देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग इन दिनों एक बड़ी चुनौती से गुजर रहा है. यह चुनौती जंगलों में लगी आग पर नियंत्रण करने की है. मगर मौजूदा हालातों के बीच भी वन विभाग में अधिकारी आपसी गुटबाजी में इतने मशगूल हैं कि वह तमाम मामलों में विभाग की छवि खराब करने से भी नहीं चूक रहे हैं. ये सब बातें मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेएस सुहाग का वह पत्र कह रहा है, जिसमें विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विभाग की छवि खराब करने की सीधे तौर पर बात लिखी गई है.
यूं तो शासन में आईएएस अधिकारियों के बीच नूरा-कुश्ती के कई मामले अब तक सामने आते रहे हैं, यह हालात केवल शासन स्तर तक ही सीमित नहीं हैं. उत्तराखंड वन विभाग में आईएफएस अधिकारियों की खींचतान इस कदर विभाग पर हावी है कि वनाग्नि जैसे कठिन समय में भी अधिकारी एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
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ताजा मामला कैंपा के तहत वन प्रहरी की नियुक्ति से जुड़ा हुआ है. दरअसल, उत्तराखंड के वन मंत्री ने राज्य में 10 हजार वन प्रहरियों की नियुक्ति कैंपा फंड के तहत करने के प्रयास किए हैं. इससे न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल पाएगा. बल्कि वन्य जीव और इंसानों के बीच बढ़ते तनाव और जंगलों में आग की घटनाओं को भी काबू पाने में मदद मिल पाएगी.
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हालांकि, इसके तहत केंद्र से प्रस्ताव को मंजूरी के साथ बजटीय आवंटन के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इस विषय पर आईएफएस अधिकारी न केवल अपने ही विभाग को बदनाम कर रहे हैं, बल्कि इन प्रयासों पर पलीता लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं. यह सब हम नहीं बल्कि अपर प्रमुख वन संरक्षक और कैंपा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेएस सुहाग का वह पत्र कह रहा है, जिसमें विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विभाग की छवि खराब करने की सीधे तौर पर बात लिखी गई है.
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वन विभाग में आईएफएस अधिकारियों की यह नूरा कुश्ती वनाग्नि की घटनाओं के दौरान चलना वाकई गंभीर विषय है. इन अधिकारियों को तालमेल के साथ काम करने का संदेश दे रहे वन मंत्री भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि विभाग में अधिकारियों में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. वन मंत्री हरक सिंह रावत कहते हैं कि उन्होंने अधिकारियों को बुलाकर मिलकर टीम भावना से काम करने के लिए कहा है, उम्मीद है कि अधिकारी ऐसा ही करेंगे.