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देश का पहला इलेक्ट्रिक सिनेमा हॉल, जहां भारतीय-अंग्रेज साथ बैठकर देखते थे फिल्म - मसूरी में देश का पहला इलेक्ट्रिक सिनेमा हॉल

अंग्रेजों ने साल 1913 में यहां पहला सिनेमाघर स्थापित किया था. इसका नाम है पिक्चर पैलेस. ये वो दौर था जब सिनेमा हॉल में भारतीयों के प्रवेश पर पाबंदी थी लेकिन, यहां भारतीय और अंग्रेज साथ बैठकर फिल्म का आनंद लिया करते थे.

इलेक्ट्रिक सिनेमा हॉल
इलेक्ट्रिक सिनेमा हॉल
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Published : Jul 7, 2020, 7:16 PM IST

Updated : Jul 7, 2020, 7:24 PM IST

मसूरीः पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजी हुकूमत के दौर की अनेक यादें बसी हुई हैं. मनोरंजन की बात करें तो उत्तर भारत का पहला सिनेमाघर मसूरी में ही अस्तित्व में आया था. ये बात शायद ही किसी को मालूम हो कि अंग्रेजों ने साल 1913 में यहां पहला सिनेमाघर स्थापित किया था. इसका नाम है पिक्चर पैलेस. ये वो दौर था जब सिनेमा हॉल में भारतीयों के प्रवेश पर पाबंदी थी लेकिन, यहां भारतीय और अंग्रेज साथ बैठकर फिल्म का आनंद लिया करते थे.

देश का पहला इलेक्ट्रिक सिनेमा हॉल

अंग्रेजी अफसर जस लिटिल ने साल 1913 में द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस नाम से इसका निर्माण शुरू कराया था. 1914 में ये बनकर तैयार हुआ और यहां पहली फिल्म 'द होली नाइट' प्रदर्शित हुई थी. खास बात ये है कि उन दिनों फिल्म के पांचों शो शुरू होने से पहले लाइब्रेरी चौक पर अंग्रेज बैंड वादन किया करते थे. उस दौर में मनोरंजन का ये सबसे बेहतर माध्यम था. लेकिन, वर्ष 1990 तक टीवी, वीसीआर व केबल के घर-घर पहुंचने के बाद मसूरी में पिक्चर पैलेस समेत सभी छह सिनेमाघर बंद हो गए. मसूरी में इस वक्त एक सिनेमा घर अम्बेडकर चौक के पास है, जिसे पूर्व में वासू सिनेमा के नाम से जाना जाता था.

मसूरी पिक्चर पैलेस की पुरानी तस्वीर.
मसूरी पिक्चर पैलेस की पुरानी तस्वीर.

6 महीने चली थी शोले फिल्म

मसूरी के स्थानीय लोग बताते हैं कि द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में शोले फिल्म करीब 6 महीना तक चली. हर शोर लगभग हाउस फुल रहता था. सबसे जयादा महीने तक चलने वाली शोले फिल्म की कामयाबी के लिये पिक्चर पैलेस हॉल को सजाकर उत्सव मनाया गया था.

पढ़ेंः 'डिजिटल' जिंदगीः लॉकडाउन ने लोगों को दिया जीने का नया मंत्र, देखिए ये खास रिपोर्ट

अंग्रेज और भारतीय मिलकर देखते थे फिल्म

जिस प्रोजेक्टर से इस सिनेमाहॉल में यहां फिल्में दिखाई जाती थी, वह यूरोप में बने पहले 20 प्रोजेक्टरों में से एक था. मसूरी की माल रोड पर तब जहां भारतीयों का प्रवेश निषेध था, वहीं 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' में भारतीय लोग व अंग्रेज एक साथ फिल्म देखा करते थे. इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी के अनुसार वर्ष 1948 में जब इस सिनेमा हॉल में चंद्रलेखा प्रदर्शित की गई थी. उस वक्त टिकट खिड़की पर इतनी भीड़ उमड़ी थी कि बिक्री के लिए चार काउंटर बनाने पड़े थे.

साल 1914 में शुरू हुआ 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' 1990 में बंद हो गया था. लेकिन 20 साल तक बंद रहने के बाद खंडहर हुए पिक्चर पैलेस को वर्ष 2010-11 में होटल व्यवसायियों ने नया रूप दिया. वर्तमान में यहां बच्चों के लिए डिजिटल मनोरंजन व कार्टून प्रसारित किए जाते हैं. गर्मियों की छुट्टियों में बड़ी तादाद में बच्चे यहां पहुंचकर अपना मनोरंजन करते हैं.

आज का मसूरी पिक्चर पैलेस
आज का मसूरी पिक्चर पैलेस

दिन में चलते थे दो शो

1915 में उस वक्त मसूरी की आबादी मात्र 6,552 थी. मसूरी के इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस के सिनेमा हॉल की क्षमता 350 सीटों की थी. शुरुआती दौर में शाम पांच बजे से रात नौ बजे तक दो शो चलते थे. उस दौर में फिल्में मूक होती थीं. जून 1931 में इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में रोमांटिक नाइट फिल्म 'वन' आई थी, जो रात ढाई बजे बैंड बजाकर चलानी पड़ी थी.

साल 1930 के बाद मसूरी में राक्सी, कैपिटल, जुबली, रियाल्टो और वर्ष 1945 के बाद बसंत सिनेमा हाल खुले. इनमें से राक्सी सिनेमा तो आग लगने के कारण बंद हो गया और बाकी हाल भी 20वीं सदी के अंतिम दशक में धीरे-धीरे बंद होते चले गए.

मसूरीः पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजी हुकूमत के दौर की अनेक यादें बसी हुई हैं. मनोरंजन की बात करें तो उत्तर भारत का पहला सिनेमाघर मसूरी में ही अस्तित्व में आया था. ये बात शायद ही किसी को मालूम हो कि अंग्रेजों ने साल 1913 में यहां पहला सिनेमाघर स्थापित किया था. इसका नाम है पिक्चर पैलेस. ये वो दौर था जब सिनेमा हॉल में भारतीयों के प्रवेश पर पाबंदी थी लेकिन, यहां भारतीय और अंग्रेज साथ बैठकर फिल्म का आनंद लिया करते थे.

देश का पहला इलेक्ट्रिक सिनेमा हॉल

अंग्रेजी अफसर जस लिटिल ने साल 1913 में द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस नाम से इसका निर्माण शुरू कराया था. 1914 में ये बनकर तैयार हुआ और यहां पहली फिल्म 'द होली नाइट' प्रदर्शित हुई थी. खास बात ये है कि उन दिनों फिल्म के पांचों शो शुरू होने से पहले लाइब्रेरी चौक पर अंग्रेज बैंड वादन किया करते थे. उस दौर में मनोरंजन का ये सबसे बेहतर माध्यम था. लेकिन, वर्ष 1990 तक टीवी, वीसीआर व केबल के घर-घर पहुंचने के बाद मसूरी में पिक्चर पैलेस समेत सभी छह सिनेमाघर बंद हो गए. मसूरी में इस वक्त एक सिनेमा घर अम्बेडकर चौक के पास है, जिसे पूर्व में वासू सिनेमा के नाम से जाना जाता था.

मसूरी पिक्चर पैलेस की पुरानी तस्वीर.
मसूरी पिक्चर पैलेस की पुरानी तस्वीर.

6 महीने चली थी शोले फिल्म

मसूरी के स्थानीय लोग बताते हैं कि द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में शोले फिल्म करीब 6 महीना तक चली. हर शोर लगभग हाउस फुल रहता था. सबसे जयादा महीने तक चलने वाली शोले फिल्म की कामयाबी के लिये पिक्चर पैलेस हॉल को सजाकर उत्सव मनाया गया था.

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अंग्रेज और भारतीय मिलकर देखते थे फिल्म

जिस प्रोजेक्टर से इस सिनेमाहॉल में यहां फिल्में दिखाई जाती थी, वह यूरोप में बने पहले 20 प्रोजेक्टरों में से एक था. मसूरी की माल रोड पर तब जहां भारतीयों का प्रवेश निषेध था, वहीं 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' में भारतीय लोग व अंग्रेज एक साथ फिल्म देखा करते थे. इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी के अनुसार वर्ष 1948 में जब इस सिनेमा हॉल में चंद्रलेखा प्रदर्शित की गई थी. उस वक्त टिकट खिड़की पर इतनी भीड़ उमड़ी थी कि बिक्री के लिए चार काउंटर बनाने पड़े थे.

साल 1914 में शुरू हुआ 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' 1990 में बंद हो गया था. लेकिन 20 साल तक बंद रहने के बाद खंडहर हुए पिक्चर पैलेस को वर्ष 2010-11 में होटल व्यवसायियों ने नया रूप दिया. वर्तमान में यहां बच्चों के लिए डिजिटल मनोरंजन व कार्टून प्रसारित किए जाते हैं. गर्मियों की छुट्टियों में बड़ी तादाद में बच्चे यहां पहुंचकर अपना मनोरंजन करते हैं.

आज का मसूरी पिक्चर पैलेस
आज का मसूरी पिक्चर पैलेस

दिन में चलते थे दो शो

1915 में उस वक्त मसूरी की आबादी मात्र 6,552 थी. मसूरी के इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस के सिनेमा हॉल की क्षमता 350 सीटों की थी. शुरुआती दौर में शाम पांच बजे से रात नौ बजे तक दो शो चलते थे. उस दौर में फिल्में मूक होती थीं. जून 1931 में इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में रोमांटिक नाइट फिल्म 'वन' आई थी, जो रात ढाई बजे बैंड बजाकर चलानी पड़ी थी.

साल 1930 के बाद मसूरी में राक्सी, कैपिटल, जुबली, रियाल्टो और वर्ष 1945 के बाद बसंत सिनेमा हाल खुले. इनमें से राक्सी सिनेमा तो आग लगने के कारण बंद हो गया और बाकी हाल भी 20वीं सदी के अंतिम दशक में धीरे-धीरे बंद होते चले गए.

Last Updated : Jul 7, 2020, 7:24 PM IST
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