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बदरीनाथ मंदिर की होती है विशेष रखवाली, जानिए धाम से जुड़ी अनूठी परंपरा - तालों से जुड़ी एक अनूठी परंपरा

चारधाम में से एक विश्वविख्यात बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए 17 नवंबर को बंद किए जा चुके हैं. मंदिर के चार तालों को लेकर एक अनूठी परंपरा है, जिससे धाम की रखवाली की जाती है जानिए.

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चार तालों से होती है बदरीनाथ मंदिर की रखवाली.
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Published : Dec 5, 2019, 7:33 PM IST

देहरादून: बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए 17 नवंबर को बंद किए जा चुके हैं. ऐसे में अगले 6 महीने तक मंदिर की रखवाली चार तालों को लगाकर की जाएगी. आखिर क्या है इन चार तालों का राज, जानिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में...

विश्वविख्यात बदरीनाथ धाम की धार्मिक और पौराणिक रुप में कई मान्यताएं हैं. लेकिन यहां हम एक ऐसी अनूठी परंपरा का जिक्र कर रहे हैं, जो सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ये परंपरा बदरीनाथ धाम की रखवाली करती है.

हिमालय की विहंगम पहाड़ियों के बीच बसे बदरीनाथ धाम को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. बदरीनाथ मंदिर की पूजा पद्धति अन्य मंदिरों से भिन्न है. पूजा-अर्चना करने के तरीके से अलावा यहां एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है, जो सदियों से चली आ रही है. ये परंपराएं अपने-आप में बेहद अनोखी हैं.

यह भी पढ़ें: शीतकालीन सत्र: पहले दिन विधायकों ने सदन में निकाले 'प्याज के आंसू', असल मुद्दे रहे गायब

चार तालों का मंदिर की रखवाली का राज

बदरीनाथ मंदिर के कपाट में चार ताले लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ये चार ताले मंदिर की रखवाली करते हैं. शीतकाल में जब धाम के कपाट बंद किए दिए जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाट पर अलग-अलग चार ताले लगाए जाते हैं. इन तालों की चाबियां एक दूसरे से भिन्न होती हैं. जब बदरीनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाटों पर लगे चार तालों की चाबियों को लेकर संबंधित प्रतिनिधि बदरीनाथ मंदिर में मौजूद होते हैं. प्रतिनिधियों के मौजूदगी में ही एक-एक करके इन चार तालों को खोला जाता है.

चार प्रतिनिधियों के पास सुरक्षित रखी जाती हैं चाबियां

बदरीनाथ मंदिर के कपाट पर लगने वाला पहला ताला टिहरी के महाराजा का प्रतिनिधि लगाता है. दूसरा ताला डिमरी समाज का प्रतिनिधि लगाता है. ऐसे ही तीसरा ताला पांडुकेश्वर हक-हकूकधारियों के प्रतिनिधि द्वारा लगाया जाता है. जबकि चौथा ताला बदरी-केदार मंदिर समिति का होता है, इनकी चाबी बदरी-केदार मंदिर समिति के प्रतिनिधि के पास सुरक्षित रखी जाती है.

यह भी पढ़ें: शीतकालीन सत्रः सदन में 'अपनों' से घिरी त्रिवेंद्र सरकार, विपक्ष की भूमिका में नजर आए बीजेपी विधायक

हर साल लाखों की संख्या में पहुंचते है श्रद्धालु

गौर हो कि इस सीजन बदरीनाथ धाम के कपाट पूरे विधि विधान से 10 मई 2019 को तड़के 4:15 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोले गए थे. 6 महीने के बाद 17 नवंबर 2019 को शाम 5:13 बजे पूरे विधि विधान से बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद किए गए थे. हालांकि इस सीजन में बदरीनाथ धाम आने वाले 12,44,993 श्रद्धालुओं ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए.

देहरादून: बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए 17 नवंबर को बंद किए जा चुके हैं. ऐसे में अगले 6 महीने तक मंदिर की रखवाली चार तालों को लगाकर की जाएगी. आखिर क्या है इन चार तालों का राज, जानिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में...

विश्वविख्यात बदरीनाथ धाम की धार्मिक और पौराणिक रुप में कई मान्यताएं हैं. लेकिन यहां हम एक ऐसी अनूठी परंपरा का जिक्र कर रहे हैं, जो सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ये परंपरा बदरीनाथ धाम की रखवाली करती है.

हिमालय की विहंगम पहाड़ियों के बीच बसे बदरीनाथ धाम को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. बदरीनाथ मंदिर की पूजा पद्धति अन्य मंदिरों से भिन्न है. पूजा-अर्चना करने के तरीके से अलावा यहां एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है, जो सदियों से चली आ रही है. ये परंपराएं अपने-आप में बेहद अनोखी हैं.

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चार तालों का मंदिर की रखवाली का राज

बदरीनाथ मंदिर के कपाट में चार ताले लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ये चार ताले मंदिर की रखवाली करते हैं. शीतकाल में जब धाम के कपाट बंद किए दिए जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाट पर अलग-अलग चार ताले लगाए जाते हैं. इन तालों की चाबियां एक दूसरे से भिन्न होती हैं. जब बदरीनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाटों पर लगे चार तालों की चाबियों को लेकर संबंधित प्रतिनिधि बदरीनाथ मंदिर में मौजूद होते हैं. प्रतिनिधियों के मौजूदगी में ही एक-एक करके इन चार तालों को खोला जाता है.

चार प्रतिनिधियों के पास सुरक्षित रखी जाती हैं चाबियां

बदरीनाथ मंदिर के कपाट पर लगने वाला पहला ताला टिहरी के महाराजा का प्रतिनिधि लगाता है. दूसरा ताला डिमरी समाज का प्रतिनिधि लगाता है. ऐसे ही तीसरा ताला पांडुकेश्वर हक-हकूकधारियों के प्रतिनिधि द्वारा लगाया जाता है. जबकि चौथा ताला बदरी-केदार मंदिर समिति का होता है, इनकी चाबी बदरी-केदार मंदिर समिति के प्रतिनिधि के पास सुरक्षित रखी जाती है.

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हर साल लाखों की संख्या में पहुंचते है श्रद्धालु

गौर हो कि इस सीजन बदरीनाथ धाम के कपाट पूरे विधि विधान से 10 मई 2019 को तड़के 4:15 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोले गए थे. 6 महीने के बाद 17 नवंबर 2019 को शाम 5:13 बजे पूरे विधि विधान से बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद किए गए थे. हालांकि इस सीजन में बदरीनाथ धाम आने वाले 12,44,993 श्रद्धालुओं ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए.

Intro:Ready to Air....


सनातन धर्मावलंबियों के प्रमुख चारधाम में से सर्वश्रेष्ठ और विश्वविख्यात, बद्रीनाथ धाम की यू तो धार्मिक और पौराणिक कई मान्यताएं हैं। लेकिन बदरीनाथ मंदिर कि एक ऐसी अनूठी परंपरा भी है जो सदियों ने चली रही है। और वो परंपरा है, बदरीनाथ मंदिर के रखवाली की। जी हाँ बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि जब बदरीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते है तो अगले 6 महीने तक मंदिर की रखवाली चार ताले करते है। आखिर क्या है इन चार तालों का राज, देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट....




Body:पहाड़ो की गोद मे बसे उत्तराखंड राज्य में स्तिथ बदरीनाथ मंदिर, हिन्दुओ के चारधाम में से सर्वश्रेष्ठ और विश्वविख्यात धामो में से एक है। जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। बदरीनाथ मंदिर की पूजा पध्दति अन्य मंदिरों से भिन्न है, पूजा अर्चना करने के तरीके की एक अनूठी परंपरा जो सदियों से चली आ रही है। इसके साथ ही कई अन्य अनूठी परंपरा भी है, जो बेहद रोमांचक है।


क्या है चार तालों का मंदिर की रखवाली का राज.......

बदरीनाथ मंदिर के कपाटों में चार ताले, लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है जो मंदिर की रखवाली के लिए बनाई गई है। शीतकाल में जब धाम के कपाट बंद किये दिए जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाटों पर अलग-अलग चार ताले लगाए जाते हैं। जिनकी चाबियां भी एक दूसरे से भिन्न होती है। और जब बदरीनाथ मंदिर के कपाट, श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं, उस दौरान बदरीनाथ मंदिर के कपाटों पर लगे चारों तारों की चाबियां को लेकर संबंधित प्रतिनिधि बद्रीनाथ मंदिर में मौजूद होते हैं, और प्रतिनिधियों के मौजूदगी में ही एक-एक करके बद्रीनाथ मंदिर के कपाटों पर लगे चारों तालों को खोला जाता है।



मंदिर से जुड़े चार प्रतिनिधियों के पास सुरक्षित रखी जाती है चाभियां........

बदरीनाथ मंदिर के कपाट पर लगाए गए चार तालों में से पहला ताला टिहरी के महाराजा के प्रतिनिधि लगते है और उसकी चाभी अपने पास सुरक्षित रखते है। दूसरा ताला डिमरी समाज का प्रतिनिधि लगाता है और उस चाभी को अपने पास सुरक्षित रखता है। तीसरा ताला पांडुकेश्वर हकहकूक धारियों के प्रतिनिधि द्वारा लगाया जाता है जो उस चाभी को अपने पास रखते है। इसके साथ ही मंदिर के कपाटों में लगने वाला चौथा ताला, बदरी-केदार मंदिर समिति का होता है जिसकी चाभी बदरी-केदार मंदिर समिति के प्रतिनिधि के पास सुरक्षित रखी जाती है।



बदरीनाथ मंदिर की पौराणिक मान्यता.......

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भू-बैकुंठ कहे जाने वाले श्री हरि विष्णु जी की देवडोली शीतकाल के दौरान पांडुकेश्वर स्तिथ योग ध्यान बद्री मंदिर में प्रवास करती है।यही नही बदरीनाथ धाम का वर्णन स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में है। बदरीनाथ मंदिर में बद्री विशाल (विष्णु) की पूजा की जाती हैं। और माना जाता है कि 8वी-9वी शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ मंदिर को बनवाया था। लेकिन वैदिक काल मे भी बद्रीनाथ मंदिर के मौजूद होने का वर्णन पुराणों में हैं। 



हर साल लाखों की संख्या में पहुंचते है श्रद्धालु.........

गौर हो कि इस सीजन बदरीनाथ के कपाट पूरे विधि विधान से 10 मई 2019 को सुबह 4:15 बजे श्रद्धालुओ के खोले गए थे। और 6 महीने के बाद 17 नवंबर 2019 को शाम 5:13 बजे पूरे विधि विधान से बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद किये गए थे। हालांकि इस यात्रा सीजन में बदरीनाथ धाम आने वाले श्रद्धालुओं ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए है। और इस बार कुल 12,44,993 श्रद्धालुओं ने भगवान बद्री विशाल के दर्शन करने पहुंचे। 





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