भोपाल/देहरादूनः मानवता और शर्मसार तब हो जाती है जब दुष्कर्म या कुकर्म किसी ऐसे के साथ हुआ हो, जिसे ठीक से अब तक दुनियादारी की समझ भी न हो. मासूम बच्चे जो अपनो खिलौनों और सपनों की दुनिया में ही जी रहे होते हैं, दुष्कर्मी उन्हें भी नहीं बख्शते है. इन मासूमों की सरलता का फायदा उठा उनका शोषण कर देते हैं. लगातार ऐसे ही मामलों के उजागर होने के बाद भारत सरकार ने बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से संरक्षण के लिए 2012 में 'पॉक्सो एक्ट' (POCSO) लागू किया. पॉक्सो एक्ट यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट को सरल भाषा में लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 कहा जाता है.
पॉक्सो एक्ट में क्या है प्रावधान
⦁इस एक्ट में शून्य से 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चें (चाहे लड़का हो लड़की) जिनके साथ किसी भी तरह का लैंगिक शोषण हुआ हो या करने की कोशिश की गई हो, सभी मामले आते हैं.
⦁इस एक्ट के तहत अलग-अलग अपराधों में अलग-अलग सजा का प्रावधान है. साथ ही इसमें इस बात का भी ध्यान दिया जाता है कि इस एक्ट का पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं.
⦁इस एक्ट में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है, साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
⦁इस एक्ट के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है. इसके साथ ही इसमें यौन शोषण को भी परिभाषित किया गया है. जिसके तहत यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो वह दोषी माना जाएगा.
⦁साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति ये जानते हुए की बच्चे के साथ यौन शोषण हुआ है और उसकी जानकारी निजदीकी थाने में नहीं देता है, तो उसे भी छह महीने का कारवास और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
⦁इस एक्ट के तहत बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस की है. जैसे आपातकालीन उपचार और बच्चे को आश्रय गृह में रखना आदि.
⦁पुलिस की ये भी जिम्मेदारी है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति (CWC) के संज्ञान में लाए, ताकि सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके.
⦁इस एक्ट में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी हैं. मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में होना चाहिए, जिस पर बच्चे को विश्वास हो और बच्चे की मेडिकल जांच महिला डॉक्टर ही करेगी. साथ ही ये जांच ऐसी होनी चाहिए की बच्चे के लिए कम पीड़ादायक हो.
⦁इस एक्ट में ये भी कहा गया कि ऐसे मामलों का निपटारा घटने की तारिख से एक साल के अंदर हो जाना चाहिए.
पॉक्सो एक्ट में
⦁बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है.
⦁ये कानून लिंग निरपेक्ष/जेंडर न्यूट्रल है यानि लड़के-लड़कियों दोनों पर लागू होता है.
⦁इस एक्ट के तहत ऐसे सभी मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है.
⦁इसमें आरोपी को सिद्ध करना होता है कि उसने अपराध नहीं किया, पीड़ित को कुछ भी सिद्ध नहीं करना होता है.
बच्चों के संरक्षण में माता-पिता, शिक्षक, समाज की भूमिका
बच्चों के संरक्षण में माता-पिता, शिक्षक, स्कूल, समाज की एक अहम भूमिका है. हमें घर-स्कूल में ही बच्चों को ये समझना होगा कि, कोई भी बच्चा इस तरह के शोषण का शिकार हो सकता है. दुष्कर्म का कोई वर्ग, जाति, धर्म या समुदाय नहीं होता है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि इस तरह का अपराध करने वाला बच्चे का परिचित या परिजन ही होता हैं. ऐसे में परिजनों की, शिक्षकों की और नागरिक होने के नाते हम सब की जिम्मेदारी है कि, हम बच्चे की बातों को ध्यान से सुने और उस पर भरोसा करें, साथ ही उन्हें अच्छे- बुरे स्पर्श के बीच का अंतर समझाएं. अगर बच्चे के व्यवहार में किसी भी तरह का कोई परिवर्तन आए तो तुरंत उसका कारण जानें. और अगर कोई बच्चा किसी व्यक्ति के पास जाने से डरे या मना करे तो नजरअंदाज न करें.
बाल अवस्था से ही सतर्कता जरूरी
ये बहुत जरूरी है कि हम बच्चों को बाल अवस्था में ऐसी जानकारी दें, उन्हें अच्छे-बुरे स्पर्श से अवगत करा दें. और इतना सशक्त बना दें कि, जिससे वो ऐसे खतरों को पहचानें एवं इसकी तुरंत शिकायत करें. अपनी चुप्पी तोड़े, तुरंत उस स्थिति से बाहर आ सकें.
शिकायत हेतु संपर्क करें
इस तरह के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए शिकायत हेतु चाइल्ड लाइन नंबर 1098, टोल फ्री नंबर1800115455 का उपयोग करें. साथ ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा POCSO e-box तैयार किया गया है. जिस पर ऑनलाइन शिकायत की जा सकती है. इन पर बच्चे स्वयं और उनके अभिभावक दोनों आसानी से शिकायत कर सकते हैं.