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लॉकडाउन में बढ़ी मदर गार्डन आफ 'लीची' पूरे उत्तर भारत की है शान, लीची और आम से देश दुनिया में इसका नाम

जमाने से दुनिया भर में अपनी किस्म और धाक जमा देने वाली स्वाद की लीची और आम के लिए जाना जाने वाला मदर गार्डन ऑफ लीची आज सालों बाद भी अपनी पहचान कायम रखे हुए है. इस गार्डन से कई घरों की रोजी-रोटी चलती है, साथ ही इससे राज्य सरकार को भी खासा लाभ होता.

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मदर गार्डन आफ 'लीची' पूरे उत्तर भारत की है शान
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Published : Jun 3, 2020, 3:19 PM IST

Updated : Jul 4, 2020, 2:52 PM IST

देहरादून:आम को फलों का राजा माना जाता है तो लीची फलों की रानी है, ये दोनों ही राजधानी देहरादून की खास पहचान हैं. यहां की लीची, आम देश और दुनिया के कोने-कोने में अपने लाजवाब स्वाद के लिए जाने जाते हैं. लीची और आम की ये स्वादिष्ट खेप एक विशेष गार्डन में तैयार होती है, जिसे पूरे उत्तर भारत में मदर गार्डन आफ 'लीची' कहा जाता है, आइये आपको इस गार्डन की विशेताओं के साथ-साथ यहां कैसे काम होता है इससे रुबरु करवाते हैं.

मदर गार्डन आफ 'लीची' पूरे उत्तर भारत की है शान

वर्ष 1910 में अंग्रेजों ने की थी स्थापना

देहरादून शहर आज भले ही कंक्रीटों के जंगल में तब्दील हो चुका है, लेकिन एक वक्त था जब यह अपनी लीची और आम के लिए पूरे देश और दुनिया में जाना जाता था. अंग्रेज जब भारत आए तो मसूरी उनके पसंदीदा जगहों में से एक थी. वहीं, देहरादून में अंग्रेजों ने कई ऐसे उद्यान विकसित किए जो आज अपना अस्तित्व खो चुके हैं. इन्हीं में से एक उद्यान अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1910 में स्थापित किया गया था. जिसे मदर गार्डन ऑफ लीची के नाम से जाना जाता है. इस उद्यान में आज भी लीची और आम की पैदावार होती है और आज भी यह उतना ही फेमस है. मुख्यमंत्री निवास से लगा यह बाग आज उत्तराखंड सरकार के उद्यान विभाग के अधीन है और इसे सर्किट हाउस गार्डन के नाम से जाना जाता है. आज भी इस बगीचे में लीची के 60-70 साल पूरे पेड़ लगे हुए हैं.

पढ़ें- IMA में चीफ इंस्ट्रक्टर की परेड, मास्क के साथ कैडेट्स ने किया कदमताल

"देहरा रोज" इस गार्डन की विशेषता

लीची की प्रजातियों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और लोकप्रिय रोज सेंटेड लीची को माना जाता है, जिसको जन्म देने वाला यही उद्यान है. बताया जाता है इस लीची की वजह से देहरादून को विशेष पहचान मिली थी. शुरुआत में इस लीची को "देहरा रोज" के नाम से जाना जाता था. आज भी इस गार्डन में लीची की 5 अलग-अलग तरह की प्रजाती पायी जाती है. वहीं, आज भी लीची की सभी किस्मों का संरक्षण और संवर्धन यहां किया जाता है.

ये भी पढ़े: प्रदेश में गन्ना पेराई सत्र समाप्त, पिछले साल की तुलना में 10% बढ़ा उत्पादन

हर साल 35 हजार लीची की पौध होती है तैयार

देहरादून मुख्यमंत्री आवास से लगा यह उद्यान 7.14 हेक्टेयर में फैला है. इस विशाल बगीचे से ना केवल हर साल उद्यान विभाग को लाखों का राजस्व आता है, बल्कि हर साल यहां से तकरीबन 25 हजार लीची की उन्नत किस्म की नई पौध बनकर तैयार होती है, जो कि प्रदेश में और प्रदेश के बाहर भी भेजी जाती है. गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि उत्तराखंड सहित उत्तरप्रदेश और आस पास में जहां भी लीची पायी जाती है. उन सबके लिए यह बाग मदर गार्डन है, क्योंकि सब जगह लीची इसी बगीचे से गयी है और अभी भी हर साल 35 हजार पौध यहां से बनाकर दूसरी जगहों पर भेजा जाता है.

पढ़ें- लॉकडाउन इफेक्ट: आर्थिक तंगी से गुजर रहे लोग, गहने बेचने को मजबूर

लीची की पौध बनाने का एक विशेष तरीका

देहरादून सर्किट हाउस में मौजूद इस मदर गार्डन में लगातार लीची की प्रजातियों को बेहतर उन्नत किस्म की बनाने और नए किस्म को विकसित करने पर शोध जारी है. बाग में लीची की नए पौध को तैयार करने के लिए भी कई प्रकार के प्रयोग किये जाते हैं. लीची के बाग में पौध तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि "एयर लेयरिंग" के जरिये यहां पर पौध को तैयार करने का काम किया जा रहा है, जो 14 मार्च से लेकर मई और जून तक चलता है. इसे कृषि की भाषा मे बुटी बांधना भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि हर साल 30 से 35 हजार बुटी बांधी जाती है और आने वाली बरसात के लिए इन्हें तैयार किया जाता है.

पढ़ें- शराब पीकर अनुसेवक ने की बदसलूकी, जिलाधिकारी ने किया निलंबित

बीज से नहीं बल्कि ऐसे तैयार होता है लीची का पेड़

अमूमन हम लोग लीची खाते वक्त यह सोचते हैं कि इसके बीज से दूसरा लीची का पौधा तैयार हो जाता होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. उस बीज से पेड़ तो निकल आएगा, लेकिन इस पेड़ में उतनी स्वादिष्ट लीची शायद ही मिले, जितनी स्वादिष्ट लीची आप खाते होंगे. सर्किट हाउस लीची गार्डन के अधिकारियों ने बताया कि लीची की उत्तम किस्म तैयार करने के लिए उसकी पौध को पेड़ की टहनी से तैयार किया जाता है ना कि उसके बीज से.

उन्होंने बताया कि जिस पेड़ की लीची स्वादिष्ट होती है, उस पेड़ को चिन्हित किया जाता है. उसके बाद पेड़ की पेंसिल साइज की उन शाखाओं को चुना जाता है, जो कि सूर्य के प्रकाश में मौजूद हो और फिर उन पर कुछ जरूरी रसायन और मिट्टी के साथ परत तैयार कर एयर टाइट कर दिया जाता है. जिसके बाद जरूरी प्रक्रियाओं के कुछ समय बाद इसमें जड़ें निकल आती हैं और फिर इन्हें पूरे रख रखाव के साथ रोपाई कर दी जाती है.

पढ़ें-रुद्रपुर: मनरेगा में सैकड़ों प्रवासियों को मिला रोजगार

देहरादून में मुख्यमंत्री आवास से लगा ये गार्डन राज्य की आर्थिकी का भी एक बड़ा जरिया है, इस गार्डन से कई घरों की रोजी-रोटी चलती है, मगर, लॉकडाउन ने सरकार के साथ ही यहां काम करने वालों के जीवन पर भी असर डाला है. आम सीजन की तरह ही इस बार भी मदर गार्डन आफ लीची में अच्छे किस्म के आम, लीची और अन्य फलों की पैदावार हुई है, जो एक बार फिर से देश-दुनिया के कोने में पहुंचने को तैयार है, मगर लॉकडाउन और लेबरों की कमी के कारण फलों की खेप को बाहर भेजने में दिक्कतें आ रही है, ऐसे में अब सभी को इंतजार है कि कब स्थितियां सामान्य हों और इससे जुड़े लोगों का जीवन पटरी पर आ सके.

देहरादून:आम को फलों का राजा माना जाता है तो लीची फलों की रानी है, ये दोनों ही राजधानी देहरादून की खास पहचान हैं. यहां की लीची, आम देश और दुनिया के कोने-कोने में अपने लाजवाब स्वाद के लिए जाने जाते हैं. लीची और आम की ये स्वादिष्ट खेप एक विशेष गार्डन में तैयार होती है, जिसे पूरे उत्तर भारत में मदर गार्डन आफ 'लीची' कहा जाता है, आइये आपको इस गार्डन की विशेताओं के साथ-साथ यहां कैसे काम होता है इससे रुबरु करवाते हैं.

मदर गार्डन आफ 'लीची' पूरे उत्तर भारत की है शान

वर्ष 1910 में अंग्रेजों ने की थी स्थापना

देहरादून शहर आज भले ही कंक्रीटों के जंगल में तब्दील हो चुका है, लेकिन एक वक्त था जब यह अपनी लीची और आम के लिए पूरे देश और दुनिया में जाना जाता था. अंग्रेज जब भारत आए तो मसूरी उनके पसंदीदा जगहों में से एक थी. वहीं, देहरादून में अंग्रेजों ने कई ऐसे उद्यान विकसित किए जो आज अपना अस्तित्व खो चुके हैं. इन्हीं में से एक उद्यान अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1910 में स्थापित किया गया था. जिसे मदर गार्डन ऑफ लीची के नाम से जाना जाता है. इस उद्यान में आज भी लीची और आम की पैदावार होती है और आज भी यह उतना ही फेमस है. मुख्यमंत्री निवास से लगा यह बाग आज उत्तराखंड सरकार के उद्यान विभाग के अधीन है और इसे सर्किट हाउस गार्डन के नाम से जाना जाता है. आज भी इस बगीचे में लीची के 60-70 साल पूरे पेड़ लगे हुए हैं.

पढ़ें- IMA में चीफ इंस्ट्रक्टर की परेड, मास्क के साथ कैडेट्स ने किया कदमताल

"देहरा रोज" इस गार्डन की विशेषता

लीची की प्रजातियों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और लोकप्रिय रोज सेंटेड लीची को माना जाता है, जिसको जन्म देने वाला यही उद्यान है. बताया जाता है इस लीची की वजह से देहरादून को विशेष पहचान मिली थी. शुरुआत में इस लीची को "देहरा रोज" के नाम से जाना जाता था. आज भी इस गार्डन में लीची की 5 अलग-अलग तरह की प्रजाती पायी जाती है. वहीं, आज भी लीची की सभी किस्मों का संरक्षण और संवर्धन यहां किया जाता है.

ये भी पढ़े: प्रदेश में गन्ना पेराई सत्र समाप्त, पिछले साल की तुलना में 10% बढ़ा उत्पादन

हर साल 35 हजार लीची की पौध होती है तैयार

देहरादून मुख्यमंत्री आवास से लगा यह उद्यान 7.14 हेक्टेयर में फैला है. इस विशाल बगीचे से ना केवल हर साल उद्यान विभाग को लाखों का राजस्व आता है, बल्कि हर साल यहां से तकरीबन 25 हजार लीची की उन्नत किस्म की नई पौध बनकर तैयार होती है, जो कि प्रदेश में और प्रदेश के बाहर भी भेजी जाती है. गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि उत्तराखंड सहित उत्तरप्रदेश और आस पास में जहां भी लीची पायी जाती है. उन सबके लिए यह बाग मदर गार्डन है, क्योंकि सब जगह लीची इसी बगीचे से गयी है और अभी भी हर साल 35 हजार पौध यहां से बनाकर दूसरी जगहों पर भेजा जाता है.

पढ़ें- लॉकडाउन इफेक्ट: आर्थिक तंगी से गुजर रहे लोग, गहने बेचने को मजबूर

लीची की पौध बनाने का एक विशेष तरीका

देहरादून सर्किट हाउस में मौजूद इस मदर गार्डन में लगातार लीची की प्रजातियों को बेहतर उन्नत किस्म की बनाने और नए किस्म को विकसित करने पर शोध जारी है. बाग में लीची की नए पौध को तैयार करने के लिए भी कई प्रकार के प्रयोग किये जाते हैं. लीची के बाग में पौध तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि "एयर लेयरिंग" के जरिये यहां पर पौध को तैयार करने का काम किया जा रहा है, जो 14 मार्च से लेकर मई और जून तक चलता है. इसे कृषि की भाषा मे बुटी बांधना भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि हर साल 30 से 35 हजार बुटी बांधी जाती है और आने वाली बरसात के लिए इन्हें तैयार किया जाता है.

पढ़ें- शराब पीकर अनुसेवक ने की बदसलूकी, जिलाधिकारी ने किया निलंबित

बीज से नहीं बल्कि ऐसे तैयार होता है लीची का पेड़

अमूमन हम लोग लीची खाते वक्त यह सोचते हैं कि इसके बीज से दूसरा लीची का पौधा तैयार हो जाता होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. उस बीज से पेड़ तो निकल आएगा, लेकिन इस पेड़ में उतनी स्वादिष्ट लीची शायद ही मिले, जितनी स्वादिष्ट लीची आप खाते होंगे. सर्किट हाउस लीची गार्डन के अधिकारियों ने बताया कि लीची की उत्तम किस्म तैयार करने के लिए उसकी पौध को पेड़ की टहनी से तैयार किया जाता है ना कि उसके बीज से.

उन्होंने बताया कि जिस पेड़ की लीची स्वादिष्ट होती है, उस पेड़ को चिन्हित किया जाता है. उसके बाद पेड़ की पेंसिल साइज की उन शाखाओं को चुना जाता है, जो कि सूर्य के प्रकाश में मौजूद हो और फिर उन पर कुछ जरूरी रसायन और मिट्टी के साथ परत तैयार कर एयर टाइट कर दिया जाता है. जिसके बाद जरूरी प्रक्रियाओं के कुछ समय बाद इसमें जड़ें निकल आती हैं और फिर इन्हें पूरे रख रखाव के साथ रोपाई कर दी जाती है.

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देहरादून में मुख्यमंत्री आवास से लगा ये गार्डन राज्य की आर्थिकी का भी एक बड़ा जरिया है, इस गार्डन से कई घरों की रोजी-रोटी चलती है, मगर, लॉकडाउन ने सरकार के साथ ही यहां काम करने वालों के जीवन पर भी असर डाला है. आम सीजन की तरह ही इस बार भी मदर गार्डन आफ लीची में अच्छे किस्म के आम, लीची और अन्य फलों की पैदावार हुई है, जो एक बार फिर से देश-दुनिया के कोने में पहुंचने को तैयार है, मगर लॉकडाउन और लेबरों की कमी के कारण फलों की खेप को बाहर भेजने में दिक्कतें आ रही है, ऐसे में अब सभी को इंतजार है कि कब स्थितियां सामान्य हों और इससे जुड़े लोगों का जीवन पटरी पर आ सके.

Last Updated : Jul 4, 2020, 2:52 PM IST
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