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देवभूमि में अद्भुत और निराला है ये देव स्थल, भीम ने बनाया था पुल

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Published : Sep 1, 2019, 12:11 PM IST

Updated : Sep 1, 2019, 3:31 PM IST

बदरीनाथ धाम से 4 किलोमीटर दूर माणा गांव स्थित भीम पुल की. जिस शिला को बाहुबली भीम ने सरस्वती नदी को पार करने के लिए रखा था. जिसे स्थानीय लोग पुल कहते हैं. पौराणिक मान्यताओं की मानें तो इस पुल का निर्माण खुद भीम ने किया था.

माणा गांव स्थित भीम पुल.

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड वो धरा है जहां देवों का वास माना जाता है, जो अन्य राज्यों से इसे अलग बनाती है. जो अपने आप में अद्भुत अविश्वसनीय और अकल्पनीय पौराणिक कथाओं को समेटे हुए हैं. जिसे जानकर हर कोई अचंभित और सोचने पर मजबूर हो जाता है. आज हम आपको ऐसे ही अकल्पनीय जगह से रूबरू कराने जा रहा हैं. जिसका पौराणिक इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. जो हजारों साल पुरानी अतीत की कहानी को अपने आपमें समेटे हुए हैं. जिसके बारे में आप जरूर जानना चाहेंगे.

देवभूमि में अद्भुत और निराला है ये देव स्थल.

जी हां हम बात कर रहे हैं बदरीनाथ धाम से 4 किलोमीटर दूर माणा गांव स्थित भीम पुल की. जिस शिला को बाहुबली भीम ने सरस्वती नदी को पार करने के लिए रखा था. जिसे स्थानीय लोग पुल कहते हैं. पौराणिक मान्यताओं की मानें तो इस पुल का निर्माण खुद भीम ने किया था. कहा जाता है कि महाभारत काल के बाद पांडव स्वर्ग की तलाश में निकले थे और पांडव माणा गांव से होते हुए ही स्वर्ग लोक को गए थे.

पढ़ें-दरोगा भर्ती प्रकरणः CBI कोर्ट में DGP रतूड़ी के दर्ज हुए बयान, मामले में 7 दरोगा हो चुके बर्खास्त

बताया जाता है कि नदी को पार करने के लिए पांडवों ने सरस्वती नदी से किनारा देने का आग्रह किया, लेकिन सरस्वती नदी ने किनारा न देने पर भीम क्रोधित हो गए और एक बड़ी शिला को खींचकर पुल का निर्माण कर दिया, जहा आज भी भीम के पैर के निशान मौजूद है. माणा गांव में बने भीम पुल के समीप ही सरस्वती नदी के लुत्फ होने की मान्यता भी भीम पुल से जुड़ी है, मान्यता है कि भीम क्रोधित होकर पुल के पास ही अपनी गदा को जमीन पर दे मारा था.

जिस वजह से सरस्वती नदी की धारा पाताल लोक की ओर चली गयी. यही वजह है कि भीम पुल से थोड़ी दूरी के बाद सरस्वती नदी कहीं दिखाई नहीं देती है. हालांकि कहा जाता है कि सरस्वती नदी यही से अलकनंदा नदी में मिल जाती है, लेकिन इनका संगम कहीं भी नहीं दिखाई देता है. आज इस पौराणिक पुल को देखने दूर-दूर से सैलानी और श्रद्धालु आते हैं. जिसे देखकर वे आश्चर्यचकित रह जाते हैं.

बता दें कि उत्तराखंड और भारत के अंतिम गांव माणा जोकि बदरीनाथ धाम से करीब 4 किलोमीटर आगे बसा हुआ है. हालांकि इस गांव में मात्र 60 परिवार निवास करते हैं. लेकिन माणा गाव से जुडी कई मान्यताओं के चलते हर सीजन में हजारो सैलानी, यहां की खूबसूरत वादियों और अद्भुत नजरों का लुत्फ उठाने आते है.

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड वो धरा है जहां देवों का वास माना जाता है, जो अन्य राज्यों से इसे अलग बनाती है. जो अपने आप में अद्भुत अविश्वसनीय और अकल्पनीय पौराणिक कथाओं को समेटे हुए हैं. जिसे जानकर हर कोई अचंभित और सोचने पर मजबूर हो जाता है. आज हम आपको ऐसे ही अकल्पनीय जगह से रूबरू कराने जा रहा हैं. जिसका पौराणिक इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. जो हजारों साल पुरानी अतीत की कहानी को अपने आपमें समेटे हुए हैं. जिसके बारे में आप जरूर जानना चाहेंगे.

देवभूमि में अद्भुत और निराला है ये देव स्थल.

जी हां हम बात कर रहे हैं बदरीनाथ धाम से 4 किलोमीटर दूर माणा गांव स्थित भीम पुल की. जिस शिला को बाहुबली भीम ने सरस्वती नदी को पार करने के लिए रखा था. जिसे स्थानीय लोग पुल कहते हैं. पौराणिक मान्यताओं की मानें तो इस पुल का निर्माण खुद भीम ने किया था. कहा जाता है कि महाभारत काल के बाद पांडव स्वर्ग की तलाश में निकले थे और पांडव माणा गांव से होते हुए ही स्वर्ग लोक को गए थे.

पढ़ें-दरोगा भर्ती प्रकरणः CBI कोर्ट में DGP रतूड़ी के दर्ज हुए बयान, मामले में 7 दरोगा हो चुके बर्खास्त

बताया जाता है कि नदी को पार करने के लिए पांडवों ने सरस्वती नदी से किनारा देने का आग्रह किया, लेकिन सरस्वती नदी ने किनारा न देने पर भीम क्रोधित हो गए और एक बड़ी शिला को खींचकर पुल का निर्माण कर दिया, जहा आज भी भीम के पैर के निशान मौजूद है. माणा गांव में बने भीम पुल के समीप ही सरस्वती नदी के लुत्फ होने की मान्यता भी भीम पुल से जुड़ी है, मान्यता है कि भीम क्रोधित होकर पुल के पास ही अपनी गदा को जमीन पर दे मारा था.

जिस वजह से सरस्वती नदी की धारा पाताल लोक की ओर चली गयी. यही वजह है कि भीम पुल से थोड़ी दूरी के बाद सरस्वती नदी कहीं दिखाई नहीं देती है. हालांकि कहा जाता है कि सरस्वती नदी यही से अलकनंदा नदी में मिल जाती है, लेकिन इनका संगम कहीं भी नहीं दिखाई देता है. आज इस पौराणिक पुल को देखने दूर-दूर से सैलानी और श्रद्धालु आते हैं. जिसे देखकर वे आश्चर्यचकित रह जाते हैं.

बता दें कि उत्तराखंड और भारत के अंतिम गांव माणा जोकि बदरीनाथ धाम से करीब 4 किलोमीटर आगे बसा हुआ है. हालांकि इस गांव में मात्र 60 परिवार निवास करते हैं. लेकिन माणा गाव से जुडी कई मान्यताओं के चलते हर सीजन में हजारो सैलानी, यहां की खूबसूरत वादियों और अद्भुत नजरों का लुत्फ उठाने आते है.

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देवभूमि उत्तराखंड के बदरीनाथ से 4 किलोमीटर की दूर पर स्तिथ माना गांव की प्रचलित कई कहानिया है। यू तो चीन की सीमा से लगे उत्तराखंड और भारत का ये आखिरी गांव है। और इस गांव का नाता महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। कहानिया प्रचलित है कि इस गांव से होते हुए ही पांडव स्वर्ग गए थे। हालांकि पांडवो का स्वर्ग की ओर जाने के दौरान हुई तमाम घटनाओ की कहानिया भी प्रचलित है, जिसमे एक कहानी माना गांव में स्थित भीम पुल की है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस पुल का निर्माण खुद भीम ने किया था। आखिर क्या है भीम पूल से जुडी पौराणिक मान्यताये? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट........


Body:सरस्वती नदी के ऊपर बना भीम पुल........ 

उत्तराखंड और भारत के अंतिम गांव माना जोकि बद्रीनाथ से करीब 4 किलोमीटर आगे बसा हुआ है। हलाकि इस गांव में मात्र 60 परिवार निवास करते है। लेकिन माना गाव से जुडी कई मान्यताओं के चलते हर सीजन में हजारो सैलानी, यहाँ की खूबसूरत वादियों और अद्भुत नज़रो का लुफ्त उठाने आते है। इसी में से एक है भीम पुल, जो अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। और यह पुल, माना गांव में सरस्वती नदी के ऊपर बना हुआ  है। इस पुल को  देखने से ऐसे प्रतीत होता है की दोनों तरफ से पहाड़ की शीला को रखकर यह पुल बनाया गया हो।  

बाइट - आचार्य शशिकांत दुबे, कथा वाचक 
बाइट - आशुतोष डिमरी, पुजारी, बद्रीनाथ मंदिर 


भीम ने बनाया था पुल........ 

पौराणिक मान्यताओं की माने तो इस पुल का निर्माण खुद भीम ने किया था। कहा जाता है कि द्वापर युग में महाभारत काल के बाद पांडव स्वर्ग की तलाश में निकले थे और पांडव माणा गांव से होते हुए ही स्वर्ग लोक को गए थे, लिहाजा बताया जाता है कि जब पांडव माना गांव से गुजर रहे थे तो वहां पूरे उफान से बह रही सरस्वती नदी को पार करने के लिए जब पांडव आगे बढ़े, तो वही द्रोपदी ने पूरे उफान से बह रही सरस्वती नदी को पार करने से मना कर दिया था, जिसके बाद नदी को पार करने के लिए पांडवों ने सरस्वती नदी से किनारा देने का आग्रह किया, लेकिन सरस्वती नदी ने किनारा न देने पर भीम क्रोधित हो गए और एक बड़ी शिला को खींचकर पुल का निर्माण कर दिया, जहा आज भी भीम के पैर के निशान मौजूद है। और ये निशान खुद इस बात को बयां कर रहे है कि भीम ने ही इस पुल का निर्माण किया था। जिस पुल को भीम पुल के नाम से जाना जाता है, हालांकि वह पुल अभी भी वहां मौजूद है।

बाइट - सुभाष जोशी, धर्माचार्य 



भीम पुल से जुडी है सरस्वती नदी के लुप्त होने की मान्यता..........

माना गांव में बने भीम पुल के समीप ही सरस्वती नदी के लुफ्त होने की मान्यता भी भीम पुल से जुड़ी है, मान्यता है कि भीम क्रोधित होकर पुल के पास ही अपनी गदा को जमीन पर दे मारा था। जिस वजह से सरस्वती नदी की धारा पताल लोक की ओर से चली गयी । और यही वजह है कि भीम पुल से थोड़ी दूरी के बाद सरस्वती नदी कहीं दिखाई नहीं देती है हालांकि कहा जाता है कि सरस्वती नदी यही से अलकनंदा नदी में मिल जाती है लेकिन इनका संगम कहीं भी दिखाई नहीं देता है। 


यही नहीं पौराणिक मान्यता यह भी है की द्वापर युग में जब वेदों का निर्माण किया जा रहा था, तो उस दौरान वेदव्यास वेदों की रचना कर रहे थे, और भगवान गणेश वेदों को लिख रहे थे। जब यह कार्य हो रहा था तो उस दौरान पास में ही बह रही सरस्वती नदी से बहुत शोर आ रहा था। जिस वजह से भगवान गणेश को वेदों को लिखने में दिक्कत हो रही थी, लिहाजा भगवान गणेश खुद, सरस्वती नदी से प्रार्थना किया कि वह अपनी उफान को कम कर ले जिससे शोर कम होगा, जिससे वह वेदों को लिख पाएंगे। लेकिन सरस्वती नदी द्वारा भगवान गणेश की प्रार्थना न सुनने पर भगवान गणेश क्रोधित हो गए और सरस्वती नदी को श्राप दे दिया कि यहां तो तुम दिख रही हो, और  यहां से आगे तुम किसी को दिखाई नहीं दोगी।  और यह भी वजह माना जाता है कि गणेश जी के श्राप  से सरस्वती नदी वहां से आगे लुप्त हो गई।


बाइट - सुभाष जोशी, धर्माचार्य 




Conclusion:
Last Updated : Sep 1, 2019, 3:31 PM IST
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