देहरादून: कोरोना के कारण इस बार के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में काफी कुछ अलग देखने को मिलेगा. राजनीतिक पार्टियों को पूरा फोक्स वर्चुअल रैलियों पर है. बीजेपी इसमें सबसे आगे दिखाई दे रही है. बीजेपी उत्तराखंड की हर विधानसभा क्षेत्र में एक आईटी एक्सपर्ट की नियुक्त करेगी. इसके साथ ही बीजेपी वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर कम से कम 500 लोगों से जुड़ने और इंटरेक्ट करने की भी तैयारी कर रही है. निर्वाचन क्षेत्र के सभी लोगों को मोबाइल पर लिंक भेजा जाएगा. जिससे ये सभी एक साथ जुड़ सकेंगे.
दरअसल, कोरोना के नए स्वरूप ओमीक्रॉन के खतरे के बीच चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक रैली और जनसभा पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही आयोग ने राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे कोरोना के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए जनसंपर्क करें. इसमें भी सिर्फ पांच लोग शामिल हो सकते हैं. आयोग ने अधिक से अधिक वर्चुअल प्रचार के लिए कहा है. ऐसे में सियासी दलों की जीत का आधार वर्चुअल रैलियों ही बनेगी, जिसके लिए सभी दलों ने तैयारियों शुरू कर दी है.
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सभी पार्टियां शहर से गांव तक सोशल मीडिया के जरिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिशों में जुट गई हैं. भाजपा, कांग्रेस और आप के वॉर रूम में भी वर्चुअल रैलियों की योजना बन रही हैं. सोशल मीडिया के जरिए मतदाताओं के दिलो-दिमाग पर छाप छोड़ने की रणनीति बनाई जा रही है. इसके लिए बीजेपी ने हर विधानसभा में एक आईटी एक्सपर्ट की नियुक्ति करने जा रही है.
उत्तराखंड बीजेपी के महासचिव कुलदीप कुमार ने कहा कि पार्टी बूथ और राज्य स्तर पर वर्चुअल बैठक और रैलियां करने के लिए पूरी तरह से तैयार है. पार्टी ने इसको लेकर पूरी रणनीति तैयार कर ली है. देहरादून में बीजेपी के एक स्टूडियो भी खोल दिया है, ये स्टूडियों के एक दो दिन में तैयार हो जाएगा.
इसके अलावा भाजपा ने राजधानी देहरादून में एक वॉर रूम आईटी सेल बनाने का भी प्रस्ताव रखा है. जिससे पार्टी एक बार में 15 वरिष्ठ नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक कर सकती है. इसके जरिए पार्टी एक दिन में 10 से अधिक विधानसभा सीटों को कवर करने में सक्षम होगी. उन्होंने कहा राष्ट्रीय भाजपा नेताओं की रैली देहरादून कार्यालय से दिल्ली कार्यालय से जोड़कर संपन्न कराई जा सकेगी. जिसके बाद पार्टी के नेता विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों को संबोधित कर सकेंगे.
राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनौती: सभी राजनीतिक दल उत्तराखंड में वर्चुअल रैलियों की तैयारियों में तो जुटे हैं, लेकिन इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती उन इलाकों में है, जहां संचार सुविधा न के बराबर है. उत्तराखंड में आज भी कई गांव ऐसे है, जहां पर सिग्नल काफी कमजोर है. और कुछ गांवों के ऐसे भी जहां पर नेटवर्क ही नहीं आता है. यहां तो स्कूल और कॉलेज छात्रों को ऑनलाइन क्लॉस भी नहीं हो पाती है. ऐसे में दावेदारों, प्रत्याशियों आदि के लिए यहां पर मतदाताओं को अपने पक्ष में करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा.