देहरादून: आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के रूप में एक बड़ी समस्या का सामना कर रही है. इस समस्या से निपटन के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं. इस जलवायु परिवर्तन के भविष्य में क्या दुष्परिणाम होंगे इसको लेकर जर्मनी स्थित पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं एक शोध किया है, जिसमें उन्होंने चौंकाने वाले खुलासे किये हैं.
शोधकर्ताओं के अनुसार पृथ्वी पर बढ़ रहे तापमान के चलते हिमालय क्षेत्र की हजारों प्राकृतिक झीलों से बाढ़ का खतरा बन सकता है. उत्तराखंड में भी हजारों प्राकृतिक झील मौजूद है. इन पर जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ेगा. क्या जिस खतरे की आशंका पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जताई है वो उत्तराखंड के लिए कोई बड़ी तबाही को कारण तो नहीं बनेगा. इसकी पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
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हिमालय की पांच हजार झीलों पर बाढ़ का खतरा
पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी, जर्मनी के शोधकर्ताओं उपग्रह से प्राप्त डेटा और स्थलाकृति की मदद से झीलों के मॉडल के करीब 5.4 अरब सिमुलेशन तैयार किए हैं. इन सिमुलेशन के विश्लेषण से उन्हें पता चला है कि हिमालय क्षेत्र की करीब 5,000 झीलों से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. शोधकर्ताओं के अनुसार इन झीलों के किनारे कमजोर हैं और अस्थिर हो चुके हैं. लिहाजा जिन झीलों में ज्यादा पानी है, उन में बाढ़ का खतरा उतना ही बड़ा है.
यहीं नही निकट भविष्य में पूर्वी हिमालय की हिमनद झीलों के कारण आने वाली बाढ़ का खतरा भी तीन गुना अधिक है. क्योंकि अगले दशक में हिमालयी ग्लेशियरों का करीब दो-तिहाई हिस्सा पिघल सकता है, जिसके चलते इन झीलों में पानी की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाएगी, जिससे नदी किनारे और घाटियों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकता हैं.
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क्या है सुपर ग्लेशियर और मोराइन झील?
इस बारे में वाडिया संस्थान के हिमनद वैज्ञानिक डीपी डोभाल से भी बात की गई. उन्होंने बताया कि यह बात सत्य है कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. इसकी कई वजह है, जिन पर रिसर्च का चल रही है. लेकिन जहां-जहां ग्लेशियर होगा वहां झील जरूर बनेंगे. हिमालय में जितने ग्लेशियर हैं करीब उसके दोगुने ग्लेशियर झील भी मौजूद हैं. ग्लेशियर में दो तरह के झील पाए जाती हैं. पहला अस्थायी झील और दूसरी स्थायी झील.
हालांकि, अस्थायी झील को सुपर ग्लेशियर झील कहते हैं, जो खतरनाक नहीं होती हैं और ये झील अपने आप ही समाप्त हो जाती है, तो वही स्थायी झील को मोराइन झील कहते हैं, इस तरह की झील ग्लेशियर के आगे या फिर साइड में बनती है. ये झील सबसे ज्यादा खतरनाक होती है. क्योंकि इनका आकार बहुत बड़ा होता है, लिहाज इनमें खतरा ज्यादा होता है. हिमालय रेंज के ग्लेशियर में हजारों झील मौजूद है, लेकिन अभी कोई भी खतरनाक झील नहीं है. फिर भी समय-समय पर इन झीलों की निगरानी की जाती है.
झील टूटने से बढ़ जाता है बाढ़ का खतरा
वैज्ञानिक डोभाल के मुताबिक अगर कोई झील टूटती है, तो उससे भारी नुकसान होता है. लेकिन यह भी सबसे अहम है कि जो झील टूट रही है उसके आसपास किस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर है, ये नुकसान को बयां करता है. क्योंकि झील के टूटने से आसपास की चीजें तबाह हो जाती हैं. लेकिन अगर कोई ऐसी झील टूटती है जो बहुत ऊपर है और वहां आसपास कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, तो इससे कोई नुकसान नहीं होगा. हालांकि, इसका असर मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ के रूप में जरूर देखने को मिलेगा. क्योंकि झील के टूटने से पानी का जलस्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है.
ग्लेशियर झील से घट चुकी है बड़ी घटनाएं
वैज्ञानिक डोभाल ने बताया कि ग्लेशियर और झीलों पर निगरानी रखी जा रही है. क्योंकि पिछले 10 सालों में राज्य के भीतर दो बड़ी घटनाएं घट चुकी है. पहली साल 2013 में केदारनाथ में आयी आपदा और साल 2017 में गंगोत्री में आयी आपदा. हालांकि, गंगोत्री में साल 2017 में आयी आपदा से कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था, क्योंकि वहां जनसंख्या बेहद कम थी. लेकिन दूसरी झील से खतरा जरूर है, यदि समय-समय पर देख-रेख किया जाए तो झील से होने वाले खतरे को टाला जा सकता है.
उत्तराखंड में करीब 1200 ग्लेशियर झील है मौजूद
वैज्ञानिक डोभाल के अनुसार ग्लेशियर पिघलने से कई नई परेशानियां भी खड़ी हो गयी है. क्योंकि ग्लेशियर के पिघलने वो झील में तब्दील हो रहे है. उत्तराखंड में करीब 1200 ग्लेशियर झील हैं, जिसमें से एक भी झील, खतरनाक नहीं है. बावजूद इसके ग्लेशियर झील के टूटने का खतरा बना रहता है. लिहाजा लगातार झीलों पर शोध किया जा रहा है. साथ ही ये भी देखा जा रहा है कि कौन सी झील पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.