकृति पर पड़ रहा है असर
वैज्ञानिकों का तर्क है कि अपनी रोजाना गतिविधियों और आर्थिक विकास को तो नहीं रोक सकते हैं, लेकिन अब फिर से हम पुरानी चीजों पर वापस जा रहे हैं. ऐसे में अब इस लॉकडाउन पीरियड से प्रकृति में आए बदलाव से कुछ सबक लेने की जरूरत है. जिससे प्रकृति को बैलेंस रखा जा सके. इतना ही नहीं अब अनलॉक पीरियड के दौरान फिर से चीजें सामान्य होने लगी है. लिहाजा, हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम पर फिर से वही असर पड़ना शुरू हो जाएगा.

प्रकृति के इस परिवर्तन से आर्थिकी को पहुंचा है लाभ
वहीं, पर्यावरणविद पद्मश्री अनिल जोशी ने बताया कि लॉकडाउन से ना सिर्फ आर्थिकी को नुकसान पहुंचा है, बल्कि इस लॉकडाउन की वजह से ही प्रकृति में परिवर्तन देखने को मिला है. प्रकृति में आए इस परिवर्तन से आर्थिकी को कितना फायदा पहुंचा है, यह अभी तक आंका नहीं जा सका है और ना ही इसकी कोई गणना है.

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि गंगा को साफ करने, पर्यावरण को स्वच्छ रखने में राज्य और केंद्र सरकार, करोड़ों रुपये खर्च करती है. बावजूद इसके वह पर्यावरण को स्वच्छ रखने में नाकाम ही साबित होती है, लेकिन करीब डेढ़ महीने के संपूर्ण लॉकडाउन ने प्रकृति-पर्यावरण को पूरी तरह से स्वच्छ कर दिया है.

देहरादूनः वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से बचाव को लेकर लागू देशव्यापी लॉकडाउन से जहां एक ओर आम जनता और देश की आर्थिकी को बड़ा नुकसान पहुंचा है. वहीं, दूसरी ओर प्रकृति पर इसका परिवर्तन भी देखने को मिला है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस आपदा से कुछ नहीं सीखे तो प्रकृति में आए इस परिवर्तन का फायदा ज्यादा दिनों तक नजर नहीं आएगा. आखिर प्रकृति के इस परिवर्तन से कैसे आर्थिक लाभ पहुंचा है और क्यों प्रकृति में आया परिवर्तन ज्यादा दिनों तक नजर नहीं आएगा? देखिए ETV Bharat की स्पेशल रिपोर्ट.

कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने संपूर्ण लॉकडाउन किया था. उस दौरान आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों और दुकानों को छोड़ सभी लोग घरों में कैद हो गए थे. जिसका सीधा असर प्रकृति-पर्यावरण पर देखने को मिला. लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण ना सिर्फ पूरी तरह से स्वच्छ हो गया, बल्कि गंगा भी पूरी तरह से साफ और पारदर्शी हो गई. इतना ही नहीं इस बार फायर सीजन में भी जंगलों में आगजनी की मामले काफी कम दर्ज किए गए हैं.

लॉकडाउन प्रकृति के साबित हुआ मुफीद.

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कुछ ही समय तक बरकरार रहेगा प्रकृति में आया परिवर्तन
लॉकडाउन की वजह से प्रकृति में आया परिवर्तन कुछ ही समय तक रहेगा. जी हां, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि लॉकडाउन के चलते उत्तराखंड समेत अन्य जगहों का हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम इम्प्रूव तो हो गया है, लेकिन प्रकृति में आए इस परिवर्तन का असर ज्यादा समय तक दिखाई नहीं देगा.

हालांकि, इस लॉकडाउन का फायदा यह हुआ है कि हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम में सुधार हो गया है. ऐसे में अब पृथ्वी और पर्यावरण की लिमिट्स को समझने की जरूरत है. साथ ही बताया कि हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से व्यवहार करता है, जिसका समाधान भी अलग-अलग हैं.

प्रकृति में आए परिवर्तन से सबक लेने की जरूरत
वैज्ञानिक प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि जिस तरह से इस लॉकडाउन के दौरान प्रकृति में परिवर्तन देखने को मिला है. इससे साफ जाहिर है कि प्रकृति सबसे ऊपर है. लिहाजा, प्रकृति में आए इस परिवर्तन का लाभ हमें लंबे समय तक मिलता रहे, इससे सीख लेने की जरूरत है. क्योंकि, जिस तरह से प्रकृति को ताक पर रखकर विकास कार्यों को किया जा रहा है, ऐसे में प्रकृति के साथ बैलेंस बनाने की जरूरत है.

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अनलॉक से प्रकृति पर पड़ रहा है असर
वैज्ञानिकों का तर्क है कि अपनी रोजाना गतिविधियों और आर्थिक विकास को तो नहीं रोक सकते हैं, लेकिन अब फिर से हम पुरानी चीजों पर वापस जा रहे हैं. ऐसे में अब इस लॉकडाउन पीरियड से प्रकृति में आए बदलाव से कुछ सबक लेने की जरूरत है. जिससे प्रकृति को बैलेंस रखा जा सके. इतना ही नहीं अब अनलॉक पीरियड के दौरान फिर से चीजें सामान्य होने लगी है. लिहाजा, हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम पर फिर से वही असर पड़ना शुरू हो जाएगा.

प्रकृति के इस परिवर्तन से आर्थिकी को पहुंचा है लाभ
वहीं, पर्यावरणविद पद्मश्री अनिल जोशी ने बताया कि लॉकडाउन से ना सिर्फ आर्थिकी को नुकसान पहुंचा है, बल्कि इस लॉकडाउन की वजह से ही प्रकृति में परिवर्तन देखने को मिला है. प्रकृति में आए इस परिवर्तन से आर्थिकी को कितना फायदा पहुंचा है, यह अभी तक आंका नहीं जा सका है और ना ही इसकी कोई गणना है.

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि गंगा को साफ करने, पर्यावरण को स्वच्छ रखने में राज्य और केंद्र सरकार, करोड़ों रुपये खर्च करती है. बावजूद इसके वह पर्यावरण को स्वच्छ रखने में नाकाम ही साबित होती है, लेकिन करीब डेढ़ महीने के संपूर्ण लॉकडाउन ने प्रकृति-पर्यावरण को पूरी तरह से स्वच्छ कर दिया है.

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