देहरादून: पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू के खिलाफ अपने पद का दुरुपयोग कर वन विभाग की 1.5 हेक्टेयर जमीन कब्जाने और पेड़ कटाने जैसे मामलों में मुकदमा दर्ज किया गया. जिसको लेकर बीएस सिद्धू ने अपना पक्ष रखा और इसे गलत करार दिया. बीएस सिद्धू ने थाना राजपुर में अपने ऊपर दर्ज मुकदमे पर सफाई दी.
उन्होंने कहा यह सरासर राज्य सरकार को गुमराह कर FIR दर्ज कराने का विषय है. जबकि इस मामले उनके खिलाफ 10 साल से वर्तमान तक इस आरोप में कोई भी सबूत अब तक सामने नहीं आया हैं. यही कारण रहा कि निचली अदालत से लेकर उच्च अदालत तक 4 न्यायालयों ने इस मामले में शिकायतकर्ताओं की याचिका को खारिज कर कोई मामला नहीं बनने का निर्णय दिया हैं.
इसके बावजूद सभी अदालतों के निर्णय की अनदेखी कर कैसे यह मुकदमा दर्ज हुआ. ये समझ से परे हैं. क्योंकि कोई भी शासन इस तरह से हाईकोर्ट तक के निर्णय की अनदेखी कर FIR दर्ज की अनुमति नहीं दे सकता है. पूर्व डीजीपी सिद्धू ने कहा इस मामले में शिकायतकर्ताओं ने राज्य सरकार को पूरी गुमराह कर यह मुकदमा कराया है. जबकि पिछले 10 सालों में कोई नया एविडेंस और नया प्रगति नहीं है.
सिद्धू ने कहा उन्हें पूरा भरोसा हैं कि जब शासन को उनके सभी पक्ष की सबूत कोर्ट निर्णय सहित जानकारी हो जाएगी तो मुकदमे की दिशा ही बदल जाएगी. इस विषय में उन्होंने सभी दस्तावेज सबूतों और कोर्ट निर्णय के शासन को भेज दिए हैं. सिद्धू ने आरोप लगाया कि साल 2012-13 में तत्कालीन DFO और भू माफियाओं ने राजपुर के वीरगवाली वाली वन विभाग की उसी जमीन पर लंबे समय से सैकड़ों पेड़ काटकर प्लॉटिंग चल रही थी. इस घटनाक्रम के सभी साइंटिफिक सबूत इस केस में पहले ही साबित हो चुके हैं.
डीजीपी सिद्धू ने कहा उन्होंने कोई पेड़ नहीं काटे और ना ही जमीन को कब्जाने जाने का प्रयास किया. इस बात का प्रमाण यह है कि 2012-13 में वन विभाग ने उनके खिलाफ चालान काटा, लेकिन अपनी FIR कॉपी में यह भी साफ किया कि आरोपी के खिलाफ पेड़ काटने के कोई सबूत सामने नहीं आए हैं. चालान काटने की कार्रवाई सिर्फ इस वजह से की गई. क्योंकि इस जमीन को खरीदने में बीएस सिद्धू का ही व्यक्तिगत स्वार्थ था. इसलिए आरोपी सिद्धू ने ही पेड़ काटे होंगे.
डीजीपी सिद्धू ने कहा जब वन विभाग और एनजीटी ने उन पर चालान की कार्रवाई की और आज तक उन्होंने ना ही उस जमीन को कब्जाया और ना ही उसको लेने का प्रयास किया तो, उन पर कैसे और किन सबूतों के आधार पर मुकदमा दर्ज किया गया हैं. सिद्धू ने कहा कि जब उन्होंने राजपुर वीरगवाली जमीन का सौदा डेढ़ करोड़ रुपए में नत्थूराम पार्टी से किया था. तब उन्होंने शासन के समक्ष नियमानुसार प्रॉपर्टी सत्यापन के दस्तावेज रजिस्ट्री करने के लिए देने वाली धनराशि का ब्यौरा और सभी आवश्यक कार्रवाई के लिए शासन से बकायदा अनुमति ली थी. इतना ही नहीं जिस व्यक्ति नत्थू राम ने रजिस्ट्री करी उसका सत्यापन भी मेरठ एसडीएम से कराया गया था.
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इसके बावजूद जब जांच पड़ताल में पूरी प्रॉपर्टी वन विभाग की निकली तो उसके बाद यह मामला उजागर हुआ. जांच की कार्रवाई सामने आने के बाद वन विभाग ने और एनजीटी ने चालान काटा, लेकिन पेड़ काटने और जमीन कब्जाने का कोई भी आरोप कोर्ट के समक्ष और जांच में साबित नहीं हुआ. वर्तमान में यह पूरी प्रॉपर्टी वन विभाग के अधीन ही है और रजिस्ट्री की धनराशि भी राजस्व विभाग नहीं जमा है, जो नियमानुसार वापस नहीं मिली है.
वहीं, इस मामले में 3 दिन के लिए इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर बने रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर निर्विकार सिंह ने कहा साल 2013 में इस केस की जांच पड़ताल के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी, मुख्य सचिव और डीजीपी सत्यव्रत बंसल ने रिपोर्ट के आधार पर सरकार को इस मामले में डीजीपी बीएस सिद्धू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की थी. उसी का नतीजा है कि आज इस मामले में नए सिरे से जांच के लिए सरकार के आदेश पर सिद्धू सहित आठ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. निर्विकार ने कहा उन्हें उम्मीद है, इस मामले में पारदर्शी तरीके से जांच होने पर केस पूरी तरह से साफ हो जाएगा.