देहरादून: साल 2013 में केदार घाटी में आई भयानक आपदा के बाद से ही मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए प्रदेश के अलग अलग स्थानों पर डॉप्लर रडार लगाए जाने की बात की जा रही है. मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आपदा के 7 साल बीत जाने के बाद भी अब तक प्रदेश में एक भी जगह डॉप्लर रडार पूरी तरह स्थापित नहीं हो सका है.
गौरतलब है कि डॉप्लर वेदर रडार मौसम की गतिविधियों को रिकॉर्ड करता है. उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है, यहां लगातार प्राकृतिक आपदाओं और मौसमी बदलाव का खतरा बना रहता है. ऐसे में यह रडार सूक्ष्म तरंगों को भापकर मौसमी बदलाव की सटीक भविष्यवाणी कर पाने में सक्षम होता है.
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बता दें कि डॉप्लर रडार के जरिए 400 किलोमीटर तक की मौसमी गतिविधियों को जाना जा सकता है. वहीं ये रडार करीब 4 घंटे पहले ही मौसम की सटीक जानकारी देने में सक्षम है. ऐसे में डॉप्लर रडार के लग जाने से उत्तराखंड में मौसम की सही जानकारी के लिए दिल्ली या पटियाला पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.
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प्रदेश में स्थापित होने जा रहे डॉप्लर रडार के संबंध में मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि प्रदेश के तीन स्थानों पर डॉप्लर रडार स्थापित किए जाने हैं. जिसमें से मुक्तेश्वर में फिलहाल डॉप्लर रडार स्थापित किया जा चुका है. मगर लॉकडाउन के चलते इस टेस्टिंग का काम रुका हुआ है. उन्होंने कहा उम्मीद है कि अगले दो से 3 सप्ताह में टेस्टिंग का कार्य पूरा करने के बाद डॉप्लर रडार काम करने लगेगा.
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गौरतलब है कि मुक्तेश्वर के अलावा टिहरी जनपद के सरकुंडा और पौड़ी जनपद के लैंसडाउन क्षेत्र में डॉप्लर रडार स्थापित किया जाना है. अभी तक सरकुंडा और लैंसडाउन में डॉप्लर रडार स्थापित करने का कार्य शुरू भी नहीं हो पाया है.
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बहरहाल, हर साल प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रदेश में कई लोग बेमौत मारे जाते हैं. ऐसे में यदि प्रदेश में डॉप्लर रडार समय रहते स्थापित कर दिए जाएं तो शायद इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से निपटा जा सकता है. मगर दुर्भाग्य तो देखिए की केदरनाथ आपदा के सात साल बीत जाने के बाद भी डॉप्लर रडार के संबंध में आश्वासन के अलावा कुछ और नहीं हो पाया है.