मसूरीः पहाड़ों की रानी मसूरी में हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की 75वीं पुण्यतिथि पर उन्हें चंद्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके पर मसूरी माल रोड पर स्थापित चंद्र कुंवर बर्त्वाल की प्रतिमा पर शहर के कई राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया.
14 सितंबर मंगलवार को हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की 75वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके पर चंद्र कुंवर शोध संस्थान मसूरी के अध्यक्ष शूरवीर सिंह भंडारी ने कहा कि चंद्र कुंवर बर्त्वाल 28 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए थे. लेकिन इस छोटी सी उम्र में भी वह देश-दुनिया को सुंदर साहित्य दे गए.
चंद्र कुंवर बर्त्वाल की कविताएं मानवता को समर्पित थीं. बेशक वह प्रकृति के कवि पहले थे. शूरवीर ने कहा कि बर्त्वाल हिंदी साहित्य के एक मात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने हिमालय, प्रकृति व पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य की सुंदर भावनाओं और संवेदनाओं को अपनी कविताओं में पिरोया. उनकी कविताएं हिमालय व प्रकृति प्रेम की साक्षी रही हैं.
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कालिदास को मानते थे गुरुः 'मैं न चाहता युग-युग तक पृथ्वी पर जीना, पर उतना जी लूं जितना जीना सुंदर हो. मैं न चाहता जीवन भर मधुरस ही पीना, पर उतना पी लूं जिससे मधुमय अंतर हो'. ये पंक्तियां हैं हिंदी के कालिदास के रूप में जाने माने प्रकृति के चहेते कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की. विश्व कवि कालिदास को अपना गुरु मानने वाले चन्द्र कुंवर बर्त्वाल ने चमोली के पोखरी और रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि में अध्यापन भी किया था. चन्द्र कुंवर बर्त्वाल को प्रकृति प्रेमी कवि माना जाता है. उनकी कविताओं में हिमालय, झरनों, नदियों, फूलों, खेतों, बसंत का वर्णन तो होता ही था. लेकिन उपनिवेशवाद का विरोध भी दिखता था. आज उनके काव्य पर कई छात्र पीएचडी कर रहे हैं.
युवावस्था में हुए टीबी के शिकारः कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल प्रमुख कविताओं में विराट ज्योति, कंकड़-पत्थर, पयस्विनी, काफल पाकू, जीतू, मेघ नंदिनी हैं. युवावस्था में ही वह टीबी के शिकार हो गए थे. इसके चलते उन्हें पांवलिया के जंगल में बने घर में एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा था. मृत्यु के सामने खड़े कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल ने 14 सितंबर, 1947 को हिंदी साहित्य को बेहद समृद्ध खजाना देकर दुनिया को अलविदा कह दिया था.
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मृत्यु के बाद मिली पहचानः कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की मृत्यु के बाद उनके सहपाठी शंभुप्रसाद बहुगुणा ने उनकी रचनाओं को प्रकाशित करवाया और यह दुनिया के सामने आईं. इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि आज भी हिंदी साहित्य के अनमोल रत्न कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल को राष्ट्रीय स्तर पर वो सम्मान प्राप्त नहीं हो सका है, जिसके वह हकदार थे. उनकी कर्मस्थली, पांवलिया जंगल का वह घर जहां मृत्यु से पहले उन्होंने अपना सर्वात्तम काव्य लिखा था, आज खंडहर हो रहा है. हालांकि प्रशासन कई बार दावा कर चुका है कि वहां संग्राहलय और पर्यटन स्थल बनाया जाएगा.
जन कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम मालकोटी, पट्टी तल्ला नागपुर में 20 अगस्त 1919 को हुआ था. उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हजार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिंदी साहित्य को दिया. मृत्यु पर आत्मीय ढंग और विस्तार से लिखने वाले चंद्र कुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि हैं.