देहरादून: वन्यजीव सप्ताह के समापन पर वन्यजीव संरक्षण सोसायटी द्वारा दुर्लभ प्रजाति के जीवों को बचाने के लिए जागरूकता पर बल दिया गया. इस अवसर पर स्तनधारी जीवों जैसे पैंगोलिन, नेवलों, मॉनिटर लिजर्ड जैसी प्रजातियों को बचाने पर चिंतन किया गया. साथ ही इस मौके पर जीवों के पोस्टरों का भी विमोचन किया गया.
गौर हो कि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के मेंबर सेकेट्री संग्राम सिंह ने बताया कि देश में सरकार द्वारा वन्यजीवों को बचाने तथा विलुप्त होने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पैंगोलिन जीव के अंगों की तस्करी पिछले कई वर्षों से की जाती रही है. 2006 से 2015 तक पैंगोलिन की बड़े पैमाने पर तस्करी की गई और चाइना भेजा गया. जहां पर विशेष दवाई तैयार की जाती है. यही वजह है कि आज पैंगोलिन की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. उन्होंने बताया कि लोगों में इस जीव के प्रति कई अंधविश्वास हैं.
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संग्राम सिंह ने बताया कि नेवले मॉनिटर लिजर्ड या फिर पैंगोलिन को लेकर अभी तक कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है. तीनों प्रजातियों का रिसर्च करने पर पता चला है कि समूचे भारतवर्ष में इसकी गणना करने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. इस संबंध मे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से भी वार्ता हो चुकी है. लेकिन वहां पर इससे संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. फिलहाल इन प्रजातियों पर रिसर्च जारी है. उत्तराखंड में प्रजातियों के बारे में जिस तकनीक को विकसित किया जाएगा उन तकनीकों को पूरे देश में साझा किया जाएगा. ताकि इन प्रजातियों की मॉनिटर करने के अलावा गणना के तरीकों को भी धरातल पर लाया जा सके.
दरअसल, विश्व में सबसे ज्यादा स्तनधारी जीव के रूप में जाना जाने वाले पैंगोलिन की तस्करी सबसे ज्यादा होती है. पैंगोलिन के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां भी जुड़ी हुई है. इसके स्कल सियानी शल्क से निर्मित दवाइयां खाने से नपुंसकता खत्म हो जाती है. असल में यह सब भ्रांतियां हैं, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हैं. अंधविश्वास के चलते विगत वर्षों में उत्तराखंड में पैंगोलिन की तस्करी बढ़ी है. इसकी पूरे विश्व में कुल 8 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें से 2 प्रजातियां भारत में पाई जाती है. वहीं 2 में से केवल एक प्रजाति उत्तराखंड में पाई जाती है. वहीं जैव विविधता बोर्ड प्रयास करते हुए इनकी गणना पर फोकस कर रहा है, जिसको पूरे देश में साझा किया जाएगा.