देहरादून: पिछले मॉनसून सीजन में 20 अगस्त को देहरादून जिले के मालदेवता सरखेत क्षेत्र में बादल फटने से तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद मौसम विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले पूर्वानुमान पर सवाल खड़े होने लाजमी थे. क्योंकि यह घटना सुरकंडा में स्थापित किए गए डॉप्लर रडार के बिल्कुल नजदीक हुई थी, लेकिन इसके बावजूद भी किसी तरह का कोई पूर्वानुमान क्षेत्र में मौसम विभाग द्वारा जारी नहीं किया गया. आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा इस घटना के बाद एक जांच भी बैठाई गई, जिसमें सामने आया कि मौसम विभाग द्वारा सरखेत में इस तरह की परिस्थितियों को लेकर के किसी भी तरह की कोई सूचना आपदा प्रबंधन विभाग के साथ साझा नहीं की गई थी.
आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा डॉप्लर रडार अगर काम कर रहा था और उसका डेटा मौसम विभाग के पास था, भले ही साझा नहीं किया गया था तो यह एक मानवीय भूल हो सकती है. डॉप्लर रडार से अगर किसी भी तरह का डाटा मौसम विभाग को प्राप्त नहीं हुआ तो यह सीधे तौर से तकनीकी पर सवाल खड़े करता है. रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया मालदेवता सरखेत में हुई आपदा को लेकर के जांच बिठाई गई थी, जिसमें अभी फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है. प्रथम दृष्टया देखा गया है मौसम विभाग द्वारा सरखेत में इस तरह की परिस्थितियों को लेकर किसी भी तरह की पूर्व चेतावनी नहीं दी गई थी. यह बात तब और ज्यादा गंभीर हो जाती है जब मौसम विभाग के पास उसके द्वारा लगाए गए संयंत्रों से डाटा प्राप्त नहीं हो पा रहा है. ऐसे में डॉप्लर रडार और अधिक प्रदेश में लगाए जाने की बात हो रही है तो इस पर अधिक विचार विमर्श की जरूरत है.
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वहीं, दूसरी तरफ मौसम निदेशक विक्रम सिंह ने कहा उत्तराखंड में मौजूद तमाम पहाड़ों और घाटियों की वजह से डॉप्लर रडार एक बड़े क्षेत्र में मौसम के पूर्वानुमान का पता लगा पाता है, लेकिन, घाटियों और छोटे पहाड़ों के नीचे होने वाले डेवलपमेंट को लेकर बड़े डॉप्लर रडार पहले से पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ है. मौसम निदेशक विक्रम सिंह ने कहा हमें ज्यादा सटीक जानकारी के लिए छोटे-छोटे डॉप्लर रडार कम दूरी और छोटी-छोटी जगहों पर स्थापित किए जाने की जरूरत है. जिससे हमें अधिक बारीकी से डाटा प्राप्त हो सकेगा. जिससे हम आपदा प्रबंधन तंत्र को और अधिक मजबूत कर सकें.