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चकराता के इस क्षेत्र में रहते हैं 'घातक' कमांडो, जाने के लिए लेनी होती है विशेष परमिशन

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Published : Jun 29, 2020, 4:32 PM IST

Updated : Jun 30, 2020, 2:38 PM IST

देहरादून जिले में स्थित चकराता एक छावनी क्षेत्र है, जो कि सामरिक दृष्टि से भी काफी संवेदनशील है. जिसके कारण यहां बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. यहां भारतीय सेना की बेहद गोपनीय टूटू रेजीमेंट का कैंप है.

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चकराता के इस क्षेत्र में रहते हैं 'घातक' कमांडो

देहरादून: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादियां विश्व विख्यात हैं. जहां हर साल लाखों सैलानी इन खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं. यही नहीं प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही तमाम ऐसे खूबसूरत स्थान भी हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. देहरादून शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर बसा चकराता इन्हीं में से एक है.

चकराता, देहरादून के जंगलों के बीच बसा एक खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है. जहां घूमने के लिए सैलानी लालायित रहते हैं. मगर, चकराता के बारे में एक बात और भी है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. यहां के जंगलों में बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. इसे लेकर ईटीवी भारत ने रक्षा मामलों के जानकारों से बात की. जिसमें हमने इसके पीछे की वजहों को जानने की कोशिश की.

चकराता के इस क्षेत्र में रहते हैं 'घातक' कमांडो.

दरअसल, देहरादून जिले में स्थित चकराता एक छावनी क्षेत्र है, जो कि सामरिक दृष्टि से भी काफी संवेदनशील है. जिसके कारण यहां बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. यहां भारतीय सेना की बेहद गोपनीय टूटू रेजिमेंट का कैंप है. टूटू रेजिमेंट भारतीय सैन्य ताकत का वो हिस्सा है जिसके बारे में शायद ही सार्वजनिक तौर पर जानकारियां उपलब्ध होंगी. ये रेजिमेंट बेहद गोपनीय तरीके से काम करती है. यही नहीं, पब्लिक डोमेन में टूटू रेजिमेंट के होने का कोई भी एविडेंस मौजूद नहीं है. यही वजह है कि चकराता एक प्रतिबंधित क्षेत्र है. यहां जाने के लिए विशेष तौर परमिशन ली जाती है. खास तौर पर विदेशी नागरिकों को बिना केंद्रीय गृह मंत्रालय की अनुमति के यहां जाने की इजाजत नहीं है.

पढ़ें- नेपाली FM में भारत विरोधी 'सुर', लोगों में आक्रोश

क्या है टूटू रेजीमेंट, कब हुई इसकी स्थापना

साल 1962 में भारत-चीन के बीच जब युद्ध हो रहा था तो उस दौरान तत्कालिक आईबी चीफ भोला नाथ मलिक ने तत्कालिक प्रधानमंत्री स्व० जवाहरलाल नेहरू को एक रेजिमेंट बनाने का सुझाव दिया. जिसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टूटू रेजिमेंट बनाने का फैसला लिया. टूटू रेजिमेंट बनाने का मकसद लद्दाख की भौगोलिक परिस्तिथियों को देखते हुए ऐसी फोर्स तैयार करना था जो चीन के पहाड़ी क्षेत्रों की सीमा में आसानी से दाखिल हो सके. जिसके लिए ऐसे नौवजवानों की जरूरत थी जो उस क्षेत्र से बखूबी वाकिफ हो. ऐसे में निर्णय लिया गया था कि तिब्बत के शरणार्थियों को इस रेजिमेंट में शामिल किया जाये, क्योंकि ये वो लोग हैं जो बचपन से उस क्षेत्र के चप्पे-चप्पे को न सिर्फ जानते हैं, बल्कि यहां के पहाड़ों पर भी आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं.

पढ़ें- भारत की सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने के लिए नेपाल बनाएगा कौवाक्षेत्र में बीओपी

क्यों पड़ा टूटू रेजिमेंट नाम

टूटू रेजिमेंट आधिकारिक तौर पर भारतीय सेना का हिस्सा नहीं है. यह रेजिमेंट भारतीय सेना के बजाय रॉ और कैबिनेट सचिव के माध्यम से सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है. टूटू रेजिमेंट की कमान डेप्युटेशन पर आए किसी सैन्य अधिकारी के हाथों में होती है. इस रेजिमेंट के गठन के बाद, भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह को पहला आईजी नियुक्त किया गया था. हलांकि रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह दूसरे विश्व युद्ध में 22वीं माउंटेन रेजीमेंट की कमान संभाल चुके थे. जिसके चलते इस नई रेजिमेंट को ‘इस्टैब्लिशमेंट 22’ या टूटू रेजिमेंट भी कहा जाने लगा.

पढ़ें- चीन बॉर्डर तक भारत बिछा रहा सड़कों का जाल, दारमा घाटी में दुग्तु तक सड़क कटिंग का काम हुआ पूरा

हालांकि शुरुआती दौर में जहां टूटू रेजिमेंट में सिर्फ तिब्बती मूल के जवानों को ही भर्ती किया जाता था, वहीं अब गोरखा नौजवानों को भी टूटू रेजिमेंट का हिस्सा बनाया जाता है. सुरक्षा की दृष्टि से इस रेजिमेंट की रिक्रूटमेंट, जवानों की संख्या, अफसरों की संख्या, बेसिक और एडवांस ट्रेनिंग प्रक्रिया और काम करने का तरीका क्या होता है, यह आज भी एक रहस्य ही है.

पढ़ें- पिथौरागढ़: वैली ब्रिज टूटने की होगी जांच, ठेकेदार के खिलाफ दर्ज हुई FIR

चीन से युद्ध के लिए तैयार की गई खुफिया रेजिमेंट

साल 1962 में चीन से युद्ध के दौरान एक कारागार हथियार के रूप में रेजिमेंट को तैयार किया गया था. उस दौरान जब रेजिमेंट के जवान पूरी तरह तैयार होते उससे पहले ही नवम्बर 1962 में चीन ने युद्धविराम की घोषणा कर दी. इसके बाद भी टूटू रेजीमेंट को भंग नहीं किया गया, बल्कि इस रेजिमेंट की ट्रेनिंग लगातार जारी रही. इस रेजिमेंट को चीन के खिलाफ सबसे खतरनाक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है. टूटू रेजिमेंट के गठन के शुरुआती दिनों में ट्रेंड करने का काम अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने किया था. इस रेजिमेंट के जवानों को अमेरिका की खास टुकड़ी ‘ग्रीन बेरेट’ की तर्ज पर ट्रेनिंग दी गयी है. ऐसे में अगर भविष्य में कभी चीन से युद्ध होता है तो यह टूटू रेजिमेंट देश की सबसे कारगर और खतरनाक रेजिमेंट साबित होगी.

पढ़ें- श्रीनगर: ऑल वेदर रोड निर्माण में लापरवाही, पहली बारिश में 50 मीटर दूर तक धंसी सड़क

वर्ल्ड वॉर के दौरान तमाम देशों ने बनायी थी रेजिमेंट

रक्षा मामलों के जानकार रिटायर्ड ब्रिगेडियर केजी बहल ने बताया कि टूटू रेजिमेंट वर्ल्ड वार के दौरान बनाई गई थी. हालांकि, सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि तमाम देशों ने भी इस तरह की कई रेजिमेंट बनाई थी. जिसकी मुख्य वजह युद्ध की स्थितियां, भौगोलिक क्षेत्र थी. जिसके अनुसार जवानों को तैयार किया जाता था. इन रेजिमेंट में विशेषतौर पर जवान तैयार किये जाते थे, जो बेहद ही घातक होते थे. भारत में लद्दाख की परिस्थितियों को देखते हुए टूटू रेजीमेंट बनाया गया था.

पढ़ें- कोरोना से 'जंग' जीतने वालों संग हो रहा भेदभाव, नहीं मिल रहा सामान, पड़ोसियों ने भी बनाई दूरी

रिटायर्ड ब्रिगेडियर ने बताया कि किसी भी रेजीमेंट का कमांडेंट कौन होगा वह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है. उसमें कितने जवान होंगे, वह जरूरत के हिसाब से तय किया जाता है. यही नहीं इसमें मुख्य रूप से फोकस किया जाता है कि इस रेजिमेंट में किस तरह के लोगों को शामिल किया जाना है. वह क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार तय किया जाता है. एक रेजिमेंट में हर तरह के एक्सपर्टस की जरूरत होती है. लिहाजा जो रेजिमेंट बनायी जाती है उसके जवानों को किस क्षेत्र में भेजना है? उस क्षेत्र को और वहां की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जवान शामिल किए जाते हैं.

देहरादून: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादियां विश्व विख्यात हैं. जहां हर साल लाखों सैलानी इन खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं. यही नहीं प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही तमाम ऐसे खूबसूरत स्थान भी हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. देहरादून शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर बसा चकराता इन्हीं में से एक है.

चकराता, देहरादून के जंगलों के बीच बसा एक खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है. जहां घूमने के लिए सैलानी लालायित रहते हैं. मगर, चकराता के बारे में एक बात और भी है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. यहां के जंगलों में बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. इसे लेकर ईटीवी भारत ने रक्षा मामलों के जानकारों से बात की. जिसमें हमने इसके पीछे की वजहों को जानने की कोशिश की.

चकराता के इस क्षेत्र में रहते हैं 'घातक' कमांडो.

दरअसल, देहरादून जिले में स्थित चकराता एक छावनी क्षेत्र है, जो कि सामरिक दृष्टि से भी काफी संवेदनशील है. जिसके कारण यहां बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. यहां भारतीय सेना की बेहद गोपनीय टूटू रेजिमेंट का कैंप है. टूटू रेजिमेंट भारतीय सैन्य ताकत का वो हिस्सा है जिसके बारे में शायद ही सार्वजनिक तौर पर जानकारियां उपलब्ध होंगी. ये रेजिमेंट बेहद गोपनीय तरीके से काम करती है. यही नहीं, पब्लिक डोमेन में टूटू रेजिमेंट के होने का कोई भी एविडेंस मौजूद नहीं है. यही वजह है कि चकराता एक प्रतिबंधित क्षेत्र है. यहां जाने के लिए विशेष तौर परमिशन ली जाती है. खास तौर पर विदेशी नागरिकों को बिना केंद्रीय गृह मंत्रालय की अनुमति के यहां जाने की इजाजत नहीं है.

पढ़ें- नेपाली FM में भारत विरोधी 'सुर', लोगों में आक्रोश

क्या है टूटू रेजीमेंट, कब हुई इसकी स्थापना

साल 1962 में भारत-चीन के बीच जब युद्ध हो रहा था तो उस दौरान तत्कालिक आईबी चीफ भोला नाथ मलिक ने तत्कालिक प्रधानमंत्री स्व० जवाहरलाल नेहरू को एक रेजिमेंट बनाने का सुझाव दिया. जिसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टूटू रेजिमेंट बनाने का फैसला लिया. टूटू रेजिमेंट बनाने का मकसद लद्दाख की भौगोलिक परिस्तिथियों को देखते हुए ऐसी फोर्स तैयार करना था जो चीन के पहाड़ी क्षेत्रों की सीमा में आसानी से दाखिल हो सके. जिसके लिए ऐसे नौवजवानों की जरूरत थी जो उस क्षेत्र से बखूबी वाकिफ हो. ऐसे में निर्णय लिया गया था कि तिब्बत के शरणार्थियों को इस रेजिमेंट में शामिल किया जाये, क्योंकि ये वो लोग हैं जो बचपन से उस क्षेत्र के चप्पे-चप्पे को न सिर्फ जानते हैं, बल्कि यहां के पहाड़ों पर भी आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं.

पढ़ें- भारत की सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने के लिए नेपाल बनाएगा कौवाक्षेत्र में बीओपी

क्यों पड़ा टूटू रेजिमेंट नाम

टूटू रेजिमेंट आधिकारिक तौर पर भारतीय सेना का हिस्सा नहीं है. यह रेजिमेंट भारतीय सेना के बजाय रॉ और कैबिनेट सचिव के माध्यम से सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है. टूटू रेजिमेंट की कमान डेप्युटेशन पर आए किसी सैन्य अधिकारी के हाथों में होती है. इस रेजिमेंट के गठन के बाद, भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह को पहला आईजी नियुक्त किया गया था. हलांकि रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह दूसरे विश्व युद्ध में 22वीं माउंटेन रेजीमेंट की कमान संभाल चुके थे. जिसके चलते इस नई रेजिमेंट को ‘इस्टैब्लिशमेंट 22’ या टूटू रेजिमेंट भी कहा जाने लगा.

पढ़ें- चीन बॉर्डर तक भारत बिछा रहा सड़कों का जाल, दारमा घाटी में दुग्तु तक सड़क कटिंग का काम हुआ पूरा

हालांकि शुरुआती दौर में जहां टूटू रेजिमेंट में सिर्फ तिब्बती मूल के जवानों को ही भर्ती किया जाता था, वहीं अब गोरखा नौजवानों को भी टूटू रेजिमेंट का हिस्सा बनाया जाता है. सुरक्षा की दृष्टि से इस रेजिमेंट की रिक्रूटमेंट, जवानों की संख्या, अफसरों की संख्या, बेसिक और एडवांस ट्रेनिंग प्रक्रिया और काम करने का तरीका क्या होता है, यह आज भी एक रहस्य ही है.

पढ़ें- पिथौरागढ़: वैली ब्रिज टूटने की होगी जांच, ठेकेदार के खिलाफ दर्ज हुई FIR

चीन से युद्ध के लिए तैयार की गई खुफिया रेजिमेंट

साल 1962 में चीन से युद्ध के दौरान एक कारागार हथियार के रूप में रेजिमेंट को तैयार किया गया था. उस दौरान जब रेजिमेंट के जवान पूरी तरह तैयार होते उससे पहले ही नवम्बर 1962 में चीन ने युद्धविराम की घोषणा कर दी. इसके बाद भी टूटू रेजीमेंट को भंग नहीं किया गया, बल्कि इस रेजिमेंट की ट्रेनिंग लगातार जारी रही. इस रेजिमेंट को चीन के खिलाफ सबसे खतरनाक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है. टूटू रेजिमेंट के गठन के शुरुआती दिनों में ट्रेंड करने का काम अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने किया था. इस रेजिमेंट के जवानों को अमेरिका की खास टुकड़ी ‘ग्रीन बेरेट’ की तर्ज पर ट्रेनिंग दी गयी है. ऐसे में अगर भविष्य में कभी चीन से युद्ध होता है तो यह टूटू रेजिमेंट देश की सबसे कारगर और खतरनाक रेजिमेंट साबित होगी.

पढ़ें- श्रीनगर: ऑल वेदर रोड निर्माण में लापरवाही, पहली बारिश में 50 मीटर दूर तक धंसी सड़क

वर्ल्ड वॉर के दौरान तमाम देशों ने बनायी थी रेजिमेंट

रक्षा मामलों के जानकार रिटायर्ड ब्रिगेडियर केजी बहल ने बताया कि टूटू रेजिमेंट वर्ल्ड वार के दौरान बनाई गई थी. हालांकि, सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि तमाम देशों ने भी इस तरह की कई रेजिमेंट बनाई थी. जिसकी मुख्य वजह युद्ध की स्थितियां, भौगोलिक क्षेत्र थी. जिसके अनुसार जवानों को तैयार किया जाता था. इन रेजिमेंट में विशेषतौर पर जवान तैयार किये जाते थे, जो बेहद ही घातक होते थे. भारत में लद्दाख की परिस्थितियों को देखते हुए टूटू रेजीमेंट बनाया गया था.

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रिटायर्ड ब्रिगेडियर ने बताया कि किसी भी रेजीमेंट का कमांडेंट कौन होगा वह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है. उसमें कितने जवान होंगे, वह जरूरत के हिसाब से तय किया जाता है. यही नहीं इसमें मुख्य रूप से फोकस किया जाता है कि इस रेजिमेंट में किस तरह के लोगों को शामिल किया जाना है. वह क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार तय किया जाता है. एक रेजिमेंट में हर तरह के एक्सपर्टस की जरूरत होती है. लिहाजा जो रेजिमेंट बनायी जाती है उसके जवानों को किस क्षेत्र में भेजना है? उस क्षेत्र को और वहां की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जवान शामिल किए जाते हैं.

Last Updated : Jun 30, 2020, 2:38 PM IST
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