ETV Bharat / state

स्वतंत्रता सेनानी वीर फुनकू दास की 112वीं जयंती, जवाहर लाल नेहरू के साथ काटी थी जेल की सजा

जौनसार बाबर की धरती से एक नाम बड़े गर्व से लिया जाता है, उनका नाम है फुनकू दास. फुनकू दास स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी थी. इतना ही नहीं फुनकू दास कई बार जेल भी गए थे.

Freedom Fighter Funku das
फुनकू दास की जयंती
author img

By

Published : Aug 10, 2022, 4:24 PM IST

Updated : Aug 10, 2022, 5:19 PM IST

विकासनगरः स्वतंत्रता सेनानी वीर फुनकू दास की 112वीं जयंती है. इस मौके पर सम्राट अशोक सामुदायिक केंद्र कालसी में वीर फुनकू दास का जन्म दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि भी गई है. साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक दलों ने रंगारंग प्रस्तुतियां भी दी. जिसमें महासू देवता की वंदना, देश भक्ति गीत, हारूल और तांदी नृत्य ने सबका ध्यान खींचा. वहीं, आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को भी याद किया गया.

लोक पंचायत के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता भारत चौहान ने कहा कि जिन्होंने इस देश के लिए सर्वस्व बलिदान दिया, उन्हीं के कारण आज हम स्वतंत्र देश में सांस ले रहे हैं. पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. ऐसे समय में फुनकू दास का जीवन और प्रासांगिक हो जाता है. युवाओं को फुनकू दास के जीवन से प्रेरणा (Freedom Fighter Funku Das) लेनी चाहिए. उनके योगदान को देश, प्रदेश और जौनसार बावर कभी नहीं भुला सकता है. उनका योगदान अतुलनीय है.

फुनकू दास की 112वीं जयंती.

स्वतंत्रता सेनानी वीर फुनकू दास को जानिएः स्वतंत्रता सेनानी फुनकू दास का जन्म कालसी के खत बाना के पंजिया गांव में 10 अगस्त 1910 को हुआ था. उनके पिता का नाम मेढ़कू दास और माता का नाम कुसाली देवी था. जब देश में स्वतंत्रता का आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में भाग लिया था. उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी काफी स्नेह करते थे. इतना ही नहीं फुनकू दास आंदोलन के दौरान जवाहर लाल नेहरू और महावीर त्यागी के साथ देहरादून व बरेली में जेल में भी रहे.

ये भी पढ़ेंः 7 पीढ़ियों और 137 सालों का गवाह है लकड़ी का ये मकान, आज भी मजबूती बरकरार

एक बार जब जेलर ने उन्हें सजा स्वरूप बान बांटने को दिए तो जेलर को आंखे दिखाते हुए उन्होंने माचिस की तीली जलाकर उसमें आग लगा दी. जिससे जेल में अफरा तफरी मच गई और सारे सिपाही एकत्रित हो गए. सिपाहियों ने उन्हें पकड़कर 12 कोड़ों की सजा दी गई. ये हर कोड़े पर भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय का उदघोष करते रहे, लेकिन अपनी आन से नहीं डिगे.

वहीं, चकाराता न्यायालय के उप जिला मजिस्ट्रेट ने धारा 34/38 के तहत उन्हें तीन माह की सजा सुनाई और 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. जुर्माना न देने पर एक माह की अतिरिक्त सजा भी काटी. वे देहरादून जेल से 19 जुलाई 1941 को रिहा हुए. जब उनका निधन हुआ तब भी उनके पीठ पर कोड़ों के गहरे निशान थे. वहीं, पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pandit jawaharlal nehru) ने फुनकू के लिए देशभर में नि:शुल्क परिवहन की व्यवस्था भी की थी.

विकासनगरः स्वतंत्रता सेनानी वीर फुनकू दास की 112वीं जयंती है. इस मौके पर सम्राट अशोक सामुदायिक केंद्र कालसी में वीर फुनकू दास का जन्म दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि भी गई है. साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक दलों ने रंगारंग प्रस्तुतियां भी दी. जिसमें महासू देवता की वंदना, देश भक्ति गीत, हारूल और तांदी नृत्य ने सबका ध्यान खींचा. वहीं, आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को भी याद किया गया.

लोक पंचायत के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता भारत चौहान ने कहा कि जिन्होंने इस देश के लिए सर्वस्व बलिदान दिया, उन्हीं के कारण आज हम स्वतंत्र देश में सांस ले रहे हैं. पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. ऐसे समय में फुनकू दास का जीवन और प्रासांगिक हो जाता है. युवाओं को फुनकू दास के जीवन से प्रेरणा (Freedom Fighter Funku Das) लेनी चाहिए. उनके योगदान को देश, प्रदेश और जौनसार बावर कभी नहीं भुला सकता है. उनका योगदान अतुलनीय है.

फुनकू दास की 112वीं जयंती.

स्वतंत्रता सेनानी वीर फुनकू दास को जानिएः स्वतंत्रता सेनानी फुनकू दास का जन्म कालसी के खत बाना के पंजिया गांव में 10 अगस्त 1910 को हुआ था. उनके पिता का नाम मेढ़कू दास और माता का नाम कुसाली देवी था. जब देश में स्वतंत्रता का आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में भाग लिया था. उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी काफी स्नेह करते थे. इतना ही नहीं फुनकू दास आंदोलन के दौरान जवाहर लाल नेहरू और महावीर त्यागी के साथ देहरादून व बरेली में जेल में भी रहे.

ये भी पढ़ेंः 7 पीढ़ियों और 137 सालों का गवाह है लकड़ी का ये मकान, आज भी मजबूती बरकरार

एक बार जब जेलर ने उन्हें सजा स्वरूप बान बांटने को दिए तो जेलर को आंखे दिखाते हुए उन्होंने माचिस की तीली जलाकर उसमें आग लगा दी. जिससे जेल में अफरा तफरी मच गई और सारे सिपाही एकत्रित हो गए. सिपाहियों ने उन्हें पकड़कर 12 कोड़ों की सजा दी गई. ये हर कोड़े पर भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय का उदघोष करते रहे, लेकिन अपनी आन से नहीं डिगे.

वहीं, चकाराता न्यायालय के उप जिला मजिस्ट्रेट ने धारा 34/38 के तहत उन्हें तीन माह की सजा सुनाई और 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. जुर्माना न देने पर एक माह की अतिरिक्त सजा भी काटी. वे देहरादून जेल से 19 जुलाई 1941 को रिहा हुए. जब उनका निधन हुआ तब भी उनके पीठ पर कोड़ों के गहरे निशान थे. वहीं, पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pandit jawaharlal nehru) ने फुनकू के लिए देशभर में नि:शुल्क परिवहन की व्यवस्था भी की थी.

Last Updated : Aug 10, 2022, 5:19 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.