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गोरखा समुदाय में दशहरा की धूम, जानिए धार्मिक मान्यता और परंपरा - belief and tradition of Dussehra

धार्मिक मान्यता अनुसार आज के ही दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी. असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराने के हर्षोल्लास में दशहरे का त्यौहार मनाने की त्रेता युग से परंपरा में चली आ रही है. उत्तराखंड में रह रहे गोरखा समुदाय के लोग इसे अनोखे तरीके से मनाते हैं.

belief and tradition of Dussehra
गोरखा समुदाय में दशहरा की धूम
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Published : Oct 15, 2021, 3:48 PM IST

Updated : Oct 15, 2021, 8:55 PM IST

देहरादून: देशभर में विजयदशमी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. 9 दिनों तक नवदुर्गा की पूजा और व्रत करने के बाद नवमी के दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है. दशमी के दिन से पूर्णमासी तक गोरखा समुदाय के हर घर और कुटुंब में बड़े-बुजुर्ग छोटों को तिलक लगाने की परंपरा को निभाते हैं, जो आपसी रिश्तो के अटूट बंधन को और मजबूत करती है.

विजयदशमी की मान्यता: धार्मिक मान्यता अनुसार आज के ही दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी. असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराने के हर्षोल्लास में दशहरे का त्यौहार मनाने की त्रेता युग से परंपरा में चली आ रही है. क्या आपको मालूम है गोरखा समुदाय में विजयदशमी का कितना महत्व है. विजयदशमी के दिन से अगले 5 दिनों तक गोरखा समुदाय में दशहरे का त्यौहार बड़े ही हर्ष, उमंग और खुशियों की सौगात वाले उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

लाल और सफेद टीका: गोरखा समुदाय में 5 दिनों तक चलने वाला दशहरा इसलिए भी खास है, क्योंकि साल भर इंतजार के बाद परिवार रिश्तेदार एक दूसरे को अपने घर आने का निमंत्रण देते हैं. जिसमें कुटुंब के छोटे बड़ों का मिलन होता है. सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक बड़े बुजुर्ग लाल और सफेद रंग का टीका रिश्तों के सम्मान को कायम रखने के लिए लगाते हैं. लाल टीका जिसमें सिंदूर और चावल होता है, उसे राज सिंहासन समृद्धि के प्रतीक के रूप में माना जाता है. जबकि सफेद रंग यानी दही और चावल का टीका शांति और आपसी भाईचारा निभाने का संदेश देता है.

गोरखा समुदाय में दशहरा की धूम

ये भी पढ़ें: Dussehra 2021: पीएम मोदी, शाह समेत दिग्गजों ने दी विजयादशमी की शुभकामनाएं

इतना ही नहीं इन दोनों रंगों के टीका में सबसे खास महत्व जवरा यानी 5 तरह के हरियाली पौधों का होता. नवमी के पहले दिन से तिल, मक्का, जौ, गेहूं व बाजरा को पूजा स्थल पर जमाया जाता है. जिसे गोरखा समुदाय में जवरा कहते हैं. यह जवरा तिलक करने के साथ ही आशीर्वाद के रूप में बड़ों द्वारा छोटों को दिया जाता है.

पारंपरिक व्यंजन का चलन: विजयदशमी के दिन से गोरखा समुदाय में अगले 5 दिनों तक चलने वाले दशहरे के त्यौहार में कुटुंब और सगे संबंधी एक दूसरे के घर जाकर टीका लगाते हैं और खुशियां मनाते हैं. इस दौरान तरह-तरह के पकवान जिसमें सेलरोटी, फिनी और बटुक सहित पारंपरिक व्यंजन बनाकर रिश्तेदारों में परोसे जाते हैं.

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी 5 नवंबर को बाबा केदार के दर्शन करेंगे, विशेष अनुष्ठान में भी लेंगे हिस्सा

त्रेता युग से विजयदशमी की शुरुआत: ईटीवी भारत से पंडित राम प्रसाद गौतम ने बताया कि त्रेता युग की ये परंपरा गोरखा समुदाय में भी चली आ रही है. भगवान राम ने अहंकारी रावण पर विजय प्राप्त की तो इसे असत्य पर सत्य विजय कहा गया. तभी से हिंदू समाज के अभिन्न अंग गोरखा समुदाय में विजयदशमी का त्यौहार मनाया जा रहा है. ये पूरे 5 दिनों तक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

परिवार और कुटुंब के लोग अपने से छोटों को दही और चावल का सफेद टीका लगाकर रिश्तों के बंधन को मजबूत और शांति सद्भावना के साथ आगे बढ़ाने का संदेश देते हैं. वहीं, सिंदूर और चावल लाल टीके का चलन खासकर नेपाल मूल के लोगों में ज्यादा चलता है, वहां राज सिंहासन की याद में इस रंग के तिलक का चलन है.

अब तक का सबसे बड़ा युद्ध: धार्मिक मान्यता अनुसार भगवान श्री राम और रावण के बीच जो युद्ध हुआ था, उसे त्रेता युग से अब तक का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है. इस युद्ध में न सिर्फ अहंकारी रावण का वध कर लंका में विजय प्राप्त की गई, बल्कि असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय होने से इस धरती पर मानव जाति को बुराई छोड़ अच्छाई के पथ अग्रसर रहकर सत्य पाने का संदेश कल्याणकारी है.

देहरादून: देशभर में विजयदशमी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. 9 दिनों तक नवदुर्गा की पूजा और व्रत करने के बाद नवमी के दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है. दशमी के दिन से पूर्णमासी तक गोरखा समुदाय के हर घर और कुटुंब में बड़े-बुजुर्ग छोटों को तिलक लगाने की परंपरा को निभाते हैं, जो आपसी रिश्तो के अटूट बंधन को और मजबूत करती है.

विजयदशमी की मान्यता: धार्मिक मान्यता अनुसार आज के ही दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी. असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराने के हर्षोल्लास में दशहरे का त्यौहार मनाने की त्रेता युग से परंपरा में चली आ रही है. क्या आपको मालूम है गोरखा समुदाय में विजयदशमी का कितना महत्व है. विजयदशमी के दिन से अगले 5 दिनों तक गोरखा समुदाय में दशहरे का त्यौहार बड़े ही हर्ष, उमंग और खुशियों की सौगात वाले उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

लाल और सफेद टीका: गोरखा समुदाय में 5 दिनों तक चलने वाला दशहरा इसलिए भी खास है, क्योंकि साल भर इंतजार के बाद परिवार रिश्तेदार एक दूसरे को अपने घर आने का निमंत्रण देते हैं. जिसमें कुटुंब के छोटे बड़ों का मिलन होता है. सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक बड़े बुजुर्ग लाल और सफेद रंग का टीका रिश्तों के सम्मान को कायम रखने के लिए लगाते हैं. लाल टीका जिसमें सिंदूर और चावल होता है, उसे राज सिंहासन समृद्धि के प्रतीक के रूप में माना जाता है. जबकि सफेद रंग यानी दही और चावल का टीका शांति और आपसी भाईचारा निभाने का संदेश देता है.

गोरखा समुदाय में दशहरा की धूम

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इतना ही नहीं इन दोनों रंगों के टीका में सबसे खास महत्व जवरा यानी 5 तरह के हरियाली पौधों का होता. नवमी के पहले दिन से तिल, मक्का, जौ, गेहूं व बाजरा को पूजा स्थल पर जमाया जाता है. जिसे गोरखा समुदाय में जवरा कहते हैं. यह जवरा तिलक करने के साथ ही आशीर्वाद के रूप में बड़ों द्वारा छोटों को दिया जाता है.

पारंपरिक व्यंजन का चलन: विजयदशमी के दिन से गोरखा समुदाय में अगले 5 दिनों तक चलने वाले दशहरे के त्यौहार में कुटुंब और सगे संबंधी एक दूसरे के घर जाकर टीका लगाते हैं और खुशियां मनाते हैं. इस दौरान तरह-तरह के पकवान जिसमें सेलरोटी, फिनी और बटुक सहित पारंपरिक व्यंजन बनाकर रिश्तेदारों में परोसे जाते हैं.

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त्रेता युग से विजयदशमी की शुरुआत: ईटीवी भारत से पंडित राम प्रसाद गौतम ने बताया कि त्रेता युग की ये परंपरा गोरखा समुदाय में भी चली आ रही है. भगवान राम ने अहंकारी रावण पर विजय प्राप्त की तो इसे असत्य पर सत्य विजय कहा गया. तभी से हिंदू समाज के अभिन्न अंग गोरखा समुदाय में विजयदशमी का त्यौहार मनाया जा रहा है. ये पूरे 5 दिनों तक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

परिवार और कुटुंब के लोग अपने से छोटों को दही और चावल का सफेद टीका लगाकर रिश्तों के बंधन को मजबूत और शांति सद्भावना के साथ आगे बढ़ाने का संदेश देते हैं. वहीं, सिंदूर और चावल लाल टीके का चलन खासकर नेपाल मूल के लोगों में ज्यादा चलता है, वहां राज सिंहासन की याद में इस रंग के तिलक का चलन है.

अब तक का सबसे बड़ा युद्ध: धार्मिक मान्यता अनुसार भगवान श्री राम और रावण के बीच जो युद्ध हुआ था, उसे त्रेता युग से अब तक का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है. इस युद्ध में न सिर्फ अहंकारी रावण का वध कर लंका में विजय प्राप्त की गई, बल्कि असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय होने से इस धरती पर मानव जाति को बुराई छोड़ अच्छाई के पथ अग्रसर रहकर सत्य पाने का संदेश कल्याणकारी है.

Last Updated : Oct 15, 2021, 8:55 PM IST
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