देहरादून: उत्तराखंड से शुरू हुए योग को आज देश ही नहीं दुनिया में भी अपनाया जा रहा है, योग न केवल शरीर को बीमारियों से बचाता है, बल्कि यह अब युवाओं के लिए रोजगार का भी अहम जरिया बन गया है. इसी कड़ी में आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने आयुर्वेद चिकित्सकों और योगा इंस्ट्रक्टर के लिए विदेशी भाषाओं के ज्ञान को देने के मकसद से लैंग्वेज कोर्सेज शुरू करने का निर्णय लिया है. खास बात यह है कि एक तरफ आयुर्वेद विश्वविद्यालय योगा को लेकर नए कोर्स शुरू करने जा रहा है तो दूसरी तरफ नेचुरोपैथी के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालय काम कर रहा है.
पढ़ें- शीतकालीन सत्र से पहले विधायकों ने किया योग, आचार्य बालकृष्ण ने सिखाए फिट रहने के गुर
आयुर्वेद विश्वविद्यालय के वीसी सुनील जोशी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने योग के अलग-अलग कोर्ट से शुरू करने की पहल की है. जिसके तहत पीजी डिप्लोमा, डिप्लोमा और योग सर्टिफिकेट प्रोग्राम चलाने पर सहमति बनाई गई है. पीजी डिप्लोमा 2 साल का होगा डिप्लोमा 1 साल का किया जाएगा, जबकि योग सर्टिफिकेट प्रोग्राम सामान्य तौर पर लोगों के लिए 6 महीने के समय सीमा में पूरा होगा. आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने यह पहल योग में देश और दुनिया की बढ़ती डिमांड के चलते की है. इससे न केवल योग को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकेगा बल्कि, रोजगार के रूप में योग को अपनाएंंगे और योग को रोजगार का जरिया भी बना सकेंगे.
आपको बता दें कि सरकार भी विभिन्न विभागों में योग के टीचर्स रखने का काम कर रही है जबकि, योग को लेकर विभिन्न विभागों में भर्तियां किए जाने की दिशा में भी काम हो रहा है. यही नहीं निजी क्षेत्र में भी योग की भारी डिमांड होने के चलते योग स्ट्रक्चर के रूप में युवा अपना भविष्य बना सकते हैं. आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने कैंपस में पीएचडी किए जाने को लेकर भी प्रयास शुरू किए हैं, इसमें करीब साल 2015- 16 से विश्वविद्यालय में पीएचडी कोर्स शुरू करने की कोशिशें की गई थी लेकिन नियम विरुद्ध प्रक्रिया होने के चलते पूर्व में एडमिशन प्रक्रिया को निरस्त कर दिया गया था. अब आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने नई तरह से एडमिशन प्रक्रिया पूरी की है, जिसमें 76 सीटों पर एडमिशन किए गए हैं. अब इसको लेकर 1 जनवरी से कोर्स शुरू हो जाएगा इसमें 12 विषयों पर अभ्यर्थी अपनी पीएचडी कर सकेंगे.