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वन विभाग की इस तकनीकि से बच नहीं सकेंगे भू-माफिया, होगी सख्त कार्रवाई

उत्तराखंड वन विभाग माफिया के कब्जे से वन भूमि को छुड़ाने के लिए GIS सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रहा है. वन विभाग की इस तकनीकी से भू-माफिया बच नहीं सकेंगे.

देहरादून
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Published : Oct 21, 2019, 10:31 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की जनसंख्या आज जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से देवभूमि के जंगलों में माफिया कब्जा कर रहे हैं. पिछले कुछ दशकों की बात करें इस तरह के कई मामले सामने आए हैं. जिसको देखते हुए अब वन विभाग अपनी भूमि की पहचान के लिए Geographic Information System (GIS) की मदद ले रहा है.

वन विभाग की इस तकनीकि से बच नहीं सकेंगे भूमाफिया

उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादियां न सिर्फ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, बल्कि जैव विविधता को बरकरार रखने में अहम भूमिका भी निभाती हैं. जिसकी वजह यह है कि प्रदेश में 65 से 70 फीसदी वन क्षेत्र है, लेकिन कुछ दशकों से बढ़ रहे भू-माफिया के आतंक से वन विभाग द्वारा अपनी वन संपदा को बचाने में तमाम समस्याएं आती रही हैं, जिसे देखते हुए वन विभाग पिछले कुछ समय से जीआईएस की मदद से अतिक्रमण की हुई भूमि की पहचान कर रहा है.

प्रमुख वन संरक्षक जय राज ने बताया की जीआईएस की मदद से किसी भी स्थान की पुरानी तस्वीर को लेकर नई तस्वीर का मिलान किया जाता है और अगर किसी तस्वीर में अंतर आता है तो उससे पता चल जाएगा कि उस भूमि पर कब्जा किया गया है और अगर ऐसे मामला आएगा तो आगे की कार्रवाई वन विभाग द्वारा की जाएगी.

पढ़ें- रुद्रप्रयाग हादसा: एक और शव बरामद, मरने वालों की संख्या हुई 9

GIS तकनीकी को जानें

  • Geographic Information System (GIS) एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर हैं. जिसका इस्तेमाल जिओग्राफिक डेटा को कैप्चर करने और उसको स्टोर करने में किया जाता है. इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से भूमि में हेरफेर करने और विश्लेषण करने में किया जाता है.
  • आसान शब्दों में कहें तो GIS का उपयोग नक्शे बनाने और प्रिंट करने के लिए किया जाता है. यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसकी सहायता से टारगेट एरिया की मैपिंग की जाती है. इसके बाद मिले डाटा के माध्यम से कुछ ही देर में पूरे क्षेत्र की सटीक जानकारी मिल जाती है.
  • इस सॉफ्टवेयर का उपयोग अर्थ साइंस, डिफेन्स, खेती, आर्किटेक्चर, न्यूक्लियर साइंस और टाउन प्लानर में किया जाता है.

देहरादून: उत्तराखंड की जनसंख्या आज जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से देवभूमि के जंगलों में माफिया कब्जा कर रहे हैं. पिछले कुछ दशकों की बात करें इस तरह के कई मामले सामने आए हैं. जिसको देखते हुए अब वन विभाग अपनी भूमि की पहचान के लिए Geographic Information System (GIS) की मदद ले रहा है.

वन विभाग की इस तकनीकि से बच नहीं सकेंगे भूमाफिया

उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादियां न सिर्फ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, बल्कि जैव विविधता को बरकरार रखने में अहम भूमिका भी निभाती हैं. जिसकी वजह यह है कि प्रदेश में 65 से 70 फीसदी वन क्षेत्र है, लेकिन कुछ दशकों से बढ़ रहे भू-माफिया के आतंक से वन विभाग द्वारा अपनी वन संपदा को बचाने में तमाम समस्याएं आती रही हैं, जिसे देखते हुए वन विभाग पिछले कुछ समय से जीआईएस की मदद से अतिक्रमण की हुई भूमि की पहचान कर रहा है.

प्रमुख वन संरक्षक जय राज ने बताया की जीआईएस की मदद से किसी भी स्थान की पुरानी तस्वीर को लेकर नई तस्वीर का मिलान किया जाता है और अगर किसी तस्वीर में अंतर आता है तो उससे पता चल जाएगा कि उस भूमि पर कब्जा किया गया है और अगर ऐसे मामला आएगा तो आगे की कार्रवाई वन विभाग द्वारा की जाएगी.

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GIS तकनीकी को जानें

  • Geographic Information System (GIS) एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर हैं. जिसका इस्तेमाल जिओग्राफिक डेटा को कैप्चर करने और उसको स्टोर करने में किया जाता है. इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से भूमि में हेरफेर करने और विश्लेषण करने में किया जाता है.
  • आसान शब्दों में कहें तो GIS का उपयोग नक्शे बनाने और प्रिंट करने के लिए किया जाता है. यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसकी सहायता से टारगेट एरिया की मैपिंग की जाती है. इसके बाद मिले डाटा के माध्यम से कुछ ही देर में पूरे क्षेत्र की सटीक जानकारी मिल जाती है.
  • इस सॉफ्टवेयर का उपयोग अर्थ साइंस, डिफेन्स, खेती, आर्किटेक्चर, न्यूक्लियर साइंस और टाउन प्लानर में किया जाता है.
Intro:उत्तराखंड राज्य की जनसंख्या जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे वन भूमि पर भूमाफियो का कब्जा बढ़ता जा रहा हैं। पिछले कुछ दशकों की बात करे तो भूमाफियाओं का सक्रिय होकर वन भूमि का अतिक्रमण कर उसे बचने के तमाम मामले सामने आते रहे है। जिसको देखते हुए अब वन विभाग अब अपनी भूमि के पहचान के लिए सैटेलाइट की मदद ले रहा है।  


Body:उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादिया न सिर्फ देश विदेश के पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती है बल्कि जैव विविधता को बरकरार रखने में अहम भूमिका भी निभाती है। जिसकी वजह यह है कि प्रदेश के भीतर 65 से 70 फीसदी वन क्षेत्र है। लेकिन कुछ दशकों से बढ़ रहे भूमाफियाओं के आतंक से वन विभाग द्वारा अपनी वन संपदा को बचाने में तमाम समस्याएं आती रही है। 


जिसे देखते हुए वन विभाग पिछले कुछ समय से सैटलाइल की मदद से अतिक्रमण की हुई भूमी की पहचान कर रहा है। ज्यादा जानकारी देते हुए प्रमुख वन संरक्षक जय राज ने बताया की सैटलाइट की मदद से किसी भी स्थान की पुरानी तस्वीर को लेकर नई तस्वीर का मिलान किया जाता है। और अगर किसी तस्वीर में अंतर आता है। तो उससे पता चल जाएगा कि उस भूमि पर कब्जा किया गया है। और अगर ऐसे मामला आएगा तो आगे की कार्यवाही वन विभाग द्वारा की जाएगी। 

बाइट - जय राज, प्रमुख वन संरक्षक, वन विभाग




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