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...तो क्या अवैध है CPU? आरटीआई के तहत मिली चौंकाने वाली जानकारी - उत्तराखंड में सिटी पेट्रोलिंग यूनिट का गठन अवैध

आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता विकेश नेगी ने दावा किया है कि उन्होंने सूचना के अधिकार से जो जानकारी पुलिस मुख्यालय से मांगी थी, उसमें यह बताया गया है कि सिटी पेट्रोलिंग यूनिट के गठन को लेकर अब तक कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ है, जिसको लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की बात कही है.

Important disclosure under RTI
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Published : Nov 18, 2021, 12:26 PM IST

Updated : Nov 18, 2021, 8:08 PM IST

देहरादून: सिटी पेट्रोलिंग यूनिट (City Patrolling Unit) के गठन को लेकर आरटीआई से मांगी गई जानकारी से अहम खुलासा हुआ है. आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता विकेश नेगी ने दावा किया है कि उन्होंने सूचना के अधिकार से जो जानकारी पुलिस मुख्यालय से मांगी थी, उसमें यह बताया गया है कि सीपीयू (CPU) गठन को लेकर अब तक कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि पुलिस विभाग में सीपीयू अवैध रूप से पिछले 7 वर्षों से सड़कों पर चालान, जुर्माना वसूलने का काम कर रही है.

आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी के मुताबिक जब सीपीयू को लेकर कोई शासनादेश जारी ही नहीं हुआ, तो सीपीयू चालान, जुर्माना वसूली की श्रेणी में कैसे आ सकती है? अधिवक्ता विकेश नेगी ने इस मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने का भी दावा किया है.

सिटी पेट्रोल यूनिट के गठन पर सवाल.

आरटीआई में खुलासा: अधिवक्ता विकेश नेगी के अनुसार पुलिस महानिदेशक कार्यालय से कुछ सवालों के जवाब मांगे गए. जिसमें पहले सवाल का जवाब मिला कि सीपीयू का गठन 2013 में किया गया था. इसका गठन डीजीपी के कार्यालय द्वारा किया गया है. सीपीयू का मुख्य काम यातायात व्यवस्था को सुचारू रखना, स्ट्रीट क्राइम व चेन स्नेचिंग पर अंकुश लगाना और यातायात का उल्लंघन करने वाले वाहनों का चालान कर उनके खिलाफ कार्रवाई करना है. सीपीयूकर्मी जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आते हैं. सीपीयू जनपद पुलिस द्वारा चालान वसूल कर इसकी धनराशि राजकोष में जमा कराई जाती है.

पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले सीएम धामी, बैठक में 21 साल पुराने मसले हल होने की उम्मीद

भ्रम की स्थिति: आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी ने इस बात का भी खुलासा किया है कि पुलिस द्वारा काटे गए चालान को परिवहन विभाग के पास जमा कराया जाता है, जबकि पुलिस का कहना है कि यह राजकोष में जमा कराया जाता है. ऐसे में सूचना को लेकर भ्रम की स्थिति भी है. विकेश सिंह नेगी का कहना है कि पुलिस एक्ट में इस सीपीयू की वर्दी का कहीं को जिक्र नहीं है. इसका सीधा मतलब है कि यह पुलिस एक्ट के बाहर काम करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सीपीयू को मिलने वाली सुविधाओं पर खर्च किया जाने वाला बजट किस निधि से आ रहा है. इसकी भी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है.

सिटी पेट्रोल यूनिट की कार्यशैली पर देहरादून निवासी अधिवक्ता रजत दुआ ने भी सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि जिस मकसद से सीपीयू का गठन आज से 8 साल पहले किया गया था. उसके इर्द-गिर्द भी यह यूनिट काम नहीं कर रही है. अधिवक्ता दुआ के मुताबिक सीपीयू का गठन महिला और बाल अपराध रोकने के साथ ही स्ट्रीट क्राइम पर लगाम लगाने का दावा किया गया था. लेकिन आज तक इस ओर कोई पुलिसिंग नजर नहीं आती हैं. ऐसे में जनता सीपीयू की हरकतों से अक्सर परेशान है.

6 शहरों में तैनात है CPU की टीमें: उत्तराखंड ट्रैफिक निदेशालय डीआईजी मुख्तार मोहसिन से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य के 6 शहरों में सिटी पेट्रोल यूनिट (CPU) तैनात है. इसमें देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, काशीपुर रुद्रपुर और हल्द्वानी शामिल है. इन सभी 6 शहरों में तैनात सिटी पेट्रोल यूनिट के रूप 180 पुलिसकर्मी शामिल हैं. ट्रैफिक टीआई के मुताबिक अभी 92 पुलिसकर्मी 3 सप्ताह की ट्रेनिंग पीटीसी नरेंद्र नगर में ले रहे हैं. प्रशिक्षण समाप्त होने के उपरांत सभी 92 पुलिसकर्मी 6 शहरों में तैनात सीपीयू यूनिट में बराबर-बराबर भेज दिए जाएंगे. उन्होंने बताया कि सिटी पेट्रोल यूनिट में शामिल होने वाले पुलिसकर्मी आर्म्ड पुलिस, सिविल पुलिस, PAC और IRB इकाइयों से चुने जाते हैं.

पढ़ें- STF के हत्थे चढ़ा नरेंद्र वाल्मीकि गैंग का मुख्य शूटर पंकज, नवविवाहित जोड़े के मर्डर की ली थी सुपारी

क्या है CPU पुलिस: सीपीयू यानी सिटी पेट्रोलिंग पुलिस. बता दें, अप्रैल 2014 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक बीएस सिद्धू द्वारा पुलिस विभाग में सिटी पेट्रोल यूनिट सीपीयू का गठन किया गया था. जब इसका गठन किया गया था तो इसकी जिम्मेदारी शहर भर में ट्रैफिक को नियंत्रित करना था. सबसे पहले इसे राजधानी देहरादून में उतारा गया था. इसके बाद ट्रैफिक के हालात तो नहीं सुधरे लेकिन इनके कंधों पर और जिम्मेदारी दे दी गई, जैसे- अपराध नियंत्रण, महिलाओं से छेड़खानी को रोकना, चेन स्नैचिंग पर लगाम, बिना नंबर प्लेट वाहन या संदिग्ध वाहनों की चेकिंग, अवैध असलहों की चेकिंग और नाकेबंदी में चेकिंग. सीपीयू ने 'नो पार्किंग' में पार्क किये गए वाहनों के खिलाफ भी विशेष अभियान चलाना शुरू किया.

क्यों बेहद अलग लगती है ये पुलिस: दरअसल, इस पुलिस की ड्रेस काल रंग की है. इनके हाथों में कैमरा और विदेशी स्टाइल में छोटा सा डंडा रहता है. हर गतिविधि को रिकॉर्ड करना, एल्कोमीटर साथ में रखना, ई-चालान बुक के साथ-साथ अत्याधुनिक मोटर साइकिल इनके पास रहती है जिसमें जीपीएस लगा रहता है. ये पूरी वेशभूषा इनकी पहचान बन गई. देहरादून के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, रुड़की, उधम सिंह नगर, हल्द्वानी जैसे तराई के क्षेत्रों में इनकी फिलहाल तैनाती की गई है.

विवादों में क्यों है सीपीयू: कांग्रेस सरकार में बनी इस पुलिस का विवादों में नाता रहा है. हरीश रावत सरकार में काशीपुर, रुड़की, हरिद्वार में विवाद हुआ. इसके बाद कई जगहों से इन्हे हटाया गया. वहीं, अलग से सभी व्यवस्था होने के बाद भी स्ट्रीट क्राइम कम नहीं हुआ. इसको लेकर भी पुलिस के बड़े अधिकारी सीपीयू को समय समय पर फटकार लगाते रहे हैं. इतना ही नहीं, जनता से अच्छे व्यवहार करने की ट्रेनिंग भी पुलिस को मिलती रही है.

27 जुलाई, 2020 में रुद्रपुर के रम्पुरा क्षेत्र में चेकिंग के दौरान सीपीयू पुलिस कर्मी पर आरोप लगा कि अपना आपा खोकर उसने बाइक सवार दो युवकों से मारपीट की और मामूली कहासुनी के बाद पुलिसकर्मी ने बाइक सवार युवक के माथे पर उसी की बाइक की चाबी घोंप दी. हल्ला मचने पर भीड़ जुटी तो सीपीयू कर्मी मौके से भाग गए. आक्रोशित लोगों ने इसके बाद पुलिस पर पथराव भी कर दिया था. हालांकि, मामले को गंभीरता से लेते हुए एसएसपी ने तीन सीपीयू कर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था.

वहीं, 24 मई 2019 को रुद्रपुर में पार्षद पति ने सीपीयू पर उनके पिकप वाहन के ड्राइवर से मारपीट करने का आरोप लगाया था. हालांकि, तब सीपीयू दारोगा राजेश बिष्ट ने दावा किया था कि उनके पास मारपीट का वीडियो है, जिसे वह जांच में शामिल करवाएंगे. इससे पहले 29 मार्च 2019 को भी रुद्रपुर के डीडी चौक पर एक ट्रक के नो एंट्री में घुसने को लेकर ट्रक चालक का सीपीयू से विवाद हुआ था.

25 जून 2017 को रुड़की में टॉकीज के पास सीपीयू जवान और टूरिस्ट के बीच विवाद हो गया था. टूरिस्ट गाड़ी हाईवे पर खड़ी थी जिसको लेकर दोनों एक-दूसरे से भिड़ गए. कार चालक ने सीपीयू के जवान का गला पकड़ था.

देहरादून: सिटी पेट्रोलिंग यूनिट (City Patrolling Unit) के गठन को लेकर आरटीआई से मांगी गई जानकारी से अहम खुलासा हुआ है. आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता विकेश नेगी ने दावा किया है कि उन्होंने सूचना के अधिकार से जो जानकारी पुलिस मुख्यालय से मांगी थी, उसमें यह बताया गया है कि सीपीयू (CPU) गठन को लेकर अब तक कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि पुलिस विभाग में सीपीयू अवैध रूप से पिछले 7 वर्षों से सड़कों पर चालान, जुर्माना वसूलने का काम कर रही है.

आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी के मुताबिक जब सीपीयू को लेकर कोई शासनादेश जारी ही नहीं हुआ, तो सीपीयू चालान, जुर्माना वसूली की श्रेणी में कैसे आ सकती है? अधिवक्ता विकेश नेगी ने इस मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने का भी दावा किया है.

सिटी पेट्रोल यूनिट के गठन पर सवाल.

आरटीआई में खुलासा: अधिवक्ता विकेश नेगी के अनुसार पुलिस महानिदेशक कार्यालय से कुछ सवालों के जवाब मांगे गए. जिसमें पहले सवाल का जवाब मिला कि सीपीयू का गठन 2013 में किया गया था. इसका गठन डीजीपी के कार्यालय द्वारा किया गया है. सीपीयू का मुख्य काम यातायात व्यवस्था को सुचारू रखना, स्ट्रीट क्राइम व चेन स्नेचिंग पर अंकुश लगाना और यातायात का उल्लंघन करने वाले वाहनों का चालान कर उनके खिलाफ कार्रवाई करना है. सीपीयूकर्मी जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आते हैं. सीपीयू जनपद पुलिस द्वारा चालान वसूल कर इसकी धनराशि राजकोष में जमा कराई जाती है.

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भ्रम की स्थिति: आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी ने इस बात का भी खुलासा किया है कि पुलिस द्वारा काटे गए चालान को परिवहन विभाग के पास जमा कराया जाता है, जबकि पुलिस का कहना है कि यह राजकोष में जमा कराया जाता है. ऐसे में सूचना को लेकर भ्रम की स्थिति भी है. विकेश सिंह नेगी का कहना है कि पुलिस एक्ट में इस सीपीयू की वर्दी का कहीं को जिक्र नहीं है. इसका सीधा मतलब है कि यह पुलिस एक्ट के बाहर काम करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सीपीयू को मिलने वाली सुविधाओं पर खर्च किया जाने वाला बजट किस निधि से आ रहा है. इसकी भी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है.

सिटी पेट्रोल यूनिट की कार्यशैली पर देहरादून निवासी अधिवक्ता रजत दुआ ने भी सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि जिस मकसद से सीपीयू का गठन आज से 8 साल पहले किया गया था. उसके इर्द-गिर्द भी यह यूनिट काम नहीं कर रही है. अधिवक्ता दुआ के मुताबिक सीपीयू का गठन महिला और बाल अपराध रोकने के साथ ही स्ट्रीट क्राइम पर लगाम लगाने का दावा किया गया था. लेकिन आज तक इस ओर कोई पुलिसिंग नजर नहीं आती हैं. ऐसे में जनता सीपीयू की हरकतों से अक्सर परेशान है.

6 शहरों में तैनात है CPU की टीमें: उत्तराखंड ट्रैफिक निदेशालय डीआईजी मुख्तार मोहसिन से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य के 6 शहरों में सिटी पेट्रोल यूनिट (CPU) तैनात है. इसमें देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, काशीपुर रुद्रपुर और हल्द्वानी शामिल है. इन सभी 6 शहरों में तैनात सिटी पेट्रोल यूनिट के रूप 180 पुलिसकर्मी शामिल हैं. ट्रैफिक टीआई के मुताबिक अभी 92 पुलिसकर्मी 3 सप्ताह की ट्रेनिंग पीटीसी नरेंद्र नगर में ले रहे हैं. प्रशिक्षण समाप्त होने के उपरांत सभी 92 पुलिसकर्मी 6 शहरों में तैनात सीपीयू यूनिट में बराबर-बराबर भेज दिए जाएंगे. उन्होंने बताया कि सिटी पेट्रोल यूनिट में शामिल होने वाले पुलिसकर्मी आर्म्ड पुलिस, सिविल पुलिस, PAC और IRB इकाइयों से चुने जाते हैं.

पढ़ें- STF के हत्थे चढ़ा नरेंद्र वाल्मीकि गैंग का मुख्य शूटर पंकज, नवविवाहित जोड़े के मर्डर की ली थी सुपारी

क्या है CPU पुलिस: सीपीयू यानी सिटी पेट्रोलिंग पुलिस. बता दें, अप्रैल 2014 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक बीएस सिद्धू द्वारा पुलिस विभाग में सिटी पेट्रोल यूनिट सीपीयू का गठन किया गया था. जब इसका गठन किया गया था तो इसकी जिम्मेदारी शहर भर में ट्रैफिक को नियंत्रित करना था. सबसे पहले इसे राजधानी देहरादून में उतारा गया था. इसके बाद ट्रैफिक के हालात तो नहीं सुधरे लेकिन इनके कंधों पर और जिम्मेदारी दे दी गई, जैसे- अपराध नियंत्रण, महिलाओं से छेड़खानी को रोकना, चेन स्नैचिंग पर लगाम, बिना नंबर प्लेट वाहन या संदिग्ध वाहनों की चेकिंग, अवैध असलहों की चेकिंग और नाकेबंदी में चेकिंग. सीपीयू ने 'नो पार्किंग' में पार्क किये गए वाहनों के खिलाफ भी विशेष अभियान चलाना शुरू किया.

क्यों बेहद अलग लगती है ये पुलिस: दरअसल, इस पुलिस की ड्रेस काल रंग की है. इनके हाथों में कैमरा और विदेशी स्टाइल में छोटा सा डंडा रहता है. हर गतिविधि को रिकॉर्ड करना, एल्कोमीटर साथ में रखना, ई-चालान बुक के साथ-साथ अत्याधुनिक मोटर साइकिल इनके पास रहती है जिसमें जीपीएस लगा रहता है. ये पूरी वेशभूषा इनकी पहचान बन गई. देहरादून के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, रुड़की, उधम सिंह नगर, हल्द्वानी जैसे तराई के क्षेत्रों में इनकी फिलहाल तैनाती की गई है.

विवादों में क्यों है सीपीयू: कांग्रेस सरकार में बनी इस पुलिस का विवादों में नाता रहा है. हरीश रावत सरकार में काशीपुर, रुड़की, हरिद्वार में विवाद हुआ. इसके बाद कई जगहों से इन्हे हटाया गया. वहीं, अलग से सभी व्यवस्था होने के बाद भी स्ट्रीट क्राइम कम नहीं हुआ. इसको लेकर भी पुलिस के बड़े अधिकारी सीपीयू को समय समय पर फटकार लगाते रहे हैं. इतना ही नहीं, जनता से अच्छे व्यवहार करने की ट्रेनिंग भी पुलिस को मिलती रही है.

27 जुलाई, 2020 में रुद्रपुर के रम्पुरा क्षेत्र में चेकिंग के दौरान सीपीयू पुलिस कर्मी पर आरोप लगा कि अपना आपा खोकर उसने बाइक सवार दो युवकों से मारपीट की और मामूली कहासुनी के बाद पुलिसकर्मी ने बाइक सवार युवक के माथे पर उसी की बाइक की चाबी घोंप दी. हल्ला मचने पर भीड़ जुटी तो सीपीयू कर्मी मौके से भाग गए. आक्रोशित लोगों ने इसके बाद पुलिस पर पथराव भी कर दिया था. हालांकि, मामले को गंभीरता से लेते हुए एसएसपी ने तीन सीपीयू कर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था.

वहीं, 24 मई 2019 को रुद्रपुर में पार्षद पति ने सीपीयू पर उनके पिकप वाहन के ड्राइवर से मारपीट करने का आरोप लगाया था. हालांकि, तब सीपीयू दारोगा राजेश बिष्ट ने दावा किया था कि उनके पास मारपीट का वीडियो है, जिसे वह जांच में शामिल करवाएंगे. इससे पहले 29 मार्च 2019 को भी रुद्रपुर के डीडी चौक पर एक ट्रक के नो एंट्री में घुसने को लेकर ट्रक चालक का सीपीयू से विवाद हुआ था.

25 जून 2017 को रुड़की में टॉकीज के पास सीपीयू जवान और टूरिस्ट के बीच विवाद हो गया था. टूरिस्ट गाड़ी हाईवे पर खड़ी थी जिसको लेकर दोनों एक-दूसरे से भिड़ गए. कार चालक ने सीपीयू के जवान का गला पकड़ था.

Last Updated : Nov 18, 2021, 8:08 PM IST
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