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स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह का 104 साल की उम्र में निधन, हरिद्वार में हुआ अंतिम संस्कार

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Published : Dec 19, 2022, 3:25 PM IST

उत्तराखंड के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का 104 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने देश की आजादी के लिए नेता जी के साथ मिलकर लंबे समय तक संघर्ष किया. लंबे समय साधु सिंह बिष्ट जेल भी रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी अपने कार्यकाल में स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट को सम्मानित किया था.

Freedom fighter Sadhu Singh Bisht
Freedom fighter Sadhu Singh Bisht

डोईवाला: बारूवाला निवासी 104 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का सोमवार को निधन हो गया. राजकीय सम्मान के साथ उनका स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का अंतिम संस्कार किया गया. साधु सिंह बिष्ट की अंतिम यात्रा में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी शामिल हुए. स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का अंतिम संस्कार हरिद्वार में किया गया.

साधु सिंह बिष्ट के छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह ने कहा कि उनके पिता की पिछले कुछ समय से तबीयत खराब चल रही थी. रविवार सुबह उन्होंने खाना खाया, लेकिन उसके बाद उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई. जिसके बाद उन्हे जौलीग्रांट अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
पढ़ें- विधानसभा बैकडोर भर्ती: बर्खास्त कर्मचारियों ने किया जोरदार प्रदर्शन, लगाया ये इल्जाम

आजाद हिंद फौज के सिपाही थे साधु सिंह बिष्ट: बेटे सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पिता ने सुभाष चंद्र बोस के साथ देश की आजादी के लिए कई वर्षो तक संघर्ष किया. वो इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) से प्रभावित होकर आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे. नेताजी की अगुवाई में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई तेज हो चुकी थी. उनकी चटगांव में दुश्मनों से जोरदार जंग हुई. कई जवान घायल हो गए, लेकिन उन्होंने और उनकी सेना ने घुटने नहीं टेके और दुश्मन से लोहा लेते रहे. उनके कई सैनिकों को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया. युद्ध में हाथ पर गोली लगने से साधु सिंह घायल हो गए और उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया. सात अप्रैल 1946 को उन्हे जेल से रिहा किया गया.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था सम्मानित: साधु सिंह बिष्ट सिंगापुर, हांगकांग और मलेशिया समेत कई देशों में नेताजी के साथ देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी. साधु सिंह को वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र प्रदान किया था. स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह वर्ष 1940 में सेना में भर्ती हुए, तब सिंगापुर-मलय में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. युद्ध के दौरान उन्हें व उनके तमाम साथियों को जापानियों ने कैद कर लिया. जब वे जेल से छूटे तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रभावित होकर आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए'.
पढे़ं- हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में मशीनों से खनन पर लगाई रोक, खनन सचिव से 12 जनवरी तक मांगा जवाब

डोईवाला: बारूवाला निवासी 104 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का सोमवार को निधन हो गया. राजकीय सम्मान के साथ उनका स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का अंतिम संस्कार किया गया. साधु सिंह बिष्ट की अंतिम यात्रा में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी शामिल हुए. स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह बिष्ट का अंतिम संस्कार हरिद्वार में किया गया.

साधु सिंह बिष्ट के छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह ने कहा कि उनके पिता की पिछले कुछ समय से तबीयत खराब चल रही थी. रविवार सुबह उन्होंने खाना खाया, लेकिन उसके बाद उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई. जिसके बाद उन्हे जौलीग्रांट अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
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आजाद हिंद फौज के सिपाही थे साधु सिंह बिष्ट: बेटे सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पिता ने सुभाष चंद्र बोस के साथ देश की आजादी के लिए कई वर्षो तक संघर्ष किया. वो इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) से प्रभावित होकर आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे. नेताजी की अगुवाई में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई तेज हो चुकी थी. उनकी चटगांव में दुश्मनों से जोरदार जंग हुई. कई जवान घायल हो गए, लेकिन उन्होंने और उनकी सेना ने घुटने नहीं टेके और दुश्मन से लोहा लेते रहे. उनके कई सैनिकों को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया. युद्ध में हाथ पर गोली लगने से साधु सिंह घायल हो गए और उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया. सात अप्रैल 1946 को उन्हे जेल से रिहा किया गया.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था सम्मानित: साधु सिंह बिष्ट सिंगापुर, हांगकांग और मलेशिया समेत कई देशों में नेताजी के साथ देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी. साधु सिंह को वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र प्रदान किया था. स्वतंत्रता सेनानी साधु सिंह वर्ष 1940 में सेना में भर्ती हुए, तब सिंगापुर-मलय में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. युद्ध के दौरान उन्हें व उनके तमाम साथियों को जापानियों ने कैद कर लिया. जब वे जेल से छूटे तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रभावित होकर आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए'.
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