देहरादून: गर्मियों में दावानल से उत्तराखंड के पहाड़ों के खूबसूरत नजारे आग के धुएं की परत से धुंधला गए हैं. उत्तराखंड के जंगलों में गर्मियों के मौसम में लगभग हर साल आग लगती है, जिसकी चपेट में पेड़-पौधों से लेकर छोटे-बड़े जानवर भी आ जाते हैं. उत्तराखंड में जंगलों में आग तेजी से फैली हुई है. इन घटनाओं से साफ है कि प्रदेश में जंगलों की आग को लेकर इस बार हालात बेकाबू हो सकते हैं.
अग्निशमन के अनुसार वर्ष 2018 से बात करे तो हर साल देहरादून जनपद के जंगलों में आग लगने के आंकड़ें बढ़ते जा रहे है. यह आंकड़े 2020 में कम भी हुए थे. इसका मुख्य कारण कोरोना महामारी थी, लेकिन वर्ष 2021 शुरू होने से अब तक फिर दोबारा से आग लगने के आंकड़ों में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है.
देहरादून जनपद में अग्निशमन द्वारा की गई कार्रवाई-
साल | आग की घटनाएं |
2018 | 129 |
2019 | 133 |
2020 | 36 |
2021* | 165 |
2021* के आंकड़े जनवरी से 17 अप्रैल तक के हैं.
कोरोना लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 में जंगलों में आग लगने की घटना बहुत कम हुई है. कोरोना की वजह से राज्य सरकार ने प्रदेश में लॉकडाउन लगा दिया था. जिस कारण लोग घरों में कैद हो गए थे. दूसरा कारण 2020 की गर्मियों में भी लगातार बारिश होती रही थी. जिस कारण आग लगने की घटना बहुत कम हुई. वन संपदा को नुकसान बहुत ही कम हुआ था. लेकिन वर्ष 2021 शुरू होने के बाद से अब तक फिर दोबारा से जंगलों में आग लगने की घटना में बढ़ोत्तरी हुई है.
इस साल की बात करें तो जंगलों में आग की घटनाएं लगातार सुनने और देखने को मिल रही है. इस सभी के बीच वनाग्नि की घटनाओं से निपटने के लिए देहरादून अग्निशमन विभाग की टीम मुस्तैदी के साथ काम कर रही है. विभाग को आग की घटनाओं और जनरल फायर की घटनाओं को बुझाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, इस समय राजधानी देहरादून में अग्निशमन विभाग में कुल 182 फायरमैनों की जरूरत है, जबकि विभाग के पास मात्र जिले में सिर्फ 80 फायरमैन मौजूद हैं.
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मुख्य अग्निशमन अधिकारी आरएस खाती ने जानकारी देते हुए बताया कि 2020 में कोरोनाकाल रहा. जिस कारण लोगों का आवागमन जंगलों में कम रहा था.पहाड़ों में लोगों का घर जंगल से होकर गुजरता है और जब लोग बीड़ी-सिगरेट से ही जंगलों में आग लगती है. दूसरा 2020 में मौसम ने भी काफी साथ दिया था. 2020 में गर्मियों के समय पर लगातार बारिश होती रही थी. जिस कारण आग लगने की संख्या में कमी थी.