देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनाव हार चुके हैं. इस सीट पर कांग्रेस के भुवन कापड़ी ने जीत हासिल की है. ऐसे में सरकार चाहे किसी भी दल की बने, पर इतना तय है कि उत्तराखंड में अभी तक कोई भी सीटिंग सीएम चुनाव में उतरकर प्रदेश का सिरमौर नहीं बन पाया. इसे अपवाद कहें या नियति. मगर, उत्तराखंड की जनता ने विधानसभा चुनाव में किसी सीटिंग मुख्यमंत्री को नहीं जिताया. लिहाजा, मुख्यमंत्री पद को लेकर उत्तराखंड में जो भी सियासी प्रयोग हुए हैं वह निरर्थक ही साबित हुए हैं.
जी हां! चुनाव के आंकड़े तो यही स्थिति बयां करते नजर आ रहे हैं. राज्यगठन के बाद 21 साल के इस युवा उत्तराखंड की राजनीति में एक अध्याय ऐसा भी है जिसे उत्तराखंड के इतिहास में आज तक बदला नहीं जा सका. या यूं कहें कि उत्तराखंड का कोई भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं हुआ, जो सीटिंग मुख्यमंत्री होते हुए दोबारा अपनी पार्टी को चुनाव जिता पाया हो. सीएम धामी से पहले भी तीन मुख्यंत्री चुनाव में उतरे और उन्हें हार नसीब हुई. ऐसे में कहा जा सकता है कि अभी तक कोई भी दिग्गज सीएम रहते विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए इस अपवाद को तोड़ नहीं पाया.
सीएम कैंडिडेट की हार का सिलसिला जारी: उत्तराखंड में अभी तक कोई भी सीटिंग सीएम विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाया है. राज्यगठन के बाद पहली अंतरिम सरकार में 30 अक्टूबर 2021 से 1 मार्च 2002 तक 123 दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में उत्तराखंड का पहला विधानसभा चुनाव लड़ा गया. तत्कालीन सीएम कोश्यारी अपने गृह जनपद बागेश्वर की कपकोट विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. लेकिन बतौर कैप्टन वह बीजेपी को चुनाव जिताने में नाकाम साबित हुए और फिर कांग्रेस सरकार में उन्होंने बतौर नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई.
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बीसी खंडूड़ी के साथ भी बना रहा मिथक: वहीं, इन दिग्गजों में दूसरा नाम आता है बीसी खंडूड़ी का. उत्तराखंड की दूसरी विधानसभा के चौथे मुख्यमंत्री बने बीसी खंडूड़ी 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक तथा फिर 11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012 तक सीएम रहे. बतौर सीएम उन्होंने कोटद्वार विधानसभा से चुनाव लड़ा और उन्हें मुंह की खानी पड़ी. इस चुनाव के बाद बीजेपी उत्तराखंड की सत्ता से बाहर हो गई.
हरीश रावत दो सीटों से हारे थे: इसके बाद तीसरे दिग्गज कांग्रेस के लोकप्रिय नेता हरीश रावत का कार्यकाल भी काफी उथल पुथल भरा रहा. विजय बहुगुणा के करीब दो साल के कार्यकाल के बाद हरीश रावत 1 फरवरी 2014 से 18 मार्च 2017 तक सीएम रहे. हालांकि, इनके कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड की जनता ने राष्ट्रपति शासन भी देखा.
2017 के चुनाव में सीएम रहते हुए हरीश रावत ने दो विधानसभा सीटों हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा और किच्छा से चुनाव लड़ा और इन दोनों ही विधानसभा सीटों से हरीश रावत को करारी शिकस्त मिली. जिसके बाद उत्तराखंड से कांग्रेस की सरकार रुखसत हो गई. ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में बतौर सीएम रहते हुए पुष्कर धामी खटीमा विधानसभा से चुनावी रण में उतरे और उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा. लिहाजा, सीएम धामी भी मुख्यमंत्रियों के चुनाव में हारने के इस मिथक को तोड़ने में नाकाम रहे.