देहरादून: देवभूमि के नाम से जाना जाने वाला उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में इन दिनों सन्नाटा पसरा हुआ है. कभी यह शहर लोगों से गुलजार हुआ करता था. बाजारों की रौनक देखते ही बनती थी, लेकिन इन दिनों मानो देहरादून की रौनक कही खो सी गई है. देश और दुनिया में शिक्षा नगरी के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले शहर में आज वीरानी छायी हुई है, लेकिन आज से करीब एक महीने पहले ऐसा नहीं था. सामान्य दिनों में लोगों की चहलकदमी, वाहनों की आवाजाही और पर्यटकों की भीड़ शहर की रौनक में चार चांद लगाते थे.
इस विरानी का कारण देश और दुनिया में फैला कोरोना महामारी है, जिसकी वजह से पूरे विश्व में मानों कर्फ्यू लगा हो. इस महामारी ने इंसानों की गतिविधि, गाड़ियों की रफ्तार और विकास के पहिए पर ब्रेक लगा रखा है. जिसका प्रभाव साफ तौर पर देहरादून में भी दिख रहा है और इस सन्नाटे में यह शहर अपनी दास्तान खुद बयां कर रही है. आप भी सुनिए इस शहर की कहानी, शहर की ही 'जुबानी'...
मैं देहरादून हूं
मैं देहरादून हूं. शिक्षा नगरी के तौर पर सालों से अपनी पहचान बनाए रखने के साथ ही आज देश और दुनिया मे मुझे लोग उत्तराखंड की राजधानी के तौर पर भी जानते हैं. पिछले एक महीने से मैं खुद में एक बड़ा बदलाव देख रहा हूं. यह बदलाव है मुझमें पसरा सन्नाटा और मेरी यह सुनसान सड़कें. जो सामान्य दिनों में हमेशा ही इंसानों की चहलकदमी और वाहनों की आवाजाही से पटी रहती थी.
लॉकडाउन ने बदली तस्वीर
मैंने सुना है कि देश और दुनिया में इन दिनों भयंकर कोरोना महामारी फैली हुई है, जिसकी वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लागू है. शायद यह बंदी का ही असर है कि आज देश और दुनिया के अन्य शहरों की तर्ज पर मेरी तस्वीर भी बदल चुकी है. जो सन्नाटा आज मुझ में पसरा हुआ है. यह मेरी वास्तविक तस्वीर बिल्कुल नहीं है, बल्कि मैं तो देश के उन चुनिंदा शहरों में से हूं. जहां हमेशा ही इंसानों की चहलकदमी जारी रहती है साथ ही 24 घंटे वाहन दौड़ते नजर आते हैं.
रास नहीं आ रहा यह दौर
सच कहूं तो बंदी का यह दौर मुझे बिल्कुल रास नहीं आ रहा. यह सन्नाटा और यह सुनसान पड़ी सड़कें देख कर मेरा दिल यानी घंटाघर यह सोचने को मजबूर हो गया है कि आखिर पहले कब मैंने इतना सन्नाटा देखा था ? यदि आप पहले कभी देहरादून नहीं आए हैं तो आप जरूर सोच रहे होंगे कि यह घंटाघर क्या है ? बता दूं कि यह एक षटकोणीय इमारत है जिसे अंग्रेजी शासनकाल के समय बनाया गया था. अपनी गगनचुंबी लंबाई की वजह से यह मेरी पहचान बन चुका है. इस घंटाघर को लोग मेरा दिल कहकर भी पुकारते हैं.
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मेरा दिल घंटाघर में भी छाई है खामोशी
बता दूं कि घंटाघर के आसपास का यह चौराहा सामान्य दिनों में इतना सुनसान कभी नहीं हुआ करता था. यहां हमेशा ही इंसानों की चहल कदमी और वाहनों की आवाजाही साल के 365 दिन जारी रहा करती थी, लेकिन आज मेरा यह सबसे व्यस्त चौराहा भी सुनसान पड़ा है. सिर्फ घंटाघर ही नहीं बल्कि पिछले 1 महीने से मेरे सभी भीड़भाड़ वाले इलाके सुनसान ही नजर आ रहे हैं. इसमें से एक मेरा सबसे पुराना पलटन बाजार भी है. पलटन बाजार मेरा सबसे प्रसिद्ध बाजार है. यहां हर दिन हजारों लोग खरीदारी करने के लिए पहुंचते थे. लेकिन आज यहां दूर-दूर तक एक इंसान भी नजर नहीं आ रहा है. जहां तक नजर दौड़ाए वहां सिर्फ सुनसान सड़कें और दुकानों के बंद शटर ही नजर आ रहे हैं.
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शहर की पहचान राजपुर रोड भी है वीरान
कुछ ऐसा ही हाल मेरी राजपुर रोड का भी है. सामान्य दिनों में अप्रैल महीने में देश-विदेश से आने वाले पर्यटक मेरी इस सड़क से होते हुए मसूरी का रुख किया करते थे. वहीं, कई लोग यहां मौजूद ब्रांडेड शोरूम में खरीददारी करने के लिए भी पहुंचते थे, लेकिन पिछले एक महीने से मेरी यह सड़क भी सुनसान पड़ी है. इस सुनसान पड़ी सड़क में गिने-चुने वाहनों के अलावा इन दिनों सिर्फ अपनी ड्यूटी देते पुलिसकर्मी ही नजर आ रहे हैं.
गांधी पार्क भी इन दिनों सुनसान है
लॉकडाउन के बीच मेरा गांधी पार्क भी इन दिनों सुनसान पड़ा है. मेरे इस पार्क में कभी सुबह और शाम सैर सपाटे के लिए निकलने वाले बड़े-बुजुर्ग और बच्चों की चहल पहल रहती थी, लेकिन आज इसके भी गेट पर ताला जड़ दिया गया है. सच कहूं तो पिछले 1 महीने से पसरा यह सन्नाटा मुझे बैचेन कर रहा है. मैं इंसानों की चहल-पहल और वाहनों की रफ्तार को दोबारा खुद में देखना चाहता हूं, लेकिन शायद यह तभी संभव होगा जब वर्तमान में आप कोरोना महामारी के खिलाफ जारी जंग के बीच अपने घरों में कैद रहेंगे और सुरक्षित रहेंगे. मैं देहरादून आप सभी से यह उम्मीद करता हूं कि जल्द ही कोरोना महामारी के खिलाफ जारी इस जंग में हम जीत हासिल करेंगे और दोबारा हम सभी की जिंदगी पटरी पर लौट आएगी.