देहरादून: देश और दुनिया में मौसम का बदलता पैटर्न पर्यावरणविदों के लिए बड़ी चिंता साबित हो रहा है. हिमालय क्षेत्र भी ऐसे ही बदलते मौसमीय संकेतों का आभास करा रहा है. दरअसल, उत्तराखंड समेत बाकी हिमालयी राज्यों के लिए ये बदलाव किसी आपदा के खतरे के सिग्नल से कम नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि बारिश का अनियंत्रित डिस्ट्रीब्यूशन हिमालयी क्षेत्रों में लैंडस्लाइड से लेकर बाढ़ के खतरों को बढ़ा देता है. आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि मौसम का चक्र बदलने से बरसात की मात्रा और पैटर्न दोनों प्रभावित हुए हैं. जिससे किसानों से लेकर आम लोगों तक को भारी नुकसान हुआ है.
हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का संकेत मौसम में हो रहे बदलाव से मिलने लगा है. अब बेमौसमी बारिश, गर्मी, सर्दी के महीनों में बदलाव के चलते जन-जीवन भी प्रभावित हो रहा है. सबसे ज्यादा चिंता मानसून सीजन को लेकर हो रही है. बरसात के कम होते दिन हिमालयी क्षेत्र में तबाही के खतरे को बढ़ा रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मैदानी क्षेत्रों में तो इससे महज कृषि सेक्टर प्रभावित होगा. लेकिन पहाड़ों पर इससे भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं की आशंकाएं बढ़ जाएंगी. बारिश के अनियंत्रित डिस्ट्रीब्यूशन से कई तरह के खतरे नजर आ रहे हैं. इसमें जहां एक तरफ कई क्षेत्र बरसात से वंचित हो रहे हैं तो उसमें जरूरत से ज्यादा बारिश भी बड़ी परेशानी साबित हो रही है.
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उधर बारिश के पैटर्न में दूसरा बदलाव कम दिनों में ही ज्यादा बारिश को लेकर दिख रहा है. यानी पूरे सीजन की बारिश कुछ ही दिनों में रिकॉर्ड की जा रही है. जिससे पहाड़ों पर आपदा के हालात बन रहे हैं. इसके लिए पहले बारिश के अनियंत्रित डिस्ट्रीब्यूशन के आंकड़ों पर नजर डालिए.
अनियंत्रित बारिश डिस्ट्रीब्यूशन के आंकड़े
- साल 2022 में मानसून सीजन के दौरान 4 जिलों में बेहद कम बारिश रिकॉर्ड की गई.
- जिलों में बरसात का आंकड़ा जरूरत से ज्यादा रहा.
- हरिद्वार, पौड़ी, नैनीताल और चंपावत में 30 से 45 प्रतिशत तक कम बारिश रिकॉर्ड की गई.
- चमोली और बागेश्वर में 60 से 180% तक ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई.
- मानसून सीजन के दौरान मानसून की वापसी भी देरी से रिकॉर्ड की जा रही है.
- पिछले कुछ सालों में मानसून का पीरियड तो बढ़ा है लेकिन नंबर ऑफ रेनी डेज कम हुए हैं.
रिकॉर्ड बताते हैं पिछले कुछ समय में मानसून को छोड़ दिया जाए तो बारिश की मात्रा कम हो रही है. यह हाल केवल उत्तराखंड का नहीं बल्कि बाकी हिमालयी राज्यों के भी हैं. हिमालयी बेल्ट जिसमें जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड से लेकर नेपाल और नॉर्थईस्ट के कुछ राज्य भी बारिश के अनियंत्रित डिस्ट्रीब्यूशन से प्रभावित हुए हैं. जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर डीके शाही बताते हैं कि हिमालयी राज्यों में मौसम को लेकर जो पैटर्न दिखाई दे रहा है, वह काफी खतरनाक है. कम दिनों में ज्यादा बारिश की मात्रा मिलने से पहाड़ों पर भूस्खलन जैसे खतरों का अंदेशा बढ़ गया है.
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मानसून को छोड़ दिया जाए तो सर्दी के मौसम में होने वाली बरसात भी बेहद अहम होती है. खास तौर पर खेती के लिए इसका एक अपना महत्व है, लेकिन पिछले कुछ सालों में सर्दी के मौसम के दौरान होने वाली बारिश की मात्रा बेहद कम हो गई. मौजूदा सीजन को देखें तो इस बार कम बारिश रिकॉर्ड की गई है. आने वाले दिनों में भी इसमें और कमी आने की संभावना है. मौजूदा विंटर सीजन में 1 जनवरी से लेकर आज तक 48 फ़ीसदी कम बारिश हुई है. मानसून सीजन के बाद अक्टूबर महीने से लेकर अब तक बारिश की मात्रा में बेहद कम रिकॉर्ड की गई है. यानी सर्दी के मौसम में ही नहीं बल्कि पोस्ट मानसून भी बारिश के लिहाज से कुछ खास नहीं रहा. मौजूदा विंटर सीजन में उत्तराखंड के पिथौरागढ़, नैनीताल, हरिद्वार, पौड़ी बागेश्वर और अल्मोड़ा जिले में 60 फ़ीसदी से भी ज्यादा बारिश की कमी देखी गई.
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मानसून की मौजूदा स्थिति उत्तराखंड के साथ बाकी राज्यों में भी कुछ खास अच्छी नहीं रही है. उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह कहते हैं इस बार पोस्ट मानसून से लेकर अब तक बारिश नॉर्मल से भी कम रही है. इस दौरान रेन और स्नोफॉल के पीरियड में बहुत ज्यादा अंतर देखने को मिल रहा है. हालांकि, 1 जून से 30 सितंबर तक रहने वाले मानसून सीजन के समय में बढ़ोत्तरी हुई है. अब मानसून की वापसी 1 सितंबर की जगह 17 सितंबर से रिकॉर्ड की गई है. इसके बावजूद मानसून सीजन में बारिश के दिन कम हुए हैं. हालांकि, बारिश की मात्रा सामान्य के आसपास ही रही है. उधर मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक कह रहे हैं कि मौजूदा सर्दी के मौसम में जिस तरह बारिश कम रिकॉर्ड की गई है उससे आने वाले दिनों में तापमान बढ़ने का भी अंदेशा है. यही नहीं इस पूरी पर्यावरणीय स्थिति से फसल और बागवानी पर भी सीधा असर पड़ने की उम्मीद है.