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भारत की बॉक्सर फैक्ट्री 'बीबीसी', जहां से मुक्केबाज नहीं 'मेडलबाज' निकलते हैं

भिवानी बॉक्सिंग क्लब, 2008 में उस वक्त सुर्खियों में आया. जब एक साथ इस अकादमी के 5 मुक्केबाजों ने ओलंपिक गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व किया. तब मुक्केबाज विजेंद्र सिंह ने भारत के लिए पहली बार कांस्य पदक जीता था.

बॉक्सर फैक्ट्री
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Published : Nov 19, 2019, 8:46 AM IST

भिवानी: भिवानी को भारत का ‘मिनी क्यूबा’ यूं ही नहीं कहा जाता है. हर साल भिवानी के कई बॉक्सर अपने पावरफुल पंच के बूते भारत को मेडल दिलाते हैं. वैसे तो भिवानी में कई बॉक्सिंग क्लब हैं. जहां बॉक्सिंग सिखाई जाती है, लेकिन एक बॉक्सिंग क्लब ऐसा भी जिसने देश को 1 नहीं 2 नहीं बल्कि कई जाने माने बॉक्सर दिए हैं.

अकादमी के 5 मुक्केबाजों ने ओलंपिक गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व किया है.

क्लब ने देश को दिए कई नामचीन मुक्केबाज
ये बॉक्सिंग कल्ब कोई और नहीं बल्कि भिवानी बॉक्सिंग क्लब है. जिसे लोग बीबीसी के नाम से भी जानते हैं. भिवानी बॉक्सिंग कल्ब को मुक्केबाजों की फैक्ट्री भी कहा जाता है. विजेंद्र सिंह, दिलबाग सिंह, दिनेश कुमार, सुनील सिवाच या फिर साक्षी मलिक आप गिनते-गिनते थक जाएंगे, लेकिन बीबीसी की खदान से निकले हीरे जैसे बॉक्सरों की लिस्ट खत्म नहीं होगी.

एक साथ 5 मुक्केबाजों ने खेला था ओलंपिक
बीबीसी की शुरूआत 17 फरवरी, 2003 को बॉक्सिंग कोच राजेंद्र सिंह की याद में द्रोणाचार्य अवॉर्डी जगदीश कोच ने की थी. इन 16 सालों में बीबीसी ने देश को कई बड़े बॉक्सर दिए हैं. बीबीसी 2008 में उस वक्त सुर्खियों में आया. जब एक साथ इस अकादमी के 5 मुक्केबाजों ने ओलंपिक गेम्स में देश प्रतिनिधित्व किया, तब विजेंद्र सिंह ने भारत के लिए पहली बार कांस्य पदक जीता था.

ये भी पढ़िए: भिवानी: बॉक्सर राजेश लुक्का की कहानी, चाय की दुकान से चाइना तक का सफर

300 मुक्केबाज रोज करते हैं प्रैक्टिस

तब से लेकर आजतक बीबीसी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज भी हर रोज यहां 300 बॉक्सर प्रैक्टिस करते हैं. जिसमें 50 के लगभग महिला मुक्केबाज ही. सभी मुक्केबाज मेहनत करते हैं और सपना देखते हैं देश के लिए गोल्ड जीतने का.

ये भी पढ़िए: भारत का 'मिनी क्यूबा' भिवानी, जहां हर घर में पैदा होता है बॉक्सर

भिवानी: भिवानी को भारत का ‘मिनी क्यूबा’ यूं ही नहीं कहा जाता है. हर साल भिवानी के कई बॉक्सर अपने पावरफुल पंच के बूते भारत को मेडल दिलाते हैं. वैसे तो भिवानी में कई बॉक्सिंग क्लब हैं. जहां बॉक्सिंग सिखाई जाती है, लेकिन एक बॉक्सिंग क्लब ऐसा भी जिसने देश को 1 नहीं 2 नहीं बल्कि कई जाने माने बॉक्सर दिए हैं.

अकादमी के 5 मुक्केबाजों ने ओलंपिक गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व किया है.

क्लब ने देश को दिए कई नामचीन मुक्केबाज
ये बॉक्सिंग कल्ब कोई और नहीं बल्कि भिवानी बॉक्सिंग क्लब है. जिसे लोग बीबीसी के नाम से भी जानते हैं. भिवानी बॉक्सिंग कल्ब को मुक्केबाजों की फैक्ट्री भी कहा जाता है. विजेंद्र सिंह, दिलबाग सिंह, दिनेश कुमार, सुनील सिवाच या फिर साक्षी मलिक आप गिनते-गिनते थक जाएंगे, लेकिन बीबीसी की खदान से निकले हीरे जैसे बॉक्सरों की लिस्ट खत्म नहीं होगी.

एक साथ 5 मुक्केबाजों ने खेला था ओलंपिक
बीबीसी की शुरूआत 17 फरवरी, 2003 को बॉक्सिंग कोच राजेंद्र सिंह की याद में द्रोणाचार्य अवॉर्डी जगदीश कोच ने की थी. इन 16 सालों में बीबीसी ने देश को कई बड़े बॉक्सर दिए हैं. बीबीसी 2008 में उस वक्त सुर्खियों में आया. जब एक साथ इस अकादमी के 5 मुक्केबाजों ने ओलंपिक गेम्स में देश प्रतिनिधित्व किया, तब विजेंद्र सिंह ने भारत के लिए पहली बार कांस्य पदक जीता था.

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300 मुक्केबाज रोज करते हैं प्रैक्टिस

तब से लेकर आजतक बीबीसी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज भी हर रोज यहां 300 बॉक्सर प्रैक्टिस करते हैं. जिसमें 50 के लगभग महिला मुक्केबाज ही. सभी मुक्केबाज मेहनत करते हैं और सपना देखते हैं देश के लिए गोल्ड जीतने का.

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Intro:रिपोर्ट इन्द्रवेश भिवानी
दिनांक 18 नवंबर।
मुक्केबाजों की फैक्ट्री कहलाता है भिवानी का बीबीसी
बिजेंद्र के ओलंपिक मैडल जीतने के बाद सुर्खियों में आई थी बीबीसी
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजों की अभ्यास स्थली है बीबीसी
मिनी क्यूबा के नाम से विख्यात भिवानी शहर में स्थित भिवानी बॉक्सिंग क्लब बॉक्सरों की फैक्ट्री कहलाता हंै। जहां से हर साल राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सर निकलते हैं। इस बॉक्सिंग फैक्ट्री का सफलता का सिद्धांत अनुशासन व नियमित अभ्यास हैं। 17 फरवरी 2003 को बॉक्सिंग कोच राजेंद्र सिंह की याद में द्रोणाचार्य अवॉर्डी जगदीश कोच ने इस बॉक्सिंग अकेडमी की शुरूआत की थी। जिसके अध्यक्ष कमल सिंह प्रधान है। लेकिन यह बॉक्सिंग अकादमी 2008 में एकाएक उस समय सुर्खियों में आई, जब अकेले इस अकादमी के 5 मुक्केबाज ओलपिक प्रतिस्पर्धा में भाग ले रहे थे। जिनमें बिजेंद्र बॉक्सर ने ओलंपिक खेलों में बॉक्सिंग में पहला कांस्य पदक जीता।
Body: भिवानी बॉक्सिंग क्लब से निकले मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह, दिनेश कुमार, अखिल कुमार, कविता चहल, दिलबाग सिंह, विकास कृष्णनन ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में मैडल दिलवाएं। ये सभी मुक्केबाज भिवानी बॉक्सिंग क्लब की मुक्केबाजी फैक्ट्री की ही देन हैं। आज इस अकेडमी में 250 से 300 के लगभग मुक्केबाज प्रतिदिन अभ्यास करते हैं। जिनमें 50 के लगभग महिला मुक्केबाज भी है। यहंा के मुक्केबाजों का पंच बिजली की रफ्तार से प्रतिद्वंदी मुक्केबाज पर पड़ता है, यही इस फैक्ट्री की खासियत हैं। वर्तमान में यहां के कोच सतीश सांगवान बताते है कि मुक्केबाजों की सफलता के पीछे सबसे मुख्य कारण अनुशासन व नियमित मेहनत है, जिसके चलते भिवानी बॉक्सिंग क्लब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुक्केबाज देश को दे पाने में सफल रहा हैं।
Conclusion: छोटी काशी के नाम से विख्यात भिवानी में यू तो एक दर्जन से अधिक मुक्केबाजी अकादमी है, परन्तु भिवानी बॉक्सिंग क्लब इनमें सबसे पुरानी मुक्केबाजी अकादमी है। जहां के मुक्केबाजों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। 2008 में हुए ओलंपिक मुकाबलों के परिणामों ने हर न्यूज चैनल की ओबी वैन को इस अकादमी के बाहर खड़ा कर दिया, जब इस अकादमी में अभ्यास करने वाले मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह ने ओलंपिक में ब्रांज मैडल जीता। अकादमी की इस उपलब्धि से प्रभावित होकर न केवल एक दर्जन के लगभग मुक्केबाजी अकादमी भिवानी में बनी, बल्कि छोटी उम्र के मुक्केबाजों ने भी मुक्केबाजी में अपना कैरियर बनना शुरू कर दिया है। जिसके चलते भिवानी आज मिनी क्यूबा कहलाता है। यह सब इसी अकादमी की देन है। यहां अभ्यास करने वाले नेशनल मुक्केबाज पुनीत व सूर्यकांत का कहना है कि उन्हे इस अकादमी में प्रतिस्पर्धित मुक्केबाजों के अलावा अनुशासन व कठिन परिश्रम करने का अवसर मिलता हैं। मुक्केबाजी के इस मंदिर में आकर वे सब कुछ भूलकर अपने अभ्यास में जुट जाते हैं। जिसका परिणाम आने वाले मुकाबलों में नजर आएंगा।
बाईट : सतीश कोच, पुनीत व सूर्यकांत नेशनल मुक्केबाज
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