नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में प्लास्टिक निर्मित कचरे पर पूर्ण रूप प्रतिबंध लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम इस प्रदेश को साफ सुथरा देखना चाहते हैं, इसलिए समाज को जागरूक करना जरूरी है.
- कोर्ट ने कमिश्नर कुमाऊं और गढ़वाल को निर्देश दिए कि पूर्व के आदेशों का पालन करते हुए सभी जगहों में सॉलिड वेस्ट फैसिलिटी का संचालन अगली तिथि तक करना सुनिश्चित करें.
- कोर्ट ने राज्य सरकार से सभी प्लास्टिक पैकेजिंग कंपनियां जो उत्तराखंड के अंदर कार्यरत हैं, उनके ईपीआर प्लान सेंटर पोर्टल पर अपलोड करने को कहा है.
- कोर्ट की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से उनके यहां रजिस्टर्ड कंपनियां जो उत्तराखंड में कायर्रत हैं, उनका कल्ट बैग प्लान राज्य प्रदूषण बोर्ड के साथ साझा करने को कहा है.
- कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिए हैं कि राज्य की सीमा में जितने भी वाहन आते हैं, उनमें पोर्टेबल डस्टबिन लगाने की व्यवस्था नियम बनाकर करें.
- कोर्ट ने सभी कंपनियां को आदेश दिए हैं कि जिन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन राज्य प्रदूषण बोर्ड में नहीं किया है, वे 15 दिन के भीतर अपना रजिस्ट्रेशन अवश्य करा लें.
आज 20 दिसंबर को सुनवाई के दौरान कमिश्नर कुमाऊं और गढ़वाल, सचिव वन एवं पर्यावरण एवं मेंबर सेकेट्री पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड व्यक्तिगत रूप से पेश हुए. कमिश्नर कुमाऊं ने कोर्ट को अवगत कराया कि कुमाऊं मंडल में 782 वेस्ट स्पॉट हैं, जिनमें से 500 स्पाटों को साफ कर दिया है. कूड़ा निस्तारण के लिए मंडल के जिलाधिकारी व उपजिलाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं. इस सम्बंध में अधिकरियों ने मंडल में 3101 दौरे भी किये हैं.
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कमिश्नर गढ़वाल की तरफ से कहा गया कि मंडल के अधिकांश जिलों में कूड़े का निस्तारण रुद्रप्रयाग एवं चमोली को छोड़कर कर दिया है. मामले की अगली सुनवाई फरवरी दूसरे सप्ताह में होगी. मामले में अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज एवं उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी. परन्तु इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है.
2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे, जिसमें उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे. अगर नहीं ले जाते है तो सम्बंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य फंड देंगे, जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें. लेकिन उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और इसका निस्तारण भी नही किया जा रहा है.