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गांधी परिवार के इस करीबी नेता से क्यों रूठी कांग्रेस, चुनाव से पहले पार्टी के इस कदम से हैरत में लोग

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया है. उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगा है. किशोर, गांधी परिवार के करीबी रहे हैं. उनके खिलाफ उठाये गये सख्त कदम के बाद पार्टी को निश्चित ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

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गांधी परिवार के इस करीबी नेता से क्यों रूठी कांग्रेस
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Published : Jan 14, 2022, 5:19 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेसी नेता किशोर उपाध्याय पर पार्टी बिफर गयी है. स्थिति यह है कि चुनाव से ठीक पहले ही पार्टी ने इस वरिष्ठ नेता को सभी पदों से बेदखल कर दिया है. पार्टी प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव की ओर से इस संबंध में उन्हें पत्र जारी किया गया है. ऐसे में यह सवाल काफी अहम हो जाता है कि कांग्रेस के इस चौंकाने वाले फैसले का आगामी चुनाव पर क्या असर होगा.

उत्तराखंड में ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस के नेताओं का भाजपाइयों से संपर्क सधा हो, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह चुनाव की परवाह किए बिना किशोर उपाध्याय को तमाम पदों से पद मुक्त कर पशोपेश में डाला है उससे साफ है कि कांग्रेस की यह कार्रवाई अचानक नहीं है. कुछ तो ऐसा फीडबैक कांग्रेस हाईकमान को दिया गया था जिसकी बिनाह पर पार्टी ने इतना बड़ा एक्शन लिया. बड़ी बात यह है कि इससे पहले कभी उत्तराखंड कांग्रेस के किसी बड़े नेता पर इस तरह ऐसी कार्रवाई नहीं की गयी.

पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2022: आज कल में घोषित हो सकती है कांग्रेस की लिस्ट, बगावत की भी आशंका

बता दें किशोर उपाध्याय के लगातार कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों में जाने की चर्चाएं जोरों पर रही हैं. न केवल कांग्रेस बल्कि समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस तक में बातचीत करने को लेकर भी किशोर उपाध्याय चर्चाओं में रहे. पिछले दिनों जिस तरह किशोर उपाध्याय रेसकोर्स क्षेत्र में एक भाजपाई नेता से मिलकर आने को लेकर सुर्खियों में रहे उसके बाद कांग्रेस असहज सी स्थिति में दिखाई दी.

पढ़ें- यूपी से उत्तराखंड तक BJP में भगदड़, 2017 चुनाव में कांग्रेस की थी यही स्थिति
चर्चाएं ये भी थी कि कांग्रेस हाईकमान के पास किशोर उपाध्याय के भाजपा में जाने का फीडबैक था. इससे पहले कि किशोर उपाध्याय यह कदम उठाते, उससे पहले ही कांग्रेस ने उन्हें पद मुक्त करना उचित समझा, लेकिन किशोर उपाध्याय के खिलाफ कांग्रेस हाईकमान की इस कार्रवाई के बाद भी पार्टी के खिलाफ कोई बयान बाजी नहीं की है. ना ही उन्होंने भाजपा का दामन थामा है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि कहीं किशोर उपाध्याय केवल प्रेशर पॉलिटिक्स के चक्कर में ही तो नहीं लग गए. हालांकि इस मामले में किशोर उपाध्याय से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि वे इस विषय पर अभी पार्टी से बात करेंगे. उसके बाद ही कोई बयान देंगे. उन्होंने कहा अभी उन्हें ना तो पार्टी का कोई पत्र मिला है और ना ही पार्टी हाईकमान की तरफ से उनसे इस पर कोई बात की गई है.

पढ़ें- आम आदमी पार्टी ने जीत का किया दावा, कहा- कांग्रेस-बीजेपी ने प्रदेश में मचाई लूट

बता दें कि किशोर उपाध्याय उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. एक समय हरीश रावत खेमे के काफी करीबी भी थे. लेकिन इन दिनों हरीश रावत और किशोर उपाध्याय के बीच तीखे जुबानी हमले सरे आम हुए थे. इसके बाद से ही हरीश खेमा किशोर पर हमलावर दिखा था. वैसे एक समय ऐसा भी था जब किशोर उपाध्याय हरीश रावत के बेहद करीबी थे. इसी की बदौलत उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी पाने में कामयाबी हासिल की थी. इन दोनों नेताओं के बीच राग तब बिगड़ा जब किशोर उपाध्याय राज्यसभा जाना चाहते थे लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय की जगह मनोरमा डोबरियाल को राज्यसभा भेज दिया. इसके बाद से ही इन दोनों नेताओं की दूरियां काफी ज्यादा बढ़ गई. समय-समय पर किशोर उपाध्याय हरीश रावत के खिलाफ आग भी उगलते रहे.

पढ़ें- राहुल गांधी उत्तराखंड कांग्रेस से चाहें जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार, जानिए इसका मतलब

किशोर उपाध्याय कांग्रेस के लिए किसी संपत्ति से कम नहीं हैं. किशोर अपने शुरुआती दौर से गांधी परिवार के लिए काम करते रहे हैं. इसके बाद धीरे-धीरे राजनीति में आकर सत्ता की सीढ़ी भी चढ़े और कांग्रेस में महत्वपूर्ण पद भी पाया. कांग्रेस के वफादार नेताओं में शुमार किशोर उपाध्याय हमेशा कांग्रेस को ही आगे बढ़ाने की बात करते रहे. पार्टी के साथ हरदम खड़े भी दिखाई दिए. किशोर उपाध्याय के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाएं तो दिल्ली में गांधी परिवार के बेहद करीब रहने के बाद किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड बनने के बाद 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में टिहरी विधानसभा सीट से भाजपा के रतन सिंह गुनसोला को हराकर जीत हासिल की. इसके बाद 2007 में उन्होंने फिर इसी विधानसभा सीट पर बीजेपी के खेम सिंह चौहान को शिकस्त दी. इसके बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में वह निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश धनै से चुनाव हार गए. इसके बाद किशोर उपाध्याय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. 2017 तक उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाया. साल 2017 में उन्होंने सहसपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा. जहां से वे चुनाव हार गये.

पढ़ें- कांग्रेस के एक परिवार, एक टिकट फॉर्मूले पर छाया संकट, हरीश रावत के घर से 4 टिकटों की मांग
उत्तराखंड में चुनाव बेहद नजदीक है. लिहाजा कांग्रेस की इस कार्रवाई के बाद किशोर उपाध्याय का भाजपा में जाना तय माना जा रहा है. ऐसा हुआ तो भाजपा उन्हें टिहरी विधानसभा सीट से टिकट दे सकती है. जहां पर भाजपा का सीटिंग विधायक तो है लेकिन खराब परफॉर्मेंस के कारण विधायक के टिकट कटने की बड़ी संभावना है. ऐसे भी भाजपा किशोर उपाध्याय को इस सीट पर मौका दे सकती है. ऐसा हुआ तो कांग्रेस को न केवल टिहरी विधानसभा सीट पर इसका नुकसान होगा बल्कि राजनीतिक संदेश के रूप में भी पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा.
किशोर उपाध्याय को सभी पदों से हटाए जाने के बाद कांग्रेस के नेता कहते हैं कि पार्टी बार-बार किशोर उपाध्याय को उनकी गतिविधियों के कारण उन्हें आगाह कर रही थी. इसके बाद भी किशोर उपाध्याय नहीं माने. मजबूरन पार्टी को यह कदम उठाना पड़ा. हालांकि पार्टी के नेता यह भी मानते हैं कि इसका पार्टी को नुकसान भी होगा. सभी नेताओं को इस बात का दुख भी है कि किशोर उपाध्याय जैसे नेता के खिलाफ पार्टी की तरफ से इस तरह की कार्रवाई की गई है.

देहरादून: उत्तराखंड में गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेसी नेता किशोर उपाध्याय पर पार्टी बिफर गयी है. स्थिति यह है कि चुनाव से ठीक पहले ही पार्टी ने इस वरिष्ठ नेता को सभी पदों से बेदखल कर दिया है. पार्टी प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव की ओर से इस संबंध में उन्हें पत्र जारी किया गया है. ऐसे में यह सवाल काफी अहम हो जाता है कि कांग्रेस के इस चौंकाने वाले फैसले का आगामी चुनाव पर क्या असर होगा.

उत्तराखंड में ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस के नेताओं का भाजपाइयों से संपर्क सधा हो, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह चुनाव की परवाह किए बिना किशोर उपाध्याय को तमाम पदों से पद मुक्त कर पशोपेश में डाला है उससे साफ है कि कांग्रेस की यह कार्रवाई अचानक नहीं है. कुछ तो ऐसा फीडबैक कांग्रेस हाईकमान को दिया गया था जिसकी बिनाह पर पार्टी ने इतना बड़ा एक्शन लिया. बड़ी बात यह है कि इससे पहले कभी उत्तराखंड कांग्रेस के किसी बड़े नेता पर इस तरह ऐसी कार्रवाई नहीं की गयी.

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बता दें किशोर उपाध्याय के लगातार कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों में जाने की चर्चाएं जोरों पर रही हैं. न केवल कांग्रेस बल्कि समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस तक में बातचीत करने को लेकर भी किशोर उपाध्याय चर्चाओं में रहे. पिछले दिनों जिस तरह किशोर उपाध्याय रेसकोर्स क्षेत्र में एक भाजपाई नेता से मिलकर आने को लेकर सुर्खियों में रहे उसके बाद कांग्रेस असहज सी स्थिति में दिखाई दी.

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चर्चाएं ये भी थी कि कांग्रेस हाईकमान के पास किशोर उपाध्याय के भाजपा में जाने का फीडबैक था. इससे पहले कि किशोर उपाध्याय यह कदम उठाते, उससे पहले ही कांग्रेस ने उन्हें पद मुक्त करना उचित समझा, लेकिन किशोर उपाध्याय के खिलाफ कांग्रेस हाईकमान की इस कार्रवाई के बाद भी पार्टी के खिलाफ कोई बयान बाजी नहीं की है. ना ही उन्होंने भाजपा का दामन थामा है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि कहीं किशोर उपाध्याय केवल प्रेशर पॉलिटिक्स के चक्कर में ही तो नहीं लग गए. हालांकि इस मामले में किशोर उपाध्याय से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि वे इस विषय पर अभी पार्टी से बात करेंगे. उसके बाद ही कोई बयान देंगे. उन्होंने कहा अभी उन्हें ना तो पार्टी का कोई पत्र मिला है और ना ही पार्टी हाईकमान की तरफ से उनसे इस पर कोई बात की गई है.

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बता दें कि किशोर उपाध्याय उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. एक समय हरीश रावत खेमे के काफी करीबी भी थे. लेकिन इन दिनों हरीश रावत और किशोर उपाध्याय के बीच तीखे जुबानी हमले सरे आम हुए थे. इसके बाद से ही हरीश खेमा किशोर पर हमलावर दिखा था. वैसे एक समय ऐसा भी था जब किशोर उपाध्याय हरीश रावत के बेहद करीबी थे. इसी की बदौलत उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी पाने में कामयाबी हासिल की थी. इन दोनों नेताओं के बीच राग तब बिगड़ा जब किशोर उपाध्याय राज्यसभा जाना चाहते थे लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय की जगह मनोरमा डोबरियाल को राज्यसभा भेज दिया. इसके बाद से ही इन दोनों नेताओं की दूरियां काफी ज्यादा बढ़ गई. समय-समय पर किशोर उपाध्याय हरीश रावत के खिलाफ आग भी उगलते रहे.

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किशोर उपाध्याय कांग्रेस के लिए किसी संपत्ति से कम नहीं हैं. किशोर अपने शुरुआती दौर से गांधी परिवार के लिए काम करते रहे हैं. इसके बाद धीरे-धीरे राजनीति में आकर सत्ता की सीढ़ी भी चढ़े और कांग्रेस में महत्वपूर्ण पद भी पाया. कांग्रेस के वफादार नेताओं में शुमार किशोर उपाध्याय हमेशा कांग्रेस को ही आगे बढ़ाने की बात करते रहे. पार्टी के साथ हरदम खड़े भी दिखाई दिए. किशोर उपाध्याय के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाएं तो दिल्ली में गांधी परिवार के बेहद करीब रहने के बाद किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड बनने के बाद 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में टिहरी विधानसभा सीट से भाजपा के रतन सिंह गुनसोला को हराकर जीत हासिल की. इसके बाद 2007 में उन्होंने फिर इसी विधानसभा सीट पर बीजेपी के खेम सिंह चौहान को शिकस्त दी. इसके बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में वह निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश धनै से चुनाव हार गए. इसके बाद किशोर उपाध्याय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. 2017 तक उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाया. साल 2017 में उन्होंने सहसपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा. जहां से वे चुनाव हार गये.

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उत्तराखंड में चुनाव बेहद नजदीक है. लिहाजा कांग्रेस की इस कार्रवाई के बाद किशोर उपाध्याय का भाजपा में जाना तय माना जा रहा है. ऐसा हुआ तो भाजपा उन्हें टिहरी विधानसभा सीट से टिकट दे सकती है. जहां पर भाजपा का सीटिंग विधायक तो है लेकिन खराब परफॉर्मेंस के कारण विधायक के टिकट कटने की बड़ी संभावना है. ऐसे भी भाजपा किशोर उपाध्याय को इस सीट पर मौका दे सकती है. ऐसा हुआ तो कांग्रेस को न केवल टिहरी विधानसभा सीट पर इसका नुकसान होगा बल्कि राजनीतिक संदेश के रूप में भी पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा.
किशोर उपाध्याय को सभी पदों से हटाए जाने के बाद कांग्रेस के नेता कहते हैं कि पार्टी बार-बार किशोर उपाध्याय को उनकी गतिविधियों के कारण उन्हें आगाह कर रही थी. इसके बाद भी किशोर उपाध्याय नहीं माने. मजबूरन पार्टी को यह कदम उठाना पड़ा. हालांकि पार्टी के नेता यह भी मानते हैं कि इसका पार्टी को नुकसान भी होगा. सभी नेताओं को इस बात का दुख भी है कि किशोर उपाध्याय जैसे नेता के खिलाफ पार्टी की तरफ से इस तरह की कार्रवाई की गई है.

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