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विकासनगर: सुर साधना में मंत्रमुग्ध हुआ दिव्यांग, अपने हुनर से बनाई नई पहचान

दिव्यांग संगीत शिक्षक सरजू कुमार की बांसुरी की धुन पर लोग मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करने लगते हैं. संगीत के क्षेत्र में सूरज दूसरों के लिए प्रेरणा बना हुआ है. सरजू का कहना है कि दिव्यांगों को अपने हुनर को पहचानकर आगे बढ़ना चाहिए.

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दिव्यांग युवक
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Published : Dec 6, 2019, 4:07 PM IST

विकासनगरः कहते हैं कि अगर इंसान के दिल में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो वह कुछ भी कर सकता है. अक्सर लोग परिस्थितियों का रोना रोते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपनी हिम्मत और जज्बे से विषम परिस्थितियां को अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर कर देते हैं. कुछ ऐसा ही कार्य जौनसार बावर के एक दिव्यांग युवक ने किया है. जो संगीत के क्षेत्र में लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है.

ग्राम पुना पोखरी तहसील चकराता जिला देहरादून निवासी सरजू कुमार की कहानी कुछ हद तक फिल्मी लगती है. तीन वर्ष की आयु में गरीबी के चलते सरजू के माता-पिता उसकी आंखों का इलाज नहीं कर पाए और इंफेक्शन के कारण सरजू कुमार की आंखों की रौशनी चली गई, लेकिन सरजू ने हिम्मत नहीं हारी.

दिव्यांग युवक की बांसुरी की धुन बना देती है दीवाना.

इसी हिम्मत की बदौलत वे आज एक स्कूल में संगीत अध्यापक हैं और कुशल बांसुरी वादक हैं. बचपन से ही संगीत के शौकीन सरजू आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. सरजू के अनुसार रेडियो व ग्रामीण बुजुर्गों से बांसुरी की धुन सुनकर संगीत के प्रति ऐसा लगाव लगा कि उसके दिल में बांसुरी की धुन ने जगह बना ली.

बाद में प्लास्टिक के पीवीसी पाइप से बांसुरी तैयार कर अपने हुनर का जादू भी बिखेरना शुरू कर दिया. उसकी बांसुरी को सुनने के लिए लोगों में बड़ी उत्सुकता बढ़ने लगी. सरजू का कहना है कि मैं अपने गांव से चकराता पैदल ही आया करता था. चकराता में लोक कला मंच के निर्देशक नंदलाल भारती से मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे एक मंच दिया. उनके साथ अनेक मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया.

बांसुरी बजाकर जो आमदनी होती थी उससे परिवार के भरण-पोषण के लिए भी सहयोग करता रहा. जब सरजू 12 वर्ष के थे और चकराता में बांसुरी की धुन सुना रहे थे उसी दौरान साल 1998-99 में प्रमोद चौधरी से उनकी मुलाकात हुई.

वे सरजू के मुरीद हो गए. उन्होंने सरजू की इस कला की पहचान की और उन्हें हरिद्वार में अजरानंद विद्यालय में प्रवेश दिलाया. उसके बाद सरजू ने 10वीं की परीक्षा दिल्ली से पास की. 11वीं में प्रवेश के लिए देहरादून के अनेक विद्यालयों में भटकते रहे. बाद में पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा ने सरजू को राजपुर रोड स्थित विद्यालय में प्रवेश दिलाया.

यह भी पढ़ेंः ..तो नहीं झुकेगी श्राइन बोर्ड मामले में सरकार, जारी किए 10 करोड़ रुपये

यहां से शिक्षा प्राप्त कर शॉर्टहैंड कंप्यूटर टाइपिंग की तैयारी की. उसके बाद डीएवी कॉलेज से बीए कर विकासनगर के एक प्राइवेट विद्यालय में संगीत अध्यापक के रूप में 3 वर्ष की सेवा दी. वहीं, कालसी के एकलव्य विद्यालय में संविदा के तौर पर सरजू ने परीक्षा पास की. आज सरजू कुमार एकलव्य आदर्श विद्यालय कालसी में करीब 400 छात्रों को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं. सरजू को बांसुरी में नेशनल फैलोशिप अवॉर्ड और ज्योति राव फुले अवॉर्ड भी मिल चुका है.

सरजू ने कहा कि दिव्यांगों को अपने हुनर को पहचानकर आगे बढ़ना चाहिए. अच्छी सोच रखने से ही लोग आगे बढ़ते हैं और अपने जीवन को बेकार नहीं समझना चाहिए. मुझे बचपन से ही संगीत के प्रति शौक था जो मेरा हुनर बना. इसी हुनर से मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं.

विकासनगरः कहते हैं कि अगर इंसान के दिल में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो वह कुछ भी कर सकता है. अक्सर लोग परिस्थितियों का रोना रोते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपनी हिम्मत और जज्बे से विषम परिस्थितियां को अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर कर देते हैं. कुछ ऐसा ही कार्य जौनसार बावर के एक दिव्यांग युवक ने किया है. जो संगीत के क्षेत्र में लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है.

ग्राम पुना पोखरी तहसील चकराता जिला देहरादून निवासी सरजू कुमार की कहानी कुछ हद तक फिल्मी लगती है. तीन वर्ष की आयु में गरीबी के चलते सरजू के माता-पिता उसकी आंखों का इलाज नहीं कर पाए और इंफेक्शन के कारण सरजू कुमार की आंखों की रौशनी चली गई, लेकिन सरजू ने हिम्मत नहीं हारी.

दिव्यांग युवक की बांसुरी की धुन बना देती है दीवाना.

इसी हिम्मत की बदौलत वे आज एक स्कूल में संगीत अध्यापक हैं और कुशल बांसुरी वादक हैं. बचपन से ही संगीत के शौकीन सरजू आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. सरजू के अनुसार रेडियो व ग्रामीण बुजुर्गों से बांसुरी की धुन सुनकर संगीत के प्रति ऐसा लगाव लगा कि उसके दिल में बांसुरी की धुन ने जगह बना ली.

बाद में प्लास्टिक के पीवीसी पाइप से बांसुरी तैयार कर अपने हुनर का जादू भी बिखेरना शुरू कर दिया. उसकी बांसुरी को सुनने के लिए लोगों में बड़ी उत्सुकता बढ़ने लगी. सरजू का कहना है कि मैं अपने गांव से चकराता पैदल ही आया करता था. चकराता में लोक कला मंच के निर्देशक नंदलाल भारती से मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे एक मंच दिया. उनके साथ अनेक मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया.

बांसुरी बजाकर जो आमदनी होती थी उससे परिवार के भरण-पोषण के लिए भी सहयोग करता रहा. जब सरजू 12 वर्ष के थे और चकराता में बांसुरी की धुन सुना रहे थे उसी दौरान साल 1998-99 में प्रमोद चौधरी से उनकी मुलाकात हुई.

वे सरजू के मुरीद हो गए. उन्होंने सरजू की इस कला की पहचान की और उन्हें हरिद्वार में अजरानंद विद्यालय में प्रवेश दिलाया. उसके बाद सरजू ने 10वीं की परीक्षा दिल्ली से पास की. 11वीं में प्रवेश के लिए देहरादून के अनेक विद्यालयों में भटकते रहे. बाद में पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा ने सरजू को राजपुर रोड स्थित विद्यालय में प्रवेश दिलाया.

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यहां से शिक्षा प्राप्त कर शॉर्टहैंड कंप्यूटर टाइपिंग की तैयारी की. उसके बाद डीएवी कॉलेज से बीए कर विकासनगर के एक प्राइवेट विद्यालय में संगीत अध्यापक के रूप में 3 वर्ष की सेवा दी. वहीं, कालसी के एकलव्य विद्यालय में संविदा के तौर पर सरजू ने परीक्षा पास की. आज सरजू कुमार एकलव्य आदर्श विद्यालय कालसी में करीब 400 छात्रों को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं. सरजू को बांसुरी में नेशनल फैलोशिप अवॉर्ड और ज्योति राव फुले अवॉर्ड भी मिल चुका है.

सरजू ने कहा कि दिव्यांगों को अपने हुनर को पहचानकर आगे बढ़ना चाहिए. अच्छी सोच रखने से ही लोग आगे बढ़ते हैं और अपने जीवन को बेकार नहीं समझना चाहिए. मुझे बचपन से ही संगीत के प्रति शौक था जो मेरा हुनर बना. इसी हुनर से मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं.

Intro:विकासनगर चकराता के पुनः पोखरी ग्राम के सरजू कुमार कि 3 वर्ष की आयु में आई फ्लू होने के कारण आंखों की रोशनी चली गई परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण नहीं मिला इलाज प्लास्टिक की पाइप की बांसुरी बनाकर अपने हुनर को निखार देहरादून के कालसी एकलव्य विद्यालय में है संगीत टीचर


Body:जौनसार बावर के ग्राम पुना पोखरी तहसील चकराता जिला देहरादून के सरजू कुमार की कहानी कुछ हद तक एक फिल्मी करैक्टर की तरह ही लगती है 3 वर्ष की आयु में गरीबी के चलते सरजू के माता-पिता उसकी आंखों का इलाज नहीं कर पाए आई फ्लू होने के चलते सरजू कुमार की आंखों की रोशनी चली गई लेकिन सरजू कुमार ने आंखों की रोशनी जाने उसे अपनी हिम्मत और अपने हुनर को कायम रखा रेडियो में बांसुरी सुनते हुए ग्रामीण बुजुर्गों से बांसुरी की धुन सुनते सरजू के मन में संगीत के प्रति ऐसा लगाओ चढ़ा के उसके दिल में बांसुरी की धुन ने जगह कर ली और उसने प्लास्टिक के पी पी सी पाइप से एक बांसुरी तैयार कर अपने हुनर का जादू भी बिखेराना शुरू कर दिया उसकी बांसुरी को सुनने के लिए लोगों में बड़ी उत्सुकता बढ़ने लगी सरजू का कहना है कि मैं अपने गांव से चकराता को पैदल ही आया करता था वह चकराता में लोक कला मंच के निर्देशक नंदलाल भारती से मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे एक मंच दिया उनके साथ अनेकों मंचों पर बांसुरी की धुन सुना कर लोगों को मंत्रमुग्ध किया और जो मंचों पर बांसुरी बजाकर आमदनी होती थी उसमें परिवार के भरण-पोषण के लिए मैं सहयोग करता रहा जब सरजू 12 वर्ष की आयु के थे तो वह चकराता में लोगों को अपनी बांसुरी की धुन सुना रहे थे उसी दौरान 1998 -99 को एक सज्जन प्रमोद चौधरी नाम के व्यक्ति भी चकराता आए हुए थे सरजू के बांसुरी के मुरीद हो गए और उन्होंने सरजू के इस कला की पहचान की और उन्हें हरिद्वार में अजरानंद विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया उसके बाद सरजू ने दसवीं की प्राइवेट परीक्षा दिल्ली से पास की फिर देहरादून लोटा है और 11वीं में प्रवेश के लिए देहरादून जगह-जगह विद्यालयों में भटकते रहे पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा ने सरजू को राजपुर रोड स्थित अंध विद्यालय में प्रवेश दिलाया यहां से शिक्षा प्राप्त कर इन्होंने शॉर्टहैंड कंप्यूटर टाइपिंग की तैयारी की उसके बाद डीएवी कॉलेज से b.a. कर विकासनगर के एक प्राइवेट विद्यालय में संगीत अध्यापक के रूप में 3 वर्ष की सेवा दी वही कालसी के एकलव्य विद्यालय में संविदा के तौर पर सरजू ने परीक्षा पास की आज सरजू कुमार एकलव्य आदर्श विद्यालय कालसी में 300 से 400 के करीब छात्र छात्राओं को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं


Conclusion:भाई सरजू ने बताया कि दिव्यांग जनों से खासकर मैं कहना चाहता हूं कि अपने हुनर को पहचान कर आगे बढ़ते जाएं अच्छी सोच रखने से ही लोग आगे बढ़ते हैं और अपने जीवन को कमजोर नहीं समझना चाहिए मेरा बचपन से ही संगीत के प्रति शोक था जो मेरा हुनर बना आज मैं खुश हूं कि मेरा जो गॉड गिफ्ट बांसुरी है इसी से मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं
बांसुरी में नेशनल फैलोशिप अवार्ड
ज्योति राव फुले अवार्ड से भी मिल चुके हैं.

बाइट -सरजू कुमार -संगीत अध्यापक एकलव्य आदर्श विद्यालय कालसी
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