देहरादून : लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले तेजी से बढ़े हैं. अधिकतर मामले तो थानों में रिकॉर्ड हो जाते हैं, लेकिन कई ऐसे मामले भी हैं जो पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते. राजधानी देहरादून में लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा से जुड़े मामले थानों में दर्ज किए गए हैं लेकिन जो मामले दर्ज नहीं लिए उनका क्या कारण रहा और उनका निस्तारण कैसे किया गया ? इस पर देहरादून जिला विधिक प्राधिकरण सेवा की सचिव, जज नेहा कुशवाहा ने क्या कहा आप भी सुनिए...
लॉकडाउन के दौरान घरों में आपसी झगड़े की घटनाएं आम सी हो गई हैं. देहरादून में तमाम ऐसे घरेलू हिंसा से जुड़े मामले सामने आए हैं. इनमें से कुछ ऐसे मामले आए हैं जो थानों के रिकॉर्ड में हैं, लेकिन इससे अलग करीब 500 से अधिक मामले ऐसे सामने आए जो थानों में रिकॉर्ड नहीं है. ये वो मामले हैं जिन्हें देहरादून जिला विधिक प्राधिकरण सेवा ने अपने स्तर से सुलझाएं हैं.
घरेलू हिंसा के मामले बढ़ने का कारण यह भी है कि लॉकडाउन में घरों में रहने को मजबूर लोगों में पुराने झगड़े उभर रहे हैं, तो रोजी-रोटी के संकट के बीच तनाव बढ़ने के चलते भी मामले बढ़े हैं. देहरादून जिला विधिक प्राधिकरण सेवा की सचिव, जज नेहा कुशवाहा ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान अधिकतर अपराध घरों के अंदर ही होते हैं. जिसमें घरेलू हिंसा, चाइल्ड एब्यूज और सेक्सुअल हरासमेंट आदि शामिल हैं. इसे देखते हुए इन मामलों की समस्याओं के निस्तारण के लिए जिला विधिक प्राधिकरण सेवा ने अपने पराविधिक कार्यकर्ताओं के नंबरों को सर्कुलेट करा दिए थे, जिसके बाद इस लॉकडाउन के दौरान अभीतक 500 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं.
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तीन चरण में किया गया समस्याओं का निस्तारण
वहीं, जज नेहा कुशवाहा ने बताया कि घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए तीन तरीके अपनाए गए हैं, जिसमें सबसे पहले फोन कॉल, कॉन्फ्रेंस कॉल और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सॉल्व कराया जाता है. ऐसे में जब पार्टियां कॉल्स पर नहीं आती है तो इसके लिए पराविधिक कार्यकर्ताओं को पीड़ित पक्ष के घर भेजा जाता है और फिर मामले का निस्तारण कराया जाता है और जब यह दोनों तरीके फेल हो जाते हैं तब तीसरा चरण अपनाया जाता है, जिसमें पीड़ित पक्ष को फ्री लीगल सर्विस दी जाती है.
सभी वर्ग के फैमिली से आते है घरेलू हिंसा के मामले
जज नेहा कुशवाहा ने बताया कि डोमेस्टिक वायलेंस सिर्फ कम पढ़े लिखे लोगों, मजदूरों आदि के घरों में ही नहीं होते बल्कि ये मामले तमाम ऐसे घरों में देखने को मिले जो अच्छे खासे पढ़े-लिखे और आर्थिक स्थिति से भी मजबूत लोग थे. यही नहीं इस लॉकडाउन के तमाम ऐसे घरों से घरेलू हिंसा के मामले को भी सुझाया गया जो खुद सरकारी जॉब में थे.