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गांव से ग्राउंड रिपोर्ट: बुजुर्गों के आगे कोरोना ने टेके घुटने, पहाड़ी जीवनशैली ने कोरोना से बचाया

देहरादून के चकराता के ग्रामीण इलाकों के बुजुर्गों को कोरोना संक्रमण का कोई डर नहीं है. बुजुर्गों का कहना है हमारा पहाड़ी खान-पान के कारण ही कोरोना संक्रमण का हमारे शरीर पर कोई असर नहीं है.

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देहरादून
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Published : Jun 1, 2021, 4:42 PM IST

Updated : Jun 1, 2021, 8:34 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार कुछ कम हुई है, लेकिन पहाड़ी इलाकों स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है. इसी के मद्देनजर सरकार ने कोरोना कर्फ्यू को एक हफ्ते और बढ़ा दिया है. ग्रामीण इलाकों में क्या हालात हैं, ये जानने के लिए हमारी टीम ने देहरादून की चकराता विधानसभा के दुर्गम ग्रामीण इलाकों का रुख किया.

बुजुर्गों के आगे कोरोना ने टेके घुटने

ग्रामीण इलाकों में सीमित स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के चलते कोरोना संक्रमण से क्या हालात हैं, ये जानने के लिए हमारी टीम चकराता विधानसभा के कुछ ग्रामीण इलाकों में पहुंची और वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए इन गांवों का रुख किया जहां पर तस्वीरें बिल्कुल बदली हुई हैं.

Dehradun
बुजुर्गों के आगे कोरोना से टेके घुटने

चकराता के ग्रामीणों का कहना है कि यहां संक्रमण की दहशत बेहद कम है. लोग इसे एक सामान्य वायरल समझ रहे हैं. इसी कारण लोगों में जागरुकता की भी काफी कमी देखी जा रही है. फेस मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. हालांकि इसके अलावा ग्रामीणों का कहना है कि गांव में हालात बेहतर है. कोरोना संक्रमण का असर गांव में नहीं है.

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ग्रामीण महिलाओं को भी छू नहीं पाया कोरोना

बुजुर्गों के आगे कोरोना ने कैसे टेके घुटने?

इस दौरान हमने खासतौर से जिंदगी का एक अहम पड़ाव पार कर चुके बुजुर्गों से बातचीत की और उनसे कोविड पर चर्चा की. कोरोना वायरस में सबसे ज्यादा जोखिम बुजुर्गों के लिए ही बताया जा रहा है. हमने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले तकरीबन 60 और 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके इन बुजुर्गों से बातचीत की. पहाड़ी अंचलों के इन बुजुर्गों का मानना है कि उनकी पारम्परिक जीवन शैली, खान-पान और दिनचर्या के कारण ही कोरोना संक्रमण का उनपर कुछ असर नहीं हुआ.

ये भी पढ़ेंः दुल्हन निकली कोरोना पॉजिटिव, PPE किट पहन दूल्हे संग लिए सात फेरे

बुजुर्गों की सेहत का राज

बुजुर्गों ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि आज की जीवन शैली बिल्कुल वेस्टर्न कल्चर पर आधारित हो गई है. बुजुर्गों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में कोदा, झंगोरा खाया है. दूध और मक्खन का निरंतर सेवन किया है. जिससे उनके शरीर की इम्यूनिटी मजबूत है. इसी कारण 70 और 80 साल के बुजुर्गों पर भी कोरोना जैसी महामारी का कोई असर नहीं पड़ा है.

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रोज 2 लीटर दूध पीते और जमकर मेहनत करते हैं बुजुर्ग

वैक्सीन की दूसरी डोज न लगने से आक्रोशित बुजुर्ग

पहाड़ी क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में वैक्सीन की काफी किल्लत है. खास तौर से सबसे ज्यादा जोखिम में माने जाने वाले बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें वैक्सीन का पहला डोज दिया गया है. लेकिन दूसरा डोज उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है. ग्रामीणों ने सरकार से जल्द से जल्द बुजुर्गों को दूसरा डोज लगवाने की मांग की है.

देहरादूनः उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार कुछ कम हुई है, लेकिन पहाड़ी इलाकों स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है. इसी के मद्देनजर सरकार ने कोरोना कर्फ्यू को एक हफ्ते और बढ़ा दिया है. ग्रामीण इलाकों में क्या हालात हैं, ये जानने के लिए हमारी टीम ने देहरादून की चकराता विधानसभा के दुर्गम ग्रामीण इलाकों का रुख किया.

बुजुर्गों के आगे कोरोना ने टेके घुटने

ग्रामीण इलाकों में सीमित स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के चलते कोरोना संक्रमण से क्या हालात हैं, ये जानने के लिए हमारी टीम चकराता विधानसभा के कुछ ग्रामीण इलाकों में पहुंची और वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए इन गांवों का रुख किया जहां पर तस्वीरें बिल्कुल बदली हुई हैं.

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बुजुर्गों के आगे कोरोना से टेके घुटने

चकराता के ग्रामीणों का कहना है कि यहां संक्रमण की दहशत बेहद कम है. लोग इसे एक सामान्य वायरल समझ रहे हैं. इसी कारण लोगों में जागरुकता की भी काफी कमी देखी जा रही है. फेस मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. हालांकि इसके अलावा ग्रामीणों का कहना है कि गांव में हालात बेहतर है. कोरोना संक्रमण का असर गांव में नहीं है.

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ग्रामीण महिलाओं को भी छू नहीं पाया कोरोना

बुजुर्गों के आगे कोरोना ने कैसे टेके घुटने?

इस दौरान हमने खासतौर से जिंदगी का एक अहम पड़ाव पार कर चुके बुजुर्गों से बातचीत की और उनसे कोविड पर चर्चा की. कोरोना वायरस में सबसे ज्यादा जोखिम बुजुर्गों के लिए ही बताया जा रहा है. हमने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले तकरीबन 60 और 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके इन बुजुर्गों से बातचीत की. पहाड़ी अंचलों के इन बुजुर्गों का मानना है कि उनकी पारम्परिक जीवन शैली, खान-पान और दिनचर्या के कारण ही कोरोना संक्रमण का उनपर कुछ असर नहीं हुआ.

ये भी पढ़ेंः दुल्हन निकली कोरोना पॉजिटिव, PPE किट पहन दूल्हे संग लिए सात फेरे

बुजुर्गों की सेहत का राज

बुजुर्गों ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि आज की जीवन शैली बिल्कुल वेस्टर्न कल्चर पर आधारित हो गई है. बुजुर्गों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में कोदा, झंगोरा खाया है. दूध और मक्खन का निरंतर सेवन किया है. जिससे उनके शरीर की इम्यूनिटी मजबूत है. इसी कारण 70 और 80 साल के बुजुर्गों पर भी कोरोना जैसी महामारी का कोई असर नहीं पड़ा है.

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रोज 2 लीटर दूध पीते और जमकर मेहनत करते हैं बुजुर्ग

वैक्सीन की दूसरी डोज न लगने से आक्रोशित बुजुर्ग

पहाड़ी क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में वैक्सीन की काफी किल्लत है. खास तौर से सबसे ज्यादा जोखिम में माने जाने वाले बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें वैक्सीन का पहला डोज दिया गया है. लेकिन दूसरा डोज उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है. ग्रामीणों ने सरकार से जल्द से जल्द बुजुर्गों को दूसरा डोज लगवाने की मांग की है.

Last Updated : Jun 1, 2021, 8:34 PM IST
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