देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 जीतने की लड़ाई जारी है. भाजपा ने पहली सूची से 57 तो कांग्रेस ने भी 53 दमदार सिपाहियों (प्रत्याशी) को विधानसभा चुनाव के युद्ध में उतार दिया है. हालांकि, कांग्रेस के मजबूत दावेदार हरीश रावत की सीट पर अभी संशय बना हुआ है. इसी के मद्देनजर कांग्रेस की बाकी 17 सीटों की दूसरी सूची तैयार की जा रही है. दूसरी तरफ भाजपा से निष्कासित कांग्रेस का दामन थामने वाले हरक सिंह रावत के चुनाव लड़ने पर भी माथापच्ची जारी है. पहली सूची में हरक का नाम उनके मुताबिक सीट से नहीं आने के बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि ये चुनाव हरक सिंह रावत के लिए वाटरलू युद्ध की तरह आखिरी चुनाव ना बन जाए.
कांग्रेस में वापसी कर चुके हरक सिंह रावत को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि हरक सिंह रावत को पौड़ी की चौबट्टाखाल विधानसभा सीट से कांग्रेस चुनाव लड़ा सकती है. चौबट्टाखाल विधानसभा सीट पर भाजपा के सतपाल महाराज का कब्जा है. 2012 के परिसीमन से पहले बीरोंखाल सीट से 2002 व 2007 में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत लगातार विधायक रही हैं. इस पूरे क्षेत्र में महाराज परिवार का दबदबा रहा है. 2017 में सतपाल महाराज ने कांग्रेस के राजपाल सिंह बिष्ट को 7,354 वोट से हराया था और एक बार फिर सतपाल महाराज सीट से उम्मीदवार हैं.
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महाराज से हारे तो राजनीति करियर पर पूर्ण विराम ! : हरक सिंह रावत राज्य गठन के बाद से लगातार विधायक चुने जाते आ रहे हैं. लेकिन अगर चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज से चुनाव हारते हैं तो हरक सिंह रावत के राजनीतिक करियर पर पूर्ण विराम लग सकता है. ऐसा पहली बार होगा कि अपनी बातों से जनता के भरोसे को जीतने वाले हरक सिंह रावत हार का मुंह देखेंगे. ये कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं कि इस चुनावी चाल के पासे हरीश रावत द्वारा खेले जा रहे हैं.
क्या हरीश की चाल में फंसे हरकः 16 जनवरी की रात को भाजपा से निष्कासित हरक सिंह रावत 21 जनवरी को कांग्रेस में शामिल हुए. इस बीच वह दिल्ली में डेरा डाले रहे. लगातार कांग्रेस नेताओं के संपर्क जुटाने में रहे. लेकिन दिल्ली में बैठे उत्तराखंड के दिग्गज कांग्रेस नेता हरीश रावत के दांव से हरक सिंह रावत कांग्रेस की चौखट पार नहीं कर पाए. यहां तक कि हरक सिंह को कांग्रेस में शामिल कराने के लिए हरीश रावत के खास कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और हरीश रावत के बीच मतभेद भी देखे गए. लेकिन हरीश रावत ने अपनी शर्तों के मुताबिक ही हरक सिंह की वापसी कराई.
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माफी पर शामिल हुए हरकः हरक सिंह रावत ने 2016 की कथनी पर हरीश रावत से माफी मांगी. इसके बाद हरीश रावत समेत कांग्रेस के कई दिग्गजों ने हरक सिंह रावत और उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं को कांग्रेस में शामिल कराया. कांग्रेस में शामिल होने से पहले हरक सिंह रावत ने बाकायदा एक पत्र भी लिखा जिसमें उन्होंने लिखा कि 2016 में भाजपा ने कांग्रेस सरकार को अस्थिर कर अपनी सरकार बनाने के लिए कांग्रेस विधायकों का दुरुपयोग किया और लोकतंत्रात्मक तरीकों को तार-तार कर दिया था.
2016 की घटनाः 2012 में आई विजय बहुगुणा की कांग्रेस सरकार में भी हरक सिंह रावत कैबिनेट मंत्री थे. 2014 में केदारनाथ आपदा के बाद के हालातों को नहीं संभाल पाए विजय बहुगुणा को गद्दी से उतारा गया था. फिर हरीश रावत मुख्यमंत्री बने थे. 2016 में हरक ने अन्य विधायकों समेत हरीश रावत सरकार को छोड़ दिया था, जिसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई थी और राज्य में कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगा था. हालांकि, बाद में सरकार बहाल हो गई थी लेकिन 2016 में कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए हरक सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण रही. इसलिए हरीश रावत ने साफ तो नहीं कहा लेकिन कई बार अपने बयानों ये साफ जरूर किया था कि अगर हरक सिंह रावत वर्ष 2016 में उनकी सरकार गिराने के कृत्य को लेकर माफी मांगें तो इसके बाद ही पार्टी में उनकी एंट्री कराई जाएगी.
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कौन हैं हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत भारत में उत्तराखंड के राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 15 दिसंबर 1960 को हुआ. हरक सिंह रावत ने 1984 में कला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. उन्होंने 1996 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर, उत्तराखंड से सैन्य विज्ञान में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री प्राप्त की. हरक की पत्नी का नाम दीप्ति रावत है. 1991 में हरक सिंह रावत ने पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मंत्री बने थे. हरक सिंह रावत, 2016 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ विद्रोह करने वाले नौ विधायकों में से एक थे. कांग्रेस द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे.
हरक का राजनीतिक सफरः 1991 में पौड़ी सीट पर जीत दर्ज की और तब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बीजेपी सरकार में उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री बनाया गया. 1993 में बीजेपी ने एक बार फिर पौड़ी सीट से अवसर दिया और वे फिर से जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे. 1998 में टिकट न मिलने से नाराज हुए हरक ने बीजेपी का साथ छोड़ते हुए बसपा की सदस्यता ली. उत्तराखंड में 2002 में हुए विधानसभा के पहले चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर लैंसडाउन सीट से जीते. 2007 में उन्होंने एक बार फिर लैंसडाउन सीट से जीत दर्ज की. तब नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिली. 2012 के चुनाव में हरक ने सीट बदलते हुए रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और विधानसभा में पहुंचे. 2016 के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद हरक सिंह कांग्रेस के नौ अन्य विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कोटद्वार सीट से मौका दिया और जीते.