देहरादून: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की 29 में 18 सीटों पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. कुमाऊं की इन सभी सीटों पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीदें थी. लेकिन कुमाऊं मडल में भी भाजपा ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी. स्थिति ये रही कि उधम सिंह नगर जिले को छोड़कर कुमाऊं में पहाड़ की अधिकतर सीटें भाजपा ने आसानी से जीत ली. जबकि उत्तराखंड में कुमाऊं की बदौलत ही कांग्रेस पूर्ण बहुमत की सरकार लाने का दावा कर रही थी. अब जानिए कुमाऊं में भी कांग्रेस की करारी शिकस्त की वजह और हरदा का जादू न चलने के पीछे के कारण.
इस विधानसभा चुनाव 2022 में कुमाऊं मंडल के 6 जिलों में कांग्रेस का कुछ खास प्रदर्शन नहीं रहा. हालांकि 2017 के मुकाबले पार्टी ने यहां से दोगुनी सीटों पर जीत हासिल की. लेकिन पार्टी कुमाऊं की 29 विधानसभा सीटों में 20 से ज्यादा सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही थी. कुमाऊं में हरीश रावत खुद अपनी विधानसभा सीट को नहीं बचा पाए. यही नहीं कांग्रेस सरकार के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को भी हार का मुंह देखना पड़ा. साथ ही यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य भी अपनी सीट हार गए.
कांग्रेस का था कुमाऊं में फोकस: विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी 29 सीटों पर काफी ज्यादा उम्मीदें रखी हुई थी और इसीलिए पार्टी ने कुमाऊं पर पूरे फोकस के साथ काम भी किया. हालांकि भाजपा को भी कांग्रेस की रणनीति समझ में आने के बाद भाजपा का फोकस भी कुमाऊं मंडल ही रहा. भाजपा ने न केवल कुमाऊं से मुख्यमंत्री बनाया, बल्कि बड़े नेताओं के कार्यक्रमों को भी कुमाऊं मंडल में तेज किया. भाजपा की कुमाऊं मंडल में कमजोर कड़ी को भांपते हुए सक्रियता ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया. जिसके बाद पूरे प्रदेश की तरह कुमाऊं मंडल में भी मोदी लहर ने जबरदस्त काम किया और लोगों ने प्रत्याशी की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर वोट दिए.
महिला वोटरों का जादू: महिलाओं के वोट कुमाऊं मंडल में भाजपा के लिए वरदान साबित हुए. साइलेंट वोटर के रूप में महिलाओं ने कुमाऊं में भी भाजपा के प्रत्याशियों की जीत को सुनिश्चित किया. इसमें कोरोना काल के दौरान केंद्र की तरफ से मुक्त राशन योजना में ज्यादा काम किया गया था. साल 2017 में कुमाऊं मंडल की 29 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को महज 5 सीटें मिली थी. इस बार उसने सीटें तिगुनी से ज्यादा करने का प्लान बनाया था. लेकिन 2022 में कांग्रेस कुमाऊं मंडल में 11 सीटें जीतने में कामयाब रही.
जिलेवार देखें तो पिथौरागढ़ जिले की 4 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 2 सीटें जीतकर मुकाबला दिया. बागेश्वर जिले की 2 विधानसभाओं में से कोई भी सीट कांग्रेस नहीं जीत पाई और यह एकतरफा भाजपा ने जीत हासिल की. अल्मोड़ा जिले की छह विधानसभाओं में से महज एक पर कांग्रेस जीती बाकी पांच पर भाजपा ने जीत हासिल की. चंपावत जिले में 2 विधानसभा हैं. जिनमें 1 सीट जीतकर बराबरी का मुकाबला कांग्रेस ने दिया. नैनीताल की 6 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल एक सीट जीत पाई बाकी पांच पर भाजपा अपना दबदबा बनाने में कामयाब रही. जबकि उधम सिंह नगर की 2 विधानसभाओं में से 5 सीट कांग्रेस ने जीती और चार पर भाजपा का कब्जा करने में कामयाब रही.
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बता दें कि, कुमाऊं मंडल में कांग्रेस की बढ़त के पीछे हरीश रावत के चेहरे को बड़ी वजह माना जा रहा था. लेकिन हरीश रावत अपनी ही सीट नहीं बचा पाए. दरअसल प्रदेशभर की तरह कुमाऊं मंडल में भी कांग्रेस के कमजोर संगठन ने पार्टी को कमजोर किया. इसके अलावा धर्म और जातीय समीकरणों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी कांग्रेस की स्थिति को सुधारने नहीं दिया. लेकिन यदि सबसे बड़ी वजह को देखा जाए तो इस बार भी 2017 की तरह मोदी लहर और भाजपा के हर घर तक संगठन के जरिए पहुंचने की रणनीति ने कांग्रेस की हर उम्मीद को धराशाई कर दिया.