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वन्यजीव सप्ताह: दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण पर हुआ मंथन, पोस्टरों का किया विमोचन

वन्यजीव सप्ताह के तहत उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की बैठक में दुर्लभ प्रजाति के जीवों को बचाने के लिए जागरूकता पर बल दिया गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण पर हुआ मंथन.
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Published : Oct 8, 2019, 8:25 AM IST

देहरादून: वन्यजीव सप्ताह के समापन पर वन्यजीव संरक्षण सोसायटी द्वारा दुर्लभ प्रजाति के जीवों को बचाने के लिए जागरूकता पर बल दिया गया. इस अवसर पर स्तनधारी जीवों जैसे पैंगोलिन, नेवलों, मॉनिटर लिजर्ड जैसी प्रजातियों को बचाने पर चिंतन किया गया. साथ ही इस मौके पर जीवों के पोस्टरों का भी विमोचन किया गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण पर हुआ मंथन.

गौर हो कि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के मेंबर सेकेट्री संग्राम सिंह ने बताया कि देश में सरकार द्वारा वन्यजीवों को बचाने तथा विलुप्त होने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पैंगोलिन जीव के अंगों की तस्करी पिछले कई वर्षों से की जाती रही है. 2006 से 2015 तक पैंगोलिन की बड़े पैमाने पर तस्करी की गई और चाइना भेजा गया. जहां पर विशेष दवाई तैयार की जाती है. यही वजह है कि आज पैंगोलिन की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. उन्होंने बताया कि लोगों में इस जीव के प्रति कई अंधविश्वास हैं.

पढ़ें-रंजिशन किसान के खेत में डाला केमिकल, लाखों की फसल बर्बाद

संग्राम सिंह ने बताया कि नेवले मॉनिटर लिजर्ड या फिर पैंगोलिन को लेकर अभी तक कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है. तीनों प्रजातियों का रिसर्च करने पर पता चला है कि समूचे भारतवर्ष में इसकी गणना करने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. इस संबंध मे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से भी वार्ता हो चुकी है. लेकिन वहां पर इससे संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. फिलहाल इन प्रजातियों पर रिसर्च जारी है. उत्तराखंड में प्रजातियों के बारे में जिस तकनीक को विकसित किया जाएगा उन तकनीकों को पूरे देश में साझा किया जाएगा. ताकि इन प्रजातियों की मॉनिटर करने के अलावा गणना के तरीकों को भी धरातल पर लाया जा सके.

दरअसल, विश्व में सबसे ज्यादा स्तनधारी जीव के रूप में जाना जाने वाले पैंगोलिन की तस्करी सबसे ज्यादा होती है. पैंगोलिन के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां भी जुड़ी हुई है. इसके स्कल सियानी शल्क से निर्मित दवाइयां खाने से नपुंसकता खत्म हो जाती है. असल में यह सब भ्रांतियां हैं, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हैं. अंधविश्वास के चलते विगत वर्षों में उत्तराखंड में पैंगोलिन की तस्करी बढ़ी है. इसकी पूरे विश्व में कुल 8 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें से 2 प्रजातियां भारत में पाई जाती है. वहीं 2 में से केवल एक प्रजाति उत्तराखंड में पाई जाती है. वहीं जैव विविधता बोर्ड प्रयास करते हुए इनकी गणना पर फोकस कर रहा है, जिसको पूरे देश में साझा किया जाएगा.

देहरादून: वन्यजीव सप्ताह के समापन पर वन्यजीव संरक्षण सोसायटी द्वारा दुर्लभ प्रजाति के जीवों को बचाने के लिए जागरूकता पर बल दिया गया. इस अवसर पर स्तनधारी जीवों जैसे पैंगोलिन, नेवलों, मॉनिटर लिजर्ड जैसी प्रजातियों को बचाने पर चिंतन किया गया. साथ ही इस मौके पर जीवों के पोस्टरों का भी विमोचन किया गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण पर हुआ मंथन.

गौर हो कि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के मेंबर सेकेट्री संग्राम सिंह ने बताया कि देश में सरकार द्वारा वन्यजीवों को बचाने तथा विलुप्त होने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पैंगोलिन जीव के अंगों की तस्करी पिछले कई वर्षों से की जाती रही है. 2006 से 2015 तक पैंगोलिन की बड़े पैमाने पर तस्करी की गई और चाइना भेजा गया. जहां पर विशेष दवाई तैयार की जाती है. यही वजह है कि आज पैंगोलिन की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. उन्होंने बताया कि लोगों में इस जीव के प्रति कई अंधविश्वास हैं.

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संग्राम सिंह ने बताया कि नेवले मॉनिटर लिजर्ड या फिर पैंगोलिन को लेकर अभी तक कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है. तीनों प्रजातियों का रिसर्च करने पर पता चला है कि समूचे भारतवर्ष में इसकी गणना करने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. इस संबंध मे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से भी वार्ता हो चुकी है. लेकिन वहां पर इससे संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. फिलहाल इन प्रजातियों पर रिसर्च जारी है. उत्तराखंड में प्रजातियों के बारे में जिस तकनीक को विकसित किया जाएगा उन तकनीकों को पूरे देश में साझा किया जाएगा. ताकि इन प्रजातियों की मॉनिटर करने के अलावा गणना के तरीकों को भी धरातल पर लाया जा सके.

दरअसल, विश्व में सबसे ज्यादा स्तनधारी जीव के रूप में जाना जाने वाले पैंगोलिन की तस्करी सबसे ज्यादा होती है. पैंगोलिन के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां भी जुड़ी हुई है. इसके स्कल सियानी शल्क से निर्मित दवाइयां खाने से नपुंसकता खत्म हो जाती है. असल में यह सब भ्रांतियां हैं, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हैं. अंधविश्वास के चलते विगत वर्षों में उत्तराखंड में पैंगोलिन की तस्करी बढ़ी है. इसकी पूरे विश्व में कुल 8 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें से 2 प्रजातियां भारत में पाई जाती है. वहीं 2 में से केवल एक प्रजाति उत्तराखंड में पाई जाती है. वहीं जैव विविधता बोर्ड प्रयास करते हुए इनकी गणना पर फोकस कर रहा है, जिसको पूरे देश में साझा किया जाएगा.

Intro:वन्य प्राणी सप्ताह के समापन पर वन्य प्राणी संरक्षण सोसायटी द्वारा दुर्लभ प्रजाति के जीवों को बचाने के प्रति जागरूकता पर बल दिया गया इस अवसर पर स्तनधारी जीवो जैसे पैंगोलिन, नेवलों, मॉनिटर लिजर्ड जैसी प्रजातियों को बचाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई, इन जीवों के पोस्टरों का भी इस मौके पर विमोचन किया गया ।


Body:वही जैव विविधता बोर्ड उत्तराखंड के मेंबर सेकेट्री संग्राम सिंह ने बताया कि देश में सरकार द्वारा वन्यजीवों को बचाने तथा उनके विलुप्त होने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है उन्होंने बताया कि पैंगोलिन जीव के अंगों की तस्करी पिछले कई वर्षों से की जाती रही है 2006 से 2015 तक पैंगोलिन की बड़े पैमाने पर तस्करी की गई और चाइना भेजा गया, जहां पर विशेष दवाई तैयार की जाती है। यही वजह है कि आज पैंगोलिन प्रजाति का जीव विलुप्त के कगार पर है। उन्होंने बताया कि लोगों में इस जीव के प्रति कई अंधविश्वास हैं।

बाईट-संग्राम सिंह,मेंबर सेकेट्री, जैव विविधता बोर्ड

वही संग्राम सिंह ने बताया कि नेवले मॉनिटर लिजर्ड या फिर पैंगोलिन को लेकर अभी तक कोई सर्वेक्षण हुआ नहीं है। तीनों प्रजातियों का रिसर्च करने पर पता चला है कि समूचे भारतवर्ष में इसकी गणना करने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है।इस संबंध मे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से भी वार्ता हो चुकी है लेकिन वहां पर इससे संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है फिलहाल इन प्रजातियों का रिसर्च जारी है,और यह रिसर्च ऐसा होगा किन प्रजातियों का डाटा मिलना शुरू हो जाएगा। उत्तराखंड में प्रजातियों के बारे में जिस तकनीक को विकसित किया जाएगा उन तकनीकों को पूरे भारतवर्ष में साझा किया जाएगा ताकि इन प्रजातियों की मॉनिटर करने के अलावा गणना के तरीकों को भी धरातल पर लाया जा सके।

बाईट- संग्राम सिंह,मेंबर सेकेट्री, जैव विविधता बोर्ड




Conclusion:दरअसल विश्व में सबसे ज्यादा स्तनधारी जीव के रूप में जाने जाने वाले पैंगोलिन की तस्करी सबसे ज्यादा होती है पेंगुइन के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां भी जुड़ी हुई है इसके स्कल सियानी शल्क से निर्मित दवाइयां खाने से नपुंसकता खत्म हो जाती है। असल में यह सब भ्रांतियां हैं जिसका कोई साइंटिफिक बेसिस नहीं है, अंधविश्वास के चलते पैंगोलिन की तस्करी उत्तराखंड में भी जोरों पर है। इसकी पूरे विश्व में कुल 8 प्रजातियां पाई जाती है जिसमें से 2 प्रजातियां भारत में पाई जाती है 2 में से केवल एक प्रजाति उत्तराखंड में पाई जाती है, फिलहाल जैव विविधता बोर्ड प्रयास करते हुए इनकी गणना पर फोकस कर रहा है जिसको पूरे भारतवर्ष में साझा किया जाएगा।
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