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Project Cheetah में WII देहरादून के वैज्ञानिकों की अहम भूमिका, ऐसे भारत आया सबसे फुर्तीला शिकारी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने बर्थडे पर 'Project Cheetah' के तहत मध्य प्रदेश में कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को छोड़ा था. इस रिपोर्ट में आज हम आपको बताएंगे कि आखिर 10 साल बाद प्रोजेक्ट चीता को कैसे हरी झंडी मिली और इस प्रोजेक्ट का उत्तराखंड से क्या कनेक्शन हैं ?

प्रोजेक्ट चीता
Project Cheetah
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Published : Sep 26, 2022, 2:00 PM IST

देहरादून: भारत में चीतों को वापस लाने वाला 'Project Cheetah' दुनिया के सबसे बड़े वाइल्ड लाइफ ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट (Wildlife Translocation Project) में से एक है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने बर्थडे (17 सितंबर, 2022) पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क छोड़े थे. आज हम आपको पीएम मोदी के चीता प्रोजेक्ट का उत्तराखंड कनेक्शन बताएंगे.

2010 में 300 करोड़ का प्रोजेक्ट बना था: तकरीबन 12 साल पहले जुलाई, 2010 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. उस वक्त इसके लिए 300 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया गया था. लेकिन कानूनी पेंच फंसने के कारण अब तक यह प्रोजेक्ट लटका रहा. इस कानूनी गुत्थी को सुलझाने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गया. दिलचस्प बात यह है कि इसमें देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान (Wildlife Institute of India) के वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही.

इसलिए रुक गई थी चीतों की राह: अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने में कानूनी पेंच कैसे फंसा, इसके पीछे एक दिलचस्प घटनाक्रम है. हुआ यूं कि साल 2011 में गुजरात के गिर अभयारण्य में संरक्षित एशियाई शेरों में से कुछ को मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो अभयारण्य में लाने की योजना बनाई गई. इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायिर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान ही नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का मुद्दा भी उठा.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक शब्द से ठंडा पड़ा था मामला: मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नामीबिया से अफ्रीकी चीते भारत लाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. क्योंकि विलुप्त होने की कगार पहुंची 'जंगली भैंसा' और 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' जैसी देशी प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. कोर्ट के इस ऑर्डर में एक शब्द यह लिखा गया कि विदेश से हिन्दुस्तान में चीता लाना illegal यानि अवैधानिक है. उसके बाद अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान नहीं लाया जा सका.
पढ़ें- PM नरेंद्र मोदी ने MP के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए चीतों को विशेष बाड़े में छोड़ा

1948 में भारत से विलुप्त हो गए थे चीते: दरअसल, एशियाई चीते साल 1948 में देश में विलुप्त हो गए थे. इसके बाद भारत सरकार समय-समय पर इस दुर्लभ वन्यजीव को विदेश से हिन्दुस्तान लाने और उसकी वंश वृद्धि की योजना पर विचार करती रही. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जुलाई 2010 में भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. लेकिन वर्ष 2012 में हुए सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद इस प्रोजेक्ट पर अमल न हो सका.

2019 में सरकार ने दायर की थी पुनर्विचार याचिका: इसके बाद भारत सरकार की ओर से अगस्त 2019 में एक पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना है कि पूर्व में हुए आर्डर में illegal शब्द पर बहस की जा सकती है. कोर्ट के रुख में आई तब्दीली को बड़ी उपलब्धि माना गया. फिर कोर्ट ने कहा कि चीतों को विदेश से लाने और बसाने से पहले एक बार फिर जरूरी अध्ययन कर लिया जाए. जिसके लिए वन्य जीव विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की गई.

भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून का चीते लाने में अहम योगदान: कमेटी में वन्यजीव विशेषज्ञ एमके रणजीत सिंह (Wildlife expert MK Ranjit Singh), भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के तत्कालीन निदेशक धनंजय मोहन (Director Dhananjay Mohan) और वन मंत्रालय के डीआईजीएफ (वाइल्डलाइफ) शामिल थे. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बिन्दुवार बताया कि विदेशी चीतों को हिन्दुस्तान में लाया जाना क्यों जरूरी है? रिपोर्ट में कहा गया कि चीतों के भारत में वापस आने से घास के मैदानी इलाकों और खुले जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में मदद मिलेगी. ये जैव विविधता को भी बरकरार रखेगा.

2020 में सुप्रीम कोर्ट ने चीते लाने को दी थी हरी झंडी: इस रिपोर्ट के आधार पर जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी. रिपोर्ट और दलीलें तैयार करने में भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों को लम्बे समय तक रात-दिन एक करने पड़े. जिसके सुखद परिणाम सबके सामने हैं. अब अद्भुत फुर्ती और रफ्तार वाले वन्य जीव 'चीता' की हिन्दुस्तान में आमद हो चुकी है.

देहरादून: भारत में चीतों को वापस लाने वाला 'Project Cheetah' दुनिया के सबसे बड़े वाइल्ड लाइफ ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट (Wildlife Translocation Project) में से एक है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने बर्थडे (17 सितंबर, 2022) पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क छोड़े थे. आज हम आपको पीएम मोदी के चीता प्रोजेक्ट का उत्तराखंड कनेक्शन बताएंगे.

2010 में 300 करोड़ का प्रोजेक्ट बना था: तकरीबन 12 साल पहले जुलाई, 2010 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. उस वक्त इसके लिए 300 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया गया था. लेकिन कानूनी पेंच फंसने के कारण अब तक यह प्रोजेक्ट लटका रहा. इस कानूनी गुत्थी को सुलझाने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गया. दिलचस्प बात यह है कि इसमें देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान (Wildlife Institute of India) के वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही.

इसलिए रुक गई थी चीतों की राह: अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने में कानूनी पेंच कैसे फंसा, इसके पीछे एक दिलचस्प घटनाक्रम है. हुआ यूं कि साल 2011 में गुजरात के गिर अभयारण्य में संरक्षित एशियाई शेरों में से कुछ को मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो अभयारण्य में लाने की योजना बनाई गई. इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायिर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान ही नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का मुद्दा भी उठा.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक शब्द से ठंडा पड़ा था मामला: मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नामीबिया से अफ्रीकी चीते भारत लाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. क्योंकि विलुप्त होने की कगार पहुंची 'जंगली भैंसा' और 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' जैसी देशी प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. कोर्ट के इस ऑर्डर में एक शब्द यह लिखा गया कि विदेश से हिन्दुस्तान में चीता लाना illegal यानि अवैधानिक है. उसके बाद अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान नहीं लाया जा सका.
पढ़ें- PM नरेंद्र मोदी ने MP के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए चीतों को विशेष बाड़े में छोड़ा

1948 में भारत से विलुप्त हो गए थे चीते: दरअसल, एशियाई चीते साल 1948 में देश में विलुप्त हो गए थे. इसके बाद भारत सरकार समय-समय पर इस दुर्लभ वन्यजीव को विदेश से हिन्दुस्तान लाने और उसकी वंश वृद्धि की योजना पर विचार करती रही. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जुलाई 2010 में भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. लेकिन वर्ष 2012 में हुए सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद इस प्रोजेक्ट पर अमल न हो सका.

2019 में सरकार ने दायर की थी पुनर्विचार याचिका: इसके बाद भारत सरकार की ओर से अगस्त 2019 में एक पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना है कि पूर्व में हुए आर्डर में illegal शब्द पर बहस की जा सकती है. कोर्ट के रुख में आई तब्दीली को बड़ी उपलब्धि माना गया. फिर कोर्ट ने कहा कि चीतों को विदेश से लाने और बसाने से पहले एक बार फिर जरूरी अध्ययन कर लिया जाए. जिसके लिए वन्य जीव विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की गई.

भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून का चीते लाने में अहम योगदान: कमेटी में वन्यजीव विशेषज्ञ एमके रणजीत सिंह (Wildlife expert MK Ranjit Singh), भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के तत्कालीन निदेशक धनंजय मोहन (Director Dhananjay Mohan) और वन मंत्रालय के डीआईजीएफ (वाइल्डलाइफ) शामिल थे. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बिन्दुवार बताया कि विदेशी चीतों को हिन्दुस्तान में लाया जाना क्यों जरूरी है? रिपोर्ट में कहा गया कि चीतों के भारत में वापस आने से घास के मैदानी इलाकों और खुले जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में मदद मिलेगी. ये जैव विविधता को भी बरकरार रखेगा.

2020 में सुप्रीम कोर्ट ने चीते लाने को दी थी हरी झंडी: इस रिपोर्ट के आधार पर जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी. रिपोर्ट और दलीलें तैयार करने में भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों को लम्बे समय तक रात-दिन एक करने पड़े. जिसके सुखद परिणाम सबके सामने हैं. अब अद्भुत फुर्ती और रफ्तार वाले वन्य जीव 'चीता' की हिन्दुस्तान में आमद हो चुकी है.

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