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Fake Documents in Politics: फर्जी दस्तावेजों ने नौकरी ही नहीं 'नेतागिरी' की भी खोली राह, पढ़ें पूरा खेल

उत्तराखंड में फर्जीवाड़ा कर नौकरियां ही नहीं पाई जा रही हैं, बल्कि नेता भी इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. पंचायत चुनाव में कई नेताओं ने 10वीं की फर्जी डिग्री बनवा कर चुनाव लड़ा है. इस बात का खुलासा पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र बिष्ट ने किया. पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र बिष्ट की शिकायत पर ही पुलिस ने फर्जी दस्तावेज बनाने वालों की गिरेबां में हाथ डाला है.

Fake Documents in Politics:
फर्जी दस्तावेजों ने नौकरी ही नहीं 'नेतागिरी' की भी खोली राह
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Published : Feb 4, 2023, 8:56 PM IST

उत्तराखंड में फर्जी दस्तावेजों के सहारे हो रही नेतागिरी.

देहरादून: उत्तराखंड में फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी नौकरी पाने के कई मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए न केवल नौकरियां पाई जा रही हैं. बल्कि सफेदपोश नेतागिरी करने के लिए भी ऐसे ही फर्जीवाड़े का इस्तेमाल कर रहे हैं. राज्य में केवल युवा ही फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी एजेंसियों की आंखों में धूल नहीं झोंक रहे हैं. बल्कि, सफेदपोश भी फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर खुद को नेतागिरी में जिंदा रखे हुए हैं.

दरअसल, कुछ दिन पहले ही पुलिस ने 10वीं और 12वीं के फर्जी सर्टिफिकेट तैयार करने वाले गिरोह के एक सदस्य को गिरफ्तार किया था. हैरानी की बात यह है कि देहरादून शहर के घंटाघर के पास दफ्तर खोलकर पांचवीं पास एक व्यक्ति इस काम को लंबे समय से कर रहा था. यूं तो इन फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए सरकारी नौकरी पाने की बात कही गई, लेकिन हकीकत यह है कि कई नेता भी खुद को राजनीति में बनाए रखने के लिए इन्हीं फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.

पढे़ं- बनना था हीरो बन गया पेपर लीक मास्टरमाइंड, जानें हाकम का बावर्ची से अकूत संपत्ति तक का सफर

पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि उनकी पंचायत में ही एक प्रतिनिधि ने इसी गिरोह से अपना सर्टिफिकेट बनवाया था. यह मामला कोर्ट में अभी विचाराधीन भी है. उन्होंने कहा ऐसे ही कई नेता पंचायतों में होने वाले चुनाव के लिए ऐसे गिरोह से संपर्क साध कर अपने सर्टिफिकेट बनवाते हैं. जिसके बाद पंचायत में नियम कानूनों को धता बताते हुए चुनाव लड़ते हैं.

दरअसल, पंचायतों में चुनाव लड़ने के लिए 10वीं पास होना जरूरी है. पिछले दिनों ही राज्य सरकार ने इस नियम को लागू करते हुए पंचायतों में कई नेताओं की नेतागिरी पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए थे. सरकार के नए नियमों का तोड़ भी आसानी से इन नेताओं ने निकाल लिया. नेताओं ने इसके लिए फर्जी और बिना रजिस्ट्रेशन वाले इन संस्थाओं का सहारा लिया. जिसके जरिए ये दसवीं के सर्टिफिकेट बनवा कर चुनाव में उतरते हैं.

पढे़ं- Uttarakhand Patwari Paper Leak: युवाओं का फूटा गुस्सा, हरिद्वार में UKPSC कार्यालय का घेराव

वैसे इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि जब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकारी नौकरियां पाने में युवा कामयाब हो रहे हैं तो पंचायत विभाग को ऐसे सर्टिफिकेट दिखाकर मूर्ख बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. पूर्व जिला पंचायत सदस्य ने साफ किया है कि यदि पुलिस उनकी मदद लेती है तो वह सब मामलों का खुलासा करेंगे. बता दें जिस गिरोह को पुलिस ने शिकंजे में लिया है, वह कार्रवाई पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र बिष्ट की शिकायत पर ही हुई है.

हालांकि, पुलिस अभी पूरे गिरोह को नहीं पकड़ पाई है. इतना ही नहीं जिन लोगों ने सर्टिफिकेट बनवाए उन लोगों की पहचान भी अभी तक नहीं हो पाई है. पंचायतों में फर्जीवाड़ा करते हुए फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर चुनाव लड़ने वालों पर जब निदेशक पंचायती राज बंशीधर तिवारी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा वैसे तो चुनाव के दौरान ऐसे फर्जी दस्तावेजों को लेकर शिकायत मिलने पर फौरन कार्रवाई की जाती है. यदि इस मामले में अब किसी तरह की कोई शिकायत मिलती है तो पंचायतों में चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है.

उत्तराखंड में फर्जी दस्तावेजों के सहारे हो रही नेतागिरी.

देहरादून: उत्तराखंड में फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी नौकरी पाने के कई मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए न केवल नौकरियां पाई जा रही हैं. बल्कि सफेदपोश नेतागिरी करने के लिए भी ऐसे ही फर्जीवाड़े का इस्तेमाल कर रहे हैं. राज्य में केवल युवा ही फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी एजेंसियों की आंखों में धूल नहीं झोंक रहे हैं. बल्कि, सफेदपोश भी फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर खुद को नेतागिरी में जिंदा रखे हुए हैं.

दरअसल, कुछ दिन पहले ही पुलिस ने 10वीं और 12वीं के फर्जी सर्टिफिकेट तैयार करने वाले गिरोह के एक सदस्य को गिरफ्तार किया था. हैरानी की बात यह है कि देहरादून शहर के घंटाघर के पास दफ्तर खोलकर पांचवीं पास एक व्यक्ति इस काम को लंबे समय से कर रहा था. यूं तो इन फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए सरकारी नौकरी पाने की बात कही गई, लेकिन हकीकत यह है कि कई नेता भी खुद को राजनीति में बनाए रखने के लिए इन्हीं फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि उनकी पंचायत में ही एक प्रतिनिधि ने इसी गिरोह से अपना सर्टिफिकेट बनवाया था. यह मामला कोर्ट में अभी विचाराधीन भी है. उन्होंने कहा ऐसे ही कई नेता पंचायतों में होने वाले चुनाव के लिए ऐसे गिरोह से संपर्क साध कर अपने सर्टिफिकेट बनवाते हैं. जिसके बाद पंचायत में नियम कानूनों को धता बताते हुए चुनाव लड़ते हैं.

दरअसल, पंचायतों में चुनाव लड़ने के लिए 10वीं पास होना जरूरी है. पिछले दिनों ही राज्य सरकार ने इस नियम को लागू करते हुए पंचायतों में कई नेताओं की नेतागिरी पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए थे. सरकार के नए नियमों का तोड़ भी आसानी से इन नेताओं ने निकाल लिया. नेताओं ने इसके लिए फर्जी और बिना रजिस्ट्रेशन वाले इन संस्थाओं का सहारा लिया. जिसके जरिए ये दसवीं के सर्टिफिकेट बनवा कर चुनाव में उतरते हैं.

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वैसे इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि जब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकारी नौकरियां पाने में युवा कामयाब हो रहे हैं तो पंचायत विभाग को ऐसे सर्टिफिकेट दिखाकर मूर्ख बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. पूर्व जिला पंचायत सदस्य ने साफ किया है कि यदि पुलिस उनकी मदद लेती है तो वह सब मामलों का खुलासा करेंगे. बता दें जिस गिरोह को पुलिस ने शिकंजे में लिया है, वह कार्रवाई पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र बिष्ट की शिकायत पर ही हुई है.

हालांकि, पुलिस अभी पूरे गिरोह को नहीं पकड़ पाई है. इतना ही नहीं जिन लोगों ने सर्टिफिकेट बनवाए उन लोगों की पहचान भी अभी तक नहीं हो पाई है. पंचायतों में फर्जीवाड़ा करते हुए फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर चुनाव लड़ने वालों पर जब निदेशक पंचायती राज बंशीधर तिवारी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा वैसे तो चुनाव के दौरान ऐसे फर्जी दस्तावेजों को लेकर शिकायत मिलने पर फौरन कार्रवाई की जाती है. यदि इस मामले में अब किसी तरह की कोई शिकायत मिलती है तो पंचायतों में चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है.

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