देहरादून: उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश और दुनिया में ट्रेकिंग को लेकर लोगों का रुझान पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है. स्थिति यह है कि अकेले उत्तराखंड में ही ट्रेकिंग का व्यवसाय अब करोड़ों तक जा पहुंचा है. खास बात ये है कि इतने व्यापक स्तर पर बढ़ रहे इस रुझान के बावजूद प्रदेश में अब तक इसको लेकर कोई नियमावली ही नहीं बनी है. नतीजतन बड़ी संख्या में लोग ट्रेकिंग के शौक में अपनी जान भी गंवा रहे हैं. हालांकि, अब राज्य सरकार ने ट्रेकर्स की सुरक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. जिससे ट्रेकिंग के दीवाने अपने इस शौक को सुरक्षा के साथ पूरा कर सकते हैं.
ट्रेकिंग के लिए उत्तराखंड एक बड़ा हब बनता जा रहा है. यहां करीब 6 दर्जन से ज्यादा विश्व स्तरीय ट्रेकिंग रूट मौजूद हैं.जिसमें तमाम राज्यों के साथ दूसरे देशों से भी लोग ट्रेकिंग के लिए पहुंचते हैं. राज्य में ऐसे कई ट्रेकिंग रूटस डेवलप किए गए हैं जिस पर ट्रेकिंग करना रोमांचक तो है लेकिन सावधानी की कमी जानलेवा भी साबित हो सकती है.
बहरहाल, कई ऑपरेटर्स ट्रेकिंग करवाने के लिए प्रदेश में मौजूद हैं. हज़ारों लोग इनके माध्यम से अपने ट्रेकिंग के शौक को पूरा भी कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षात्मक रूप से व्यवस्थाओं की कमी कई बार लोगों के लिए खतरनाक भी साबित हो रही है. सबसे पहले जानिए क्या है ट्रेकिंग को लेकर स्थिति.
- उत्तराखंड में करीब 50 विश्व स्तरीय ट्रेक हैं मौजूद.
- छोटे बड़े ट्रेक मिलाकर इनकी संख्या सैकड़ों में है.
- राज्य में अकेले ट्रेकिंग का करीब 100 करोड़ का व्यवसाय है.
- 4500 मी की ऊंचाई को को ट्रेकिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
- इससे ऊपर के क्षेत्र को पर्वतारोहण के रूप में रखा गया है.
- उत्तराखंड में ट्रेकिंग की तमाम संभावनाएं है.
- इसके बावजूद भी प्रदेश में ट्रेकिंग को कोई नियमावली नहीं है.
- हिमालय राज्यों में करीब 150 लोग पिछले 5 साल में जान गंवा चुके हैं.
- उत्तराखंड सरकार के पास ट्रेकिंग के दौरान मरने वालों का सटीक आंकड़ा नहीं है.
- हिमाचल और उत्तराखंड में ट्रेकिंग से जाती है सबसे ज्यादा जान
एक रिपोर्ट के अनुसार इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (IMF) पर्वतारोहण को लेकर रूपरेखा तैयार करता है. अब तक पिछले 5 साल में करीब 150 लोगों के इसमें मारे जाने का भी रिकॉर्ड तैयार किया गया है, लेकिन यह संख्या हकीकत में इससे भी कहीं ज्यादा है. उत्तराखंड में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाने वालों से लेकर तमाम दूसरे ऑपरेटर की संख्या को देखें तो यह सैकड़ो में यानी प्रदेश में ट्रेकिंग को लेकर पर्यटकों की बढ़ती संख्या के बीच सैकड़ों ऑपरेटर भी यह सुविधा देने के लिए मौजूद दिखते हैं. हकीकत में व्यवस्थित व्यवस्थाओं के साथ ट्रेकिंग करने वाले ऑपरेटर की प्रदेश में भारी कमी है. ट्रेकिंग एक साहसिक खेल है. लिहाजा इसमें जान का खतरा हमेशा बना रहता है. ऐसे में सभी सुविधाओं के साथ ट्रेकिंग करना बेहद जरूरी है. देखा यह भी जा रहा है कि कई लोग उत्तराखंड में विभिन्न ट्रैक पर खुद ही ट्रैकिंग के लिए निकल जाते हैं, जो खतरे से खाली नहीं है.
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ट्रेकिंग और पर्वतारोहण के दौरान ऐसी कई सावधानियां होती हैं, जिनको नजरअंदाज करना जानलेवा हो सकता है. अब यह भी जानिए कि ट्रेकिंग के दौरान क्या करें और क्या न करें.
- ट्रेकिंग रूट्स पर सबसे ज्यादा मौतें एल्टीट्यूड सिकनेस के कारण होती हैं.
- मौसम खराब होने और एवलॉन्च के कारण ट्रेकर्स की जान जाती है.
- पेट या हाथ में संक्रमण की वजह से भी ट्रेकिंग के दौरान मौत होती है.
- हाइपोथर्मिया और थकावट के कारण भी ट्रैकर्स का जान जाती है.
- ट्रेकिंग में बिना प्रशिक्षण के जाना खतरनाक साबित होता है.
- ट्रेकिंग के दौरान एक्सपर्ट का साथ ना होना भी मुसीबत का सबब बनता है.
- माउंटेन क्लाइंबिंग और ट्रैकिंग से देश में होने वाली कुल मौतों में 43% मौत उत्तराखंड में होती हैं.
- 29% तमिलनाडु,19% महाराष्ट्र और 8% हिमाचल प्रदेश में होते हैं हादसे
- ये आंकड़े एक्सेंट डीसेंट एडवेंचरस की रिपोर्ट के अनुसार हैं.
न केवल भारत बल्कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर भी सावधानियां के चलते हर साल कई लोगों की जान चली जाती है. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर रिकॉर्ड बनाने के लिए हर साल हजारों लोग पहुंचते हैं. माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहण को लेकर हालांकि नेपाल सरकार द्वारा परमिट दिया जाता है, जिसके बाद ही कोई भी व्यक्ति यहां पर्वतारोहण कर सकता है. खास बात यह है कि इस साल अब तक अप्रैल और मई दो महीने में ही 17 लोगों की जान जा चुकी है.
माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहण के दौरान जान जाने वालों की ये पिछले कई सालों मे सबसे बड़ी संख्या है. बताया जाता है कि माउंट एवरेस्ट पर लगातार पर्वतारोहण के लिए लोगों की भीड़ बढ़ रही है. इसे नियंत्रित न करने के कारण भी ऐसे हादसे हो रहे हैं. हालांकि, ट्रैकिंग और पर्वतारोहण के दौरान ऐसे खतरों को देखते हुए अब उत्तराखंड सरकार ने एक नई पहल करते हुए सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की सोच को जाहिर की है.
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उत्तराखंड सरकार में आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा बताते सरकार अब ट्रेकिंग और पर्वतारोहण करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए जीपीएस या सेटेलाइट सिस्टम तैयार कर रही है. दरअसल, जब लोग ट्रेकिंग या पर्वतारोहण के दौरान फंस जाते हैं तो उनकी लोकेशन ट्रैक करना काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में इन लोगों को रेस्क्यू करने के लिए जीपीएस और सैटेलाइट काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं. इसीलिए राज्य सरकार ट्रेकिंग करने वाली टीम के साथ एसडीआरएफ के एक जवान को सेटेलाइट फोन और जीपीएस सिस्टम के साथ भेजने का प्लान कर रही है. जिससे ट्रेकिंग रूट पर घटनाओं की संख्या को कम किया जा सके.