देहरादून: कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय बीते लंबे समय से प्रदेशवासियों को परंपरागत वनवासी घोषित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में वनाधिकार कानून के खिलाफ चल रही याचिका पर केंद्र सरकार चुप्पी साधे बैठी है. जिस कारण लाखों परिवारों को बेदखल करने का आदेश जारी कर दिया गया था.
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने बताया कि 2017 से फरवरी 2019 तक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में वनाधिकार कानून के खिलाफ चल रही याचिका में खामोश बैठी हुई है. कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के झूठ का जवाब देने के लिए कोई भी आवाज नहीं उठाई गई. लिहाजा कोर्ट ने लाखों परिवारों को बेदखल करने का आदेश दे दिया था.
साथ ही उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में भी सैकड़ों परिवार बेदखली के खतरे में थे. लेकिन, देशभर में आंदोलन होने के बाद केंद्र सरकार कोर्ट में फिर से जाने के लिए मजबूर हुई. तब भी केंद्र ने न्याय पीठ से ये मांग नहीं की कि ये आदेश वापस लिया जाए. आज तक आदेश स्थगित अथवा पेंडिंग में है.
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किशोर उपाध्याय ने बताया कि वनाधिकार आंदोलन के तहत प्रदेशवासियों को बिजली मुफ्त मिलनी चाहिए. साथ ही घर बनाने में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी भी मुफ्त मिलनी चाहिए. इसके अलावा जंगली जानवरों का शिकार होने वाले लोगों को 25 लाख रुपये का मुआवजा और एक व्यक्ति को पक्की नौकरी मिलनी चाहिये. इसके अलावा किसानों की फसलों को यदि जंगली जानवर चौपट करते हैं तो ऐसी परिस्थिति में किसानों को 1500 रुपये प्रति फसल के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए.
किशोर उपाध्याय की अन्य प्रमुख मांगें...
- प्रदेशवासियों को वनवासी का दर्जा दिया जाए.
- 2006 का एक्ट लागू किया जाए.
- पहले वनों से लकड़ी चुगाकर लोग भोजन बनाते थे अब भोजन के साधनों पर भी कब्जा हो चुका है. ऐसे में एक गैस सिलेंडर यहां के लोगों को निशुल्क दिया जाए.
- प्रदेश का पानी दिल्ली के सीएम वहां की जनता को निशुल्क दे रहे हैं. पानी के कारखाने के मालिक होने के नाते प्रदेशवासियों को 800 यूनिट बिजली निशुल्क मिलनी चाहिए.
- प्रदेश मे लकड़ी, पत्थर, बजरी के लिए वन माफिया और खनन माफियाओं की तादाद बढ़ गई है, जबकि यहां के निवासियों को भवन निर्माण के लिए लकड़ी, पत्थर, बजरी को खरीदना पड़ रहा है. ऐसे में प्रदेशवासियों को एक यूनिट बनाने के लिए निशुल्क मिलना चाहिए.