देहरादूनः उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में पुलिस के लिए अलग-अलग तरह की चुनौती रहती है. मैदानी जिलों में कानून व्यवस्था से लेकर वीआईपी ड्यूटी और ट्रैफिक व्यवस्था बड़ी चुनौती है तो कुछ पहाड़ी जिलों में तीर्थाटन पुलिस की भागदौड़ को बढ़ा देता है. उधर, पहाड़ के सीमांत जिले स्मगलिंग और विशेष चौकसी के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. जाहिर है कि ऐसी विशेष परिस्थितियों वाले राज्य में पुलिसिंग काफी कठिन होती है. खासतौर तब जब हर साल बड़ी आपदाओं के दौरान आपदा प्रबंधन महकमे के साथ पुलिस का भी बड़ा रोल होता है. धामी सरकार भी राज्य में इन हालातों को समझती है और इन हालातों से निपटने के लिए सरकार ने सबसे ज्यादा भरोसा अब तक प्रमोटी आईपीएस अधिकारियों पर ही जताया है. ऐसा हम नहीं बल्कि, जिलों में कमान संभाल रहे अफसरों के रिकॉर्ड को देखकर कहा जा सकता है.
प्रमोटी आईपीएस अधिकारियों की जिम्मेदारीः उत्तराखंड के 5 सबसे महत्वपूर्ण और बड़े जिलों में प्रमोटी आईपीएस अफसरों का दबदबा है. देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, नैनीताल और उधमसिंह नगर जिलों में से देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी और नैनीताल जिले प्रमोटी अफसरों के हाथों में हैं. महज उधमसिंह नगर में ही सीधे आईपीएस अफसर की तैनाती हुई है. देहरादून में दलीप सिंह कुंवर, हरिद्वार में अजय सिंह और नैनीताल में पंकज भट्ट एसएसपी हैं, जबकि पौड़ी जैसा बड़ा जिला भी महिला प्रमोटी आईपीएस श्वेता चौबे के हाथों में है.
उत्तराखंड के चार बड़े जिलों की स्थिति से ही यह बात साफ हो जाती है कि राज्य में धामी सरकार ने प्रमोटी आईपीएस अफसरों पर ज्यादा भरोसा जताया है. बड़े जिलों में केवल एक उधम सिंह नगर में मंजूनाथ टीसी ही हैं, जो सीधे आईपीएस हैं और एसएसपी के तौर पर जिले की कमान संभाल रहे हैं.
वैसे पूरे राज्य के लिहाज से भी देखें तो दबदबा प्रमोटी आईपीएस अफसरों का ही दिखाई देता है. बीजेपी सरकार की प्रमोटी अफसरों के लिए प्राथमिकता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि एक पहाड़ी जिले में तो एडिशनल एसपी रैंक के अधिकारी को जिले की कमान बतौर प्रभारी सौंप दी गई है.
जिलेवार आईपीएस अफसरों की स्थितिः प्रदेश के 13 जिलों में से 7 जिलों में प्रमोटी अफसरों को जिले की कमान दी गई है. जबकि, 6 जिलों में सीधे आईपीएस अफसर चार्ज पर मौजूद हैं. देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी और नैनीताल जिलों के अलावा टिहरी, चमोली और चंपावत भी प्रमोटी अफसरों के हाथों में है. चमोली में एडिशनल एसपी रैंक के प्रमेंद्र डोभाल को कमान दी गई है तो उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में सीधे आईपीएस अधिकारियों को कमान सौंपी गई है.
उत्तराखंड में प्रमोटी अधिकारियों को मिल रहे सरकार के आशीर्वाद की एक बड़ी वजह भी है. दरअसल, अपनी विशेष खूबियों और अनुभवों के चलते प्रमोटी आईपीएस अफसर सरकार के तय लक्ष्यों को पूरा करने में ज्यादा उपयोगी माने जाते हैं. शायद यही कारण है कि सरकार भी प्रमोटी आईपीएस अफसरों को ही ज्यादा मौके दे रही है.
वैसे इसमें कोई हर्ज भी नहीं है, क्योंकि सरकार को रिजल्ट ओरिएंटेड अफसरों की दरकार होती है और उसे पूरा करने के लिए जिन्हें सरकार सक्षम समझती है. उन्हीं को कमान भी सौंपी जाती है. ऐसे में साफ है कि जिस तरह पुलिस महकमे में जिलों के लिहाज से प्रमोटी आईपीएस अफसर दबदबा बनाए हुए हैं, यानी सरकार इन्हीं अफसरों को ज्यादा काबिल मान रही है.
प्रमोटी अफसर क्यों माने जाते हैं काबिलः दरअसल, थानों से लेकर जिलों की कमान तक पहुंचने के अनुभव का फायदा मिलता है. प्रमोटी अफसर आम जनता से सीधे संवाद को लेकर ज्यादा सहज माने जाते हैं. ऐसे अफसर सरकार के आदेशों पर समस्या बताने की जगह समाधान वाले फार्मूले पर भी कारगर माने जाते हैं. आईपीएस अफसरों की कमी के कारण भी उन्हें तवज्जो मिलती है.
धामी सरकार 2.0 को एक साल पूरे हो चुके हैं और अपना बजट सत्र संपन्न करने के बाद से ही सरकार अफसरों के स्थानांतरण को लेकर कसरत में जुटी हुई है. कुछ ऐसे पद हैं, जहां प्रमोशन के बाद स्थानांतरण की जरूरत पड़ रही है तो कुछ ऐसे भी पद हैं जो रिटायरमेंट के चलते अब नई पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं.
इतना ही नहीं, सरकार राजनीतिक और सामाजिक समेत परफॉर्मेंस के आधार पर भी कुछ बदलाव करने के मूड में दिखाई दे रही है. जाहिर है कि इन सभी स्थितियों के बीच जल्द ही कुछ जिलों में कमान बदलने जा रही है और इस दौरान भी प्रमोटी आईपीएस अफसरों की काफी डिमांड संभावित है.