देहरादून: उत्तराखंड में UKSSSC पेपर लीक मामले (UKSSSC paper leak) में सियासत थमी नहीं थी कि अब विधानसभा में हुई नियुक्तियों (uttarakhand assembly recruitment case) का मुद्दा छाया हुआ है. जिसको लेकर प्रदेश में सियासत गर्म है. वहीं उत्तराखंड में भाजपा के भीतर के कलह को विधानसभा भर्ती प्रकरण ने सरेराह कर दिया. मामले में सरकार के मुखिया का अपना स्टैंड दिखा तो पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह (Former CM Trivendra Singh) दूसरे रास्ते पर चलते दिखे, यही नहीं मामले पर गेंद एक दूसरे के पाले में फेंकने की भी कोशिशें की गई. कुल मिलाकर इस प्रकरण ने भाजपा में कई राजनीतिक घटनाक्रमों का आभास करवाया और पार्टी के भीतर के असंतोष को भी जाहिर कर दिया.
सरकार के पाले में फेंकी गेंद: उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी विधानसभा भर्ती प्रकरण पर पिछले दिनों असहज सी दिखाई दी, सरकार का बचाव करने से लेकर जनता के बीच जा रहे गलत संदेशों को रोकने की कोशिश तो की गई, लेकिन इस बीच आपसी समन्वय की कमी ने मामले को आगे बढ़ाया. पार्टी के भीतर खूब राजनीतिक पैतरे भी चलते हुए महसूस किए गए. कभी प्रेमचंद अग्रवाल अकेले पड़ते नजर आये तो कभी त्रिवेंद्र सिंह इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश करते दिखे.
यही नहीं मामले में सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) गेंद विधानसभा अध्यक्ष के पाले में फेंकते दिखे तो विधानसभा अध्यक्ष ने भी अंतिम निर्णय पर गेंद सरकार के पक्ष में फेंक दी. कुल मिलाकर ऐसी कई राजनीतिक उठापटक इस प्रकरण को लेकर पिछले 1 महीने में दिखाई दी जो भाजपा के भीतर कम ही दिखाई देती है.
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भर्ती को लेकर सियासत: तभी तो कांग्रेस को भी राजनीतिक रूप से भाजपा के भीतर होते अंतर्द्वंद का आभास हुआ और इस पर उन्होंने तीखे प्रहार भी किए.राज्य में ऐसा पहली बार हुआ जब न केवल भाजपा सरकार कटघरे में खड़ी की गई बल्कि भाजपा संगठन से लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) भी निशाने पर रहा. पार्टी के भीतर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) में इस कदर अफरा-तफरी दिखाई दी कि यहां बड़े स्तर पर भी चिंतन किया गया.
अंदरूनी कलह का आलम यह था कि बेहद गोपनीय रूप से काम करने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भीतर हो रही घटनाओं की जानकारी भी मीडिया तक पहुंचने लगी. उधर प्रकरण में सरकार के अधिकतर मंत्रियों ने चुप्पी साधे रखी और मामले पर प्रेमचंद अग्रवाल और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अकेले छोड़ दिया. त्रिवेंद्र सिंह रावत खुलकर प्रकरण पर बोल रहे थे तो पूर्व सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की चुप्पी राजनीति की दूसरी कहानी को बयां कर रही थी.
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भाजपा संगठन भी असहज: भाजपा में संगठन महामंत्री (BJP Organization General Secretary) अजय कुमार तक इस बार अपने करीबियों के कारण विरोधियों के निशाने पर आ गए. यानी संगठन में बड़े नेताओं से लेकर सरकार के बड़े चेहरों तक ने अपना एक अलग स्टैंड लिया. उधर हाल ही में राजभवन में राज्यपाल से मुलाकातों का राजनीतिक दौर चर्चाओं में है.
भाजपा के प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम से लेकर मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष तक का यहां पहुंचना राजनीति की गोपनीय कहानी का आभास करवा रहा है. हालांकि इस मामले पर भाजपा के मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान कहते हैं कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक-ठाक है और किसी तरह की कोई भी गुटबाजी नहीं है, पार्टी में जो निर्णय ले जाते हैं वह पार्टी हाईकमान स्तर पर होते हैं और उसी के अनुरूप पार्टी के सभी नेता कार्य करते हैं.