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कांग्रेस के लिए दलित वोटरों को साधना इतना आसान नहीं, जानिए वजह

पंजाब में दलित सीएम बनाने के बाद हरीश रावत ने भविष्य उत्तराखंड में किसी दलित को मुख्यमंत्री के रूप से देखने की बात कही है. हरीश रावत ने ये बयान देकर दलित वोटर्स को रिझाने का काम तो किया है, लेकिन कांग्रेस के लिए दलित कार्ड इतना आसान भी नहीं हैं.

Uttarakhand Dalit Voter
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Published : Sep 26, 2021, 4:17 PM IST

Updated : Sep 26, 2021, 9:02 PM IST

देहरादून: आगामी विधानसभा चुनाव में महज कुछ ही महीनों का वक्त बचा है, जिसे देखते हुए राजनीतिक पार्टियां पूरे जोरशोर से तैयारियों में जुटी हैं. जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी जहां आगामी विधानसभा चुनाव में जवानों और किसानों को रिझाने का प्रयास कर रही है. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं. हरीश रावत ने यह भी इच्छा जताई कि वो दलित को मुख्यमंत्री बनना देखना चाहते हैं. आखिर क्या है हरीश रावत का यह चुनावी स्टैंड और आगामी चुनाव में दलित नाम का कितना पड़ेगा फर्क?

पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने पंजाब में किसी दलित को प्रदेश की जिम्मेदारी मिलने के बाद उत्तराखंड में भी भविष्य में दलित मुख्यमंत्री देखने की बात कही है. हरीश रावत के इस बयान के बाद बीजेपी समेत अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों के राजनीतिक समीकरण बिगड़ना तय है. क्योंकि एक आंकड़े के अनुसार पूरे प्रदेश में करीब 22 फीसदी वोट बैंक दलित है और करीब 18 सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में हैं.

कांग्रेस का दलित वोटरों को साधना इतना आसान नहीं.

हरीश रावत की इच्छा: उत्तराखंड में 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके लिए राज्य में भाजपा और आम आदमी पार्टी के साथ ही कांग्रेस ​चुनावी बिगुल फूंक चुकी है. कुछ दिन पहले लक्सर की परिवर्तन यात्रा रैली में हरीश रावत ने पंजाब में सीएम बनने की घटना पर कुछ इस तरह अपनी बात कही- 'मैं ईश्वर से और गंगा मैया से प्रार्थना करता हूं कि अपने जीवन में उत्तराखंड में किसी दलित को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में देख सकूं. हम इस लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे'.

कांग्रेस के लिए चुनौती: प्रदेश में दलित वोट बैंक को साधना कांग्रेस और हरीश रावत के लिए इतना आसान भी नहीं है, जितना दिख रहा है. दरअसल, प्रदेश में दलित वोटबैंक छितरा हुआ है. ये कभी एकमुश्त कभी किसी ओर नहीं जाता है, जिसका तोड़ निकालना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. वहीं, प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सक्रियता भी कांग्रेस की राह में एक बड़ा रोड़ा है. तीसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में किसी बड़े दलित चेहरे का न होना है, जिससे सीधे तौर पर दलित वोट बैंक को साधा जा सके.

वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा भी यही मानते हैं कि हरीश रावत का यह बयान महज एक चुनावी दांव है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मेरिट बेस पर बनाए जाते हैं. लेकिन पंजाब में जो हुआ वह सिर्फ दलित वोट बैंक को आकर्षित करने का ही एक एजेंडा है. क्योंकि पंजाब में करीब 30 से 31 प्रतिशत दलित हैं. इसी तरह हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में भी काफी संख्या में दलित हैं. कई सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में भी है, जिसके चलते कांग्रेस को लगता है कि वह दलित प्रेम दिखाकर दलित वोट को अपने पाले में कर सकती है.

पढ़ें- हरीश रावत की चाहत ने ली 'अंगड़ाई', उत्तराखंड में देखना चाहते हैं 'दलित' मुख्यमंत्री

हरीश रावत ने छोड़ा शिगूफा: भागीरथ शर्मा ने बताया कि दलित शुरू से ही कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक रहा है. जब से राजनीति में बसपा की एंट्री हुई, उसके बाद से ही दलित वोट बंट गया है. ऐसे में आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दलित कार्ड खेला है. हरीश रावत का मानना है कि साल 2009 की तरह ही इस बार भी उन्हें दलित समर्थन देंगे.

वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा की माने तो किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाना, ये पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सिर्फ शिगूफा है. अगर इसमें सत्यता है तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को अपने इस बयान के साथ चेहरा भी बताना चाहिए था. लेकिन अभी फिलहाल परिस्थितियां वह नहीं है, जिसे चलते हरीश रावत के इस बयान को चुनावी जुमला कहना ज्यादा ठीक होगा.

पढ़ें- उत्तराखंड कर्मचारी महासंघ ने सरकार को दी चेतावनी, 1 अक्टूबर को हड़ताल का ऐलान

हरीश रावत सिर्फ बयानवीर: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के दलित प्रेम पर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर ने कहा है कि हरीश रावत एक बड़े बयानवीर हैं. एक ओर हरीश रावत भविष्य में दलित को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहे हैं, तो वहीं कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए कई बयानबाजी भी कर चुके हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने दलितों को पहले भी छला और अभी भी छलने का काम कर रही है, जहां एक तरफ हरीश रावत दलित पर प्रेम दिखा रहे हैं. तो वहीं, पंजाब में एक दलित को कुछ महीने के लिए मुख्यमंत्री बना दिया गया है. ऐसे में अब दलित पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं कांग्रेस के बहकावे में आने वाली नहीं है.

हरीश रावत के दलित प्रेम पर प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जो बयान दिया है, वह कांग्रेस की परंपरा के अनुसार दिया है. क्योंकि दलित कांग्रेस के राजनीति का आधार और वोट बैंक रहा है. कांग्रेस ने दलितों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं और कार्यक्रम चलाएं हैं. मथुरा दत्त जोशी ने दलित चेहरे पर 2022 चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा कि हरीश रावत ने दलित चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात नहीं कही है, बल्कि ये कहा है कि वो वो आने वाले समय में दलित को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं.

देहरादून: आगामी विधानसभा चुनाव में महज कुछ ही महीनों का वक्त बचा है, जिसे देखते हुए राजनीतिक पार्टियां पूरे जोरशोर से तैयारियों में जुटी हैं. जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी जहां आगामी विधानसभा चुनाव में जवानों और किसानों को रिझाने का प्रयास कर रही है. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं. हरीश रावत ने यह भी इच्छा जताई कि वो दलित को मुख्यमंत्री बनना देखना चाहते हैं. आखिर क्या है हरीश रावत का यह चुनावी स्टैंड और आगामी चुनाव में दलित नाम का कितना पड़ेगा फर्क?

पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने पंजाब में किसी दलित को प्रदेश की जिम्मेदारी मिलने के बाद उत्तराखंड में भी भविष्य में दलित मुख्यमंत्री देखने की बात कही है. हरीश रावत के इस बयान के बाद बीजेपी समेत अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों के राजनीतिक समीकरण बिगड़ना तय है. क्योंकि एक आंकड़े के अनुसार पूरे प्रदेश में करीब 22 फीसदी वोट बैंक दलित है और करीब 18 सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में हैं.

कांग्रेस का दलित वोटरों को साधना इतना आसान नहीं.

हरीश रावत की इच्छा: उत्तराखंड में 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके लिए राज्य में भाजपा और आम आदमी पार्टी के साथ ही कांग्रेस ​चुनावी बिगुल फूंक चुकी है. कुछ दिन पहले लक्सर की परिवर्तन यात्रा रैली में हरीश रावत ने पंजाब में सीएम बनने की घटना पर कुछ इस तरह अपनी बात कही- 'मैं ईश्वर से और गंगा मैया से प्रार्थना करता हूं कि अपने जीवन में उत्तराखंड में किसी दलित को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में देख सकूं. हम इस लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे'.

कांग्रेस के लिए चुनौती: प्रदेश में दलित वोट बैंक को साधना कांग्रेस और हरीश रावत के लिए इतना आसान भी नहीं है, जितना दिख रहा है. दरअसल, प्रदेश में दलित वोटबैंक छितरा हुआ है. ये कभी एकमुश्त कभी किसी ओर नहीं जाता है, जिसका तोड़ निकालना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. वहीं, प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सक्रियता भी कांग्रेस की राह में एक बड़ा रोड़ा है. तीसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में किसी बड़े दलित चेहरे का न होना है, जिससे सीधे तौर पर दलित वोट बैंक को साधा जा सके.

वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा भी यही मानते हैं कि हरीश रावत का यह बयान महज एक चुनावी दांव है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मेरिट बेस पर बनाए जाते हैं. लेकिन पंजाब में जो हुआ वह सिर्फ दलित वोट बैंक को आकर्षित करने का ही एक एजेंडा है. क्योंकि पंजाब में करीब 30 से 31 प्रतिशत दलित हैं. इसी तरह हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में भी काफी संख्या में दलित हैं. कई सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में भी है, जिसके चलते कांग्रेस को लगता है कि वह दलित प्रेम दिखाकर दलित वोट को अपने पाले में कर सकती है.

पढ़ें- हरीश रावत की चाहत ने ली 'अंगड़ाई', उत्तराखंड में देखना चाहते हैं 'दलित' मुख्यमंत्री

हरीश रावत ने छोड़ा शिगूफा: भागीरथ शर्मा ने बताया कि दलित शुरू से ही कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक रहा है. जब से राजनीति में बसपा की एंट्री हुई, उसके बाद से ही दलित वोट बंट गया है. ऐसे में आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दलित कार्ड खेला है. हरीश रावत का मानना है कि साल 2009 की तरह ही इस बार भी उन्हें दलित समर्थन देंगे.

वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा की माने तो किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाना, ये पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सिर्फ शिगूफा है. अगर इसमें सत्यता है तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को अपने इस बयान के साथ चेहरा भी बताना चाहिए था. लेकिन अभी फिलहाल परिस्थितियां वह नहीं है, जिसे चलते हरीश रावत के इस बयान को चुनावी जुमला कहना ज्यादा ठीक होगा.

पढ़ें- उत्तराखंड कर्मचारी महासंघ ने सरकार को दी चेतावनी, 1 अक्टूबर को हड़ताल का ऐलान

हरीश रावत सिर्फ बयानवीर: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के दलित प्रेम पर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर ने कहा है कि हरीश रावत एक बड़े बयानवीर हैं. एक ओर हरीश रावत भविष्य में दलित को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहे हैं, तो वहीं कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए कई बयानबाजी भी कर चुके हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने दलितों को पहले भी छला और अभी भी छलने का काम कर रही है, जहां एक तरफ हरीश रावत दलित पर प्रेम दिखा रहे हैं. तो वहीं, पंजाब में एक दलित को कुछ महीने के लिए मुख्यमंत्री बना दिया गया है. ऐसे में अब दलित पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं कांग्रेस के बहकावे में आने वाली नहीं है.

हरीश रावत के दलित प्रेम पर प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जो बयान दिया है, वह कांग्रेस की परंपरा के अनुसार दिया है. क्योंकि दलित कांग्रेस के राजनीति का आधार और वोट बैंक रहा है. कांग्रेस ने दलितों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं और कार्यक्रम चलाएं हैं. मथुरा दत्त जोशी ने दलित चेहरे पर 2022 चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा कि हरीश रावत ने दलित चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात नहीं कही है, बल्कि ये कहा है कि वो वो आने वाले समय में दलित को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं.

Last Updated : Sep 26, 2021, 9:02 PM IST
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