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World Earth Day 2019: हिमालय पर ब्लैक कार्बन का बढ़ा खतरा, दून की फिजा में घुल रहा 'जहर'

ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में पर्यावरण प्रदूषण विश्व की एक बड़ी समस्या बन कर सामने आयी है. विश्व के तमाम शोधकर्ताओं और प्रर्यावरणविदों ने बढ़ते प्रदूषण पर अपनी चिंता जताई है. प्रदूषण में एक महत्वपूर्ण घटक है ब्लैक कार्बन जो कि वातावरण में धरती की सतह से जाने वाला काला धुआं है.

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का बढ़ा खतरा.
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Published : Apr 22, 2019, 3:19 PM IST

Updated : Apr 22, 2019, 7:04 PM IST

देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग का असर पर्यावरण पर पड़ रहा है. जिससे मौसम चक्र लगातार बदल रहा है. वहीं आज हिमालय पर ब्लैक कार्बन का संकट गहराता जा रहा है. जिसका खुलासा वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर के निकट चीड़बासा और भोगबासा में लगाये गये दो मॉनिटरिंग स्टेशनों द्वारा प्राप्त आंकड़ों से हुआ है. जिससे चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. आइये जानते हैं ब्लैक कार्बन का हिमालय पर क्या असर पड़ रहा है?

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का बढ़ा खतरा.

हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग का असर
ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में पर्यावरण प्रदूषण विश्व की एक बड़ी समस्या बन कर सामने आयी है. विश्व के तमाम शोधकर्ताओं और प्रर्यावरणविदों ने बढ़ते प्रदूषण पर अपनी चिंता जताई है. प्रदूषण में एक महत्वपूर्ण घटक है ब्लैक कार्बन जो कि वातावरण में धरती की सतह से जाने वाला काला धुआं है. ये काला धुआं जंगलों में लगी आग, फसलों की पराली जलाने और वाहनों से निकलने वाला धुआं वायुमंडल में फैल जाता है. काले धुएं से बना ब्लैक कार्बन मॉलिक्यूल वातावरण में जाकर सूर्य से आने वाली अतिरिक्त ऊर्जा को अवशोषित कर अल्ट्रा वाइट किरणों के रुप में परिवर्तित करता है.

हिमालय में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति खतरनाक
हैरानी की बात है कि मैट्रो सिटी से सैकड़ों मील दूर हिमालय पर भी इस ब्लैक कार्बन की उपस्थिति पायी गई है. साथ ही इस बात में कोई संदेह नहीं कि ये शहरों से ही हिमालय की ओर आया है. हाल ही में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर की तलहटी में मौजूद चीड़बाग और भोगबासा में लगाये गये दो मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्राप्त ताजा आंकड़े से हिमालय में मौजूद इस ब्लैक कार्बन की मौजूदगी को आंका गया है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमायन जियोलॉजी के शोधकर्ताओं के अनुसार हिमालय के वातावरण में मौजूद कार्बन पर ज्यादा शोध नहीं किया गया है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
बीते वर्ष वाडिया द्वारा सघन हिमालय क्षेत्र में स्थापित किये गये स्टेशनों से अब आंकड़े आने शुरू हो चुके हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी ने बाताया कि बीते एक साल के आंकड़ों के अनुसार हिमालय के वातावरण में न्यूनतम 0.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिकतम 4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक ब्लैक कार्बन पाया गया है. शोधकर्ताओं के अनुसार हिमालय में ब्लैक कार्बन सीजनल तौर पर देखने को मिला है. वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी के अनुसार हिमालय में ब्लैक कार्बन सबसे ज्यादा 4 माइक्रोकार्बन प्रति क्यूबिक मीटर गर्मियों में पाया गया है और उसके बाद मॉनसून में बरसात के कारण हिमालय में ब्लैक कार्बन की मात्र न्यूनतम पायी गई है. इसके बाद ब्लैक कार्बन की मात्रा सर्दी मे थोड़ी बढ़त दर्ज की गई है.

ब्लैक कार्बन का हिमालय पर असर
वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय के वातावरण में पायी गई ब्लैक कार्बन की मात्रा देश के अन्य इलाकों की तुलना में मामूली है. देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो दिल्ली में ब्लैक कार्बन की मात्रा हिमालय की तुलना में 11 गुना ज्यादा है. वहीं राज्य की राजधानी देहरादून की बात करें तो देहरादून के वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की मात्रा हिमालय की तुलना में 4 से 5 गुना ज्यादा है. स्वाभाविक है कि आपको हिमालय में कार्बन की मात्रा मामूली लगे, लेकिन इसकी दस्तक काफी खतरनाक है. जिसे हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधिता के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है.

देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग का असर पर्यावरण पर पड़ रहा है. जिससे मौसम चक्र लगातार बदल रहा है. वहीं आज हिमालय पर ब्लैक कार्बन का संकट गहराता जा रहा है. जिसका खुलासा वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर के निकट चीड़बासा और भोगबासा में लगाये गये दो मॉनिटरिंग स्टेशनों द्वारा प्राप्त आंकड़ों से हुआ है. जिससे चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. आइये जानते हैं ब्लैक कार्बन का हिमालय पर क्या असर पड़ रहा है?

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का बढ़ा खतरा.

हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग का असर
ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में पर्यावरण प्रदूषण विश्व की एक बड़ी समस्या बन कर सामने आयी है. विश्व के तमाम शोधकर्ताओं और प्रर्यावरणविदों ने बढ़ते प्रदूषण पर अपनी चिंता जताई है. प्रदूषण में एक महत्वपूर्ण घटक है ब्लैक कार्बन जो कि वातावरण में धरती की सतह से जाने वाला काला धुआं है. ये काला धुआं जंगलों में लगी आग, फसलों की पराली जलाने और वाहनों से निकलने वाला धुआं वायुमंडल में फैल जाता है. काले धुएं से बना ब्लैक कार्बन मॉलिक्यूल वातावरण में जाकर सूर्य से आने वाली अतिरिक्त ऊर्जा को अवशोषित कर अल्ट्रा वाइट किरणों के रुप में परिवर्तित करता है.

हिमालय में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति खतरनाक
हैरानी की बात है कि मैट्रो सिटी से सैकड़ों मील दूर हिमालय पर भी इस ब्लैक कार्बन की उपस्थिति पायी गई है. साथ ही इस बात में कोई संदेह नहीं कि ये शहरों से ही हिमालय की ओर आया है. हाल ही में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर की तलहटी में मौजूद चीड़बाग और भोगबासा में लगाये गये दो मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्राप्त ताजा आंकड़े से हिमालय में मौजूद इस ब्लैक कार्बन की मौजूदगी को आंका गया है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमायन जियोलॉजी के शोधकर्ताओं के अनुसार हिमालय के वातावरण में मौजूद कार्बन पर ज्यादा शोध नहीं किया गया है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
बीते वर्ष वाडिया द्वारा सघन हिमालय क्षेत्र में स्थापित किये गये स्टेशनों से अब आंकड़े आने शुरू हो चुके हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी ने बाताया कि बीते एक साल के आंकड़ों के अनुसार हिमालय के वातावरण में न्यूनतम 0.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिकतम 4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक ब्लैक कार्बन पाया गया है. शोधकर्ताओं के अनुसार हिमालय में ब्लैक कार्बन सीजनल तौर पर देखने को मिला है. वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी के अनुसार हिमालय में ब्लैक कार्बन सबसे ज्यादा 4 माइक्रोकार्बन प्रति क्यूबिक मीटर गर्मियों में पाया गया है और उसके बाद मॉनसून में बरसात के कारण हिमालय में ब्लैक कार्बन की मात्र न्यूनतम पायी गई है. इसके बाद ब्लैक कार्बन की मात्रा सर्दी मे थोड़ी बढ़त दर्ज की गई है.

ब्लैक कार्बन का हिमालय पर असर
वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय के वातावरण में पायी गई ब्लैक कार्बन की मात्रा देश के अन्य इलाकों की तुलना में मामूली है. देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो दिल्ली में ब्लैक कार्बन की मात्रा हिमालय की तुलना में 11 गुना ज्यादा है. वहीं राज्य की राजधानी देहरादून की बात करें तो देहरादून के वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की मात्रा हिमालय की तुलना में 4 से 5 गुना ज्यादा है. स्वाभाविक है कि आपको हिमालय में कार्बन की मात्रा मामूली लगे, लेकिन इसकी दस्तक काफी खतरनाक है. जिसे हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधिता के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है.

आक्सीजन के गढ़ हिमालय पर भी कार्बन की दस्तक-  Special

Note- फीड FTP पर (Himalay Black Carbor ki Chapet me) नाम से भेजी गई है।

Specail News
एंकर-  विश्व पृथ्वी दिवस के मोके अगर बात धरती और धरती पर मौजूद धरोहरों में से एक हिमालय की करें तो आज हिमालय पर ब्लेक कार्बन का संकट गहरा रहा है। वाडिया  हिमालयन भूविज्ञान संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर के निकट चीड़बासा और भोगबासा में लगाये गये दो मानीटरिंग स्टेशनों द्वारा प्राप्त आंकड़ो में ये चौकाने वाला खुलासा हुआ है। आइए आपको बतातें है क्या होता है ब्लेक कार्बन और किस तरह से दे रहा है ये हिमालय में दखल


वीओ- ग्लोबल वार्मिग के इस दौर में प्रदूषण विश्व की एक बड़ी समस्या बन कर सामने आयी है। विश्व के शोध कर्ताओं और तमाम प्रर्यावरण विदों ने लगातार हमारे चारों तरफ वातावरण में फैल रहे इस प्रदूषण की समस्या पर अपनी चिंता जताई है। प्रदूषण में एक महत्वपूर्ण घटक है ब्लेक कार्बन जो कि वातावरण में धरती की सतह से जाने वाला काला धुआं है। और ये काला धुआं जंगलो में लगी आग, फसलो की पिलारी जलाने और वाहनो से निकलने वाले धुएं के अलावा हर तरह के धुएं के हवा में पहूंचने से बनता है। काले धुएं से बना ब्लेक कार्बन मालिकुल वातावरण में जाकर सूर्य से आने वाली अतिरिक्त ऊर्जा को अवशोषित कर अल्ट्रावाडिट किरणो के रुप में परिवर्तित करता है। लेकिन हैरानी की बात है कि मैट्रो सिटी से सैकड़ो मील दूर सूदूर में स्थीत हिमालय पर भी इस ब्लेक कार्बन की उपस्थीती पायी गई है और इस बात में कोई संदेह नही कि ये मैदानी क्षेत्र में मौजूद बड़े शहरो से ही हिमालय की ओर आया है । हाल ही में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर की तलहटी में मौजूद चीड़बाग और भोगबासा में लगाये गये दो मानीटिरिंग स्टेशनों से प्राप्त ताजा आंकोड़े से हिमालय फिजाओं में मौजूद इस ब्लेक कार्बन की मौजूदगी को आंका गया है।


आक्सीजन के गढ़ हिमालय में ये है ब्लेक कार्बन की स्थीती-
वाडिया इन्सटिट्युट ऑफ हिमायन जियोलोजी के शोधक्रताओं के विषेशज्ञों के अनुसार हिमालय के एटमोसफियर में मौजूद कार्बन पर ज्यादा शोध नही किया गया है लेकिन बीते वर्ष वाडिया द्वारा सघन हिमालय क्षेत्र में स्थापित किये गये स्टेशनो से अब आंकड़े आने शुरु हो चुके हैं। वाडिया इंस्टिट्युट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी ने बाताया कि बीते एक साल के आंकड़ो के अनुसार हिमालय के वातावरण में न्युनतम 0.1 माइक्रोग्राम प्रति क्युबिक मीटर से अधिकतम 4 माइक्रोग्राम प्रति क्युबिक मीटर तक ब्लेक कार्बन पाया गया है।
बाइट- डॉ पीएस नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान  

बरसात में न्युनतम और गर्मियों में अधिकतम हिमालय पर ब्लेक कार्बन-
 शोधक्रताओं के अनुसार हिमालय की फिजाओं में ब्लेक कार्बन सीजनल तौर पर देखने को मिला है। वैज्ञानिक डॉ पीएस बीष्ट के अनुसार हिमालय में ब्लेक कार्बन सबसे ज्यादा 4 माइक्रोकार्बन प्रति क्युबिक मीटर गर्मियों में पाया गया है और उसके बाद मानसून के सीजन में बरसात के कारण हिमालय में ब्लेक कार्बन की मात्र न्युनतम पायी गई है और इसके बाद ब्लेक कार्बन की मात्रा शर्दी मे थोड़ा बड़ते हुई दर्ज की गई है।
बाइट- डॉ पीएस नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान  

ब्लेक कार्बन से हिमालय पर क्या असर पड़ेगा-
वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय के वातावरण में पायी गई ब्लेक कार्बन की मात्रा देश के अन्य इसाकों की तुलना में मामूली है। देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो दिल्ली में ब्लेक कार्बन की मात्रा हिमालय की तुलना में 11 गुना ज्यादा और राज्य की राजधानी देहरादून की बात करें तो देहरादून के वायुमण्डल में ब्लेक कार्बन की मात्रा हिमालय की तुलना में 4 से 5 गुना ज्यादा है। स्वाभाविक है कि आपको हिमालय में कार्बन की मात्रा मामूली लगे लेकिन एसा समझने की भूल मत कीजिए। हिमालय जो कि आक्सीजन का स्रोत है वहां कार्बन की दस्तक गंभीर है। इतना ही नही हिमालय के इको सिस्टम के चलते है पूरे हिमालय क्षेत्र में जैव विविधिता, हिमालय से निकलने वाली सैकड़ो नदी झरने हिमालय के ईका सिस्टम का हिस्सा है जिस पर इस ब्लेक कार्बन का बहुत बुरा प्रभाव वैज्ञानिकों के अनुसार पड़ने वाला है। 
बाइट- डॉ पीएस नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान  

हम और आप या सरकार क्या कर सकती है- 
पूरे विश्व पर प्रदूशष से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा दिन ब दिन गहराता जा रहा है एसे में विश्व की बहुमुल्य धरोहर में से एक हिमालय इसांन के लिए सबसे जरुरी आक्सीजन का एक बड़ा भंडार है एसे में इस आक्सीजन बैंक पर कार्बन की दस्तक मानव जगत के भविष्य के लिए काला संकेत है। हालांकी अभी यह मामूली है लेकिन आगे अाने वाले कुछ सालों में हिमालय में पाये जाने वाले ग्राफ के आधार पर हिमालय कब तक सुरक्षित रहेगा इसकां अदाजा लगाया जा सकता है। हालांकी यह रफ्तार मामूली भी हो लेकिन दिशा तय हो जाएगी एसे में शोधक्रताओं का मानना है कि इसान का जन्म धरती पर धरती है हिस्से के रुप में हुआ था लेकिन मानव प्रजाती ने धरती का प्रबंधन करना शुरु कर दिया है तो इसांन और हमारी तमाम संस्थाओं को चाहिए की वो विश्व पृथ्वी दिवस पर कम से कम पृथ्वी का न्युनतम दोहन करें और हमारे अस्तित्व के लिए सबसे जुरुरी इस धरती को अधिक से अधिक समझने का प्रयास करें। देहरादून से धीरज सजवाण की स्पेशल रिपोर्ट 

पीटीसी धीरज सजवाण


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Last Updated : Apr 22, 2019, 7:04 PM IST
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