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देहरादून से गायब हो रही बासमती की महक! आशीष कर रहे खेती, जानिए क्यों मंडराया चावल पर संकट - Basmati Rice Farming

Basmati Rice Farming in Dehradun एक दौर था, जब देहरादून की सबसे बड़ी पहचान यहां की बासमती चावल थी. देहरादून के बासमती की खासियत ये थी कि जब किसी मोहल्ले में यह चावल पकाई जाती है तो इसकी महक से पूरे मोहल्ले में इसके बनने का अहसास हो जाता है, लेकिन आज यह चावल करीबन खेतों से गायब सा हो गया है. बहरहाल, इस समय देहरादून की इस बासमती का बाजार में क्या स्थिति है? आइए जानते हैं...

Dehradun Basmati Rice
देहरादून की बासमती चावल
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 14, 2024, 2:09 PM IST

Updated : Jan 14, 2024, 5:32 PM IST

बासमती चावल की खेती कर रहे आशीष राजवंशी

देहरादून: कभी देहरादून में डोईवाला से लेकर सहसपुर और विकासनगर तक तकरीबन 50 किलोमीटर की बेल्ट में मशहूर बासमती चावल उगाया जाता था. यह चावल पूरी दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखा था, लेकिन अब बीतते दिनों के साथ दून घाटी कंक्रीट में तब्दील होती जा रही है. जिसके चलते दून घाटी का 50 फीसदी से ज्यादा कृषि क्षेत्र खत्म हो चुका है. ऐसे में इसी बचे हुए कृषि क्षेत्र के नाम मात्र जगहों पर बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है.

देहरादून की बासमती आज बाजार में दुर्लभ होती जा रही है. दुर्लभ होती जा रही देहरादून की इस बासमती को बाजार में जिंदा रखने का काम कर गिने चुने लोग ही कर रहे हैं. जिनमें देहरादून के आशीष राजवंशी शामिल हैं. आशीष बताते हैं कि आज देहरादून की बासमती के नाम को हरियाणा और पंजाब के लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके साथ इस चावल की क्वालिटी भी आज खराब हो रही है. चावल की खेती लगातार कम होती जा रही है.

Dehradun Basmati Rice
बासमती चावल की खेती

सिमट रहा देहरादून में बासमती उत्पादन का क्षेत्र: देहरादून की बासमती चावल को इंटरनेशनल मार्केट के लिए तैयार कर रहे आशीष राजवंशी ने बताया कि देहरादून में बासमती उगाना उनका पारंपरिक व्यवसाय है. वो बीते 40 सालों से विशुद्ध रूप से देहरादून में बासमती के उत्पादन का कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके सामने आज बासमती उत्पादन का कृषि क्षेत्र सिमटता जा रहा है.

उन्होंने कोरोनाकाल के बाद अपने इस पारंपरिक उत्पाद की मार्केटिंग शुरू की. उन्होंने बताया कि आज जितना भी उपलब्ध हो पाता है, वो इसे ऑल ओवर इंडिया में सप्लाई कर रहे हैं. जो इस बासमती चावल की परख रखता है, उसको इसकी अहमियत पता है. यही वजह है कि आज उनके चावल के अच्छे ग्राहक मार्केट में मौजूद हैं.
ये भी पढ़ेंः खेतों से गायब हुई देहरादून की विश्व प्रसिद्ध बासमती, अफगानिस्तान से रहा है कनेक्शन

अफगानिस्तान से आया बासमती, दून में आकर हो गया खास: बताया जाता है कि जब भारत संयुक्त रूप से एक था तो उस समय अफगानिस्तान के कुछ शासक देहरादून आए थे. वो अपने साथ अफगानिस्तान से बासमती के कुछ बीज भी लेकर आए थे. उन्होंने ही दून घाटी में पहली बार बासमती चावल को उगाया था. जो धीरे-धीरे पूरे दून घाटी में फैल गया.

बासमती का उत्पादन करने वाले आशीष राजवंशी बताते हैं कि देहरादून का यह बासमती इसलिए अपनी एक अलग विशेष पहचान रखता है. क्योंकि, यह पूरी तरह से नदी के पानी में उगाया जाता है. यानी दून घाटी के दोनों तरफ बहने वाली गंगा और यमुना से सिंचित भूमि पर ही देहरादून की बासमती की पैदावार की जाती है.

Dehradun Basmati Rice
अपने खेत में आशीष राजवंशी

देहरादून की बासमती चावल के स्वाद की पीछे की वजह: इसकी विशेषता ये है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र से आने वाले नदियों के साथ बहाकर आने वाले खनिज तत्वों से सिंचित जल में उगाई जाती है. इसलिए इसका स्वाद और गुण अपने आप में खास होता है. दून घाटी से बाहर हरियाणा और पंजाब क्षेत्र में सिंचाई भूमिगत जल से आपूर्ति की जाती है, जिस वजह से वहां पर देहरादून की बासमती का मुकाबला नहीं हो पता है.

एक्सपोर्ट के लिए पर्याप्त नहीं देहरादून का बासमती, सिर्फ 10 टन होता है सालाना उत्पादन: बासमती चावल उत्पादक आशीष राजवंशी बताते हैं कि प्रोक्योरमेंट के नाम पर देहरादून में बासमती ना के बराबर है. सालाना 10 टन ही उत्पादन कर पा रहे हैं. इस तरह से सालाना उत्पादन होने वाला 10 टन बासमती चावल पहले ही घरेलू बाजार में खप जाता है.

उन्होंने बताया कि वो ₹200 प्रति किलो के हिसाब से इसे बेचते हैं. उसके बाद इसे ₹200 से ऊपर तकरीबन 500 से लेकर 600 रुपए तक रिटेल कंपनी मार्केट में इसे बेच रही है. आशीष बताते हैं कि आज जमीन सारी बिक चुकी है और जमीनों पर निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः पुरोला में ग्लोबल वॉर्मिंग से कम हुआ लाल चावल का उत्पादन, कैंसर और मधुमेह के रोगियों के लिए है रामबाण

ऐसे में कृषि योग्य भूमि ना होने के चलते देहरादून की बासमती का इतना उत्पादन नहीं हो पा रहा है कि उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक्सपोर्ट किया जा सके. यही वजह है कि यह बासमती आज बाजार में दुर्लभ होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि देहरादून की जमीनों का इसी तरह से खुद बुर्द होता रहा तो आज से 4 या 5 साल बाद देहरादून का बासमती केवल नाम के लिए रह जाएगा.

Dehradun Basmati Rice
बासमती चावल

विदेश में एक्सपोर्ट के लिए 25 टन की होती है जरूरत, यहां हो रहा 10 टन का उत्पादन: वहीं, डीएमएन इंटरप्राइजेज के प्रतिनिधि ने बताया कि आज उत्तराखंड के प्रोडक्ट की अंतरराष्ट्रीय मार्केट में काफी ज्यादा डिमांड है. देहरादून के बासमती की अपनी विशेष खासियत है. उन्हें यह काफी पसंद है, लेकिन एक्सपोर्ट की बात की जाए तो एक बार में एक्सपोर्ट करने के लिए कम से कम एक कंटेनर यानी 25 टन की जरूरत होती है, लेकिन उसे मुताबिक अभी इसका उत्पादन यहां पर नहीं हो पा रहा है.

बासमती चावल की खेती कर रहे आशीष राजवंशी

देहरादून: कभी देहरादून में डोईवाला से लेकर सहसपुर और विकासनगर तक तकरीबन 50 किलोमीटर की बेल्ट में मशहूर बासमती चावल उगाया जाता था. यह चावल पूरी दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखा था, लेकिन अब बीतते दिनों के साथ दून घाटी कंक्रीट में तब्दील होती जा रही है. जिसके चलते दून घाटी का 50 फीसदी से ज्यादा कृषि क्षेत्र खत्म हो चुका है. ऐसे में इसी बचे हुए कृषि क्षेत्र के नाम मात्र जगहों पर बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है.

देहरादून की बासमती आज बाजार में दुर्लभ होती जा रही है. दुर्लभ होती जा रही देहरादून की इस बासमती को बाजार में जिंदा रखने का काम कर गिने चुने लोग ही कर रहे हैं. जिनमें देहरादून के आशीष राजवंशी शामिल हैं. आशीष बताते हैं कि आज देहरादून की बासमती के नाम को हरियाणा और पंजाब के लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके साथ इस चावल की क्वालिटी भी आज खराब हो रही है. चावल की खेती लगातार कम होती जा रही है.

Dehradun Basmati Rice
बासमती चावल की खेती

सिमट रहा देहरादून में बासमती उत्पादन का क्षेत्र: देहरादून की बासमती चावल को इंटरनेशनल मार्केट के लिए तैयार कर रहे आशीष राजवंशी ने बताया कि देहरादून में बासमती उगाना उनका पारंपरिक व्यवसाय है. वो बीते 40 सालों से विशुद्ध रूप से देहरादून में बासमती के उत्पादन का कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके सामने आज बासमती उत्पादन का कृषि क्षेत्र सिमटता जा रहा है.

उन्होंने कोरोनाकाल के बाद अपने इस पारंपरिक उत्पाद की मार्केटिंग शुरू की. उन्होंने बताया कि आज जितना भी उपलब्ध हो पाता है, वो इसे ऑल ओवर इंडिया में सप्लाई कर रहे हैं. जो इस बासमती चावल की परख रखता है, उसको इसकी अहमियत पता है. यही वजह है कि आज उनके चावल के अच्छे ग्राहक मार्केट में मौजूद हैं.
ये भी पढ़ेंः खेतों से गायब हुई देहरादून की विश्व प्रसिद्ध बासमती, अफगानिस्तान से रहा है कनेक्शन

अफगानिस्तान से आया बासमती, दून में आकर हो गया खास: बताया जाता है कि जब भारत संयुक्त रूप से एक था तो उस समय अफगानिस्तान के कुछ शासक देहरादून आए थे. वो अपने साथ अफगानिस्तान से बासमती के कुछ बीज भी लेकर आए थे. उन्होंने ही दून घाटी में पहली बार बासमती चावल को उगाया था. जो धीरे-धीरे पूरे दून घाटी में फैल गया.

बासमती का उत्पादन करने वाले आशीष राजवंशी बताते हैं कि देहरादून का यह बासमती इसलिए अपनी एक अलग विशेष पहचान रखता है. क्योंकि, यह पूरी तरह से नदी के पानी में उगाया जाता है. यानी दून घाटी के दोनों तरफ बहने वाली गंगा और यमुना से सिंचित भूमि पर ही देहरादून की बासमती की पैदावार की जाती है.

Dehradun Basmati Rice
अपने खेत में आशीष राजवंशी

देहरादून की बासमती चावल के स्वाद की पीछे की वजह: इसकी विशेषता ये है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र से आने वाले नदियों के साथ बहाकर आने वाले खनिज तत्वों से सिंचित जल में उगाई जाती है. इसलिए इसका स्वाद और गुण अपने आप में खास होता है. दून घाटी से बाहर हरियाणा और पंजाब क्षेत्र में सिंचाई भूमिगत जल से आपूर्ति की जाती है, जिस वजह से वहां पर देहरादून की बासमती का मुकाबला नहीं हो पता है.

एक्सपोर्ट के लिए पर्याप्त नहीं देहरादून का बासमती, सिर्फ 10 टन होता है सालाना उत्पादन: बासमती चावल उत्पादक आशीष राजवंशी बताते हैं कि प्रोक्योरमेंट के नाम पर देहरादून में बासमती ना के बराबर है. सालाना 10 टन ही उत्पादन कर पा रहे हैं. इस तरह से सालाना उत्पादन होने वाला 10 टन बासमती चावल पहले ही घरेलू बाजार में खप जाता है.

उन्होंने बताया कि वो ₹200 प्रति किलो के हिसाब से इसे बेचते हैं. उसके बाद इसे ₹200 से ऊपर तकरीबन 500 से लेकर 600 रुपए तक रिटेल कंपनी मार्केट में इसे बेच रही है. आशीष बताते हैं कि आज जमीन सारी बिक चुकी है और जमीनों पर निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः पुरोला में ग्लोबल वॉर्मिंग से कम हुआ लाल चावल का उत्पादन, कैंसर और मधुमेह के रोगियों के लिए है रामबाण

ऐसे में कृषि योग्य भूमि ना होने के चलते देहरादून की बासमती का इतना उत्पादन नहीं हो पा रहा है कि उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक्सपोर्ट किया जा सके. यही वजह है कि यह बासमती आज बाजार में दुर्लभ होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि देहरादून की जमीनों का इसी तरह से खुद बुर्द होता रहा तो आज से 4 या 5 साल बाद देहरादून का बासमती केवल नाम के लिए रह जाएगा.

Dehradun Basmati Rice
बासमती चावल

विदेश में एक्सपोर्ट के लिए 25 टन की होती है जरूरत, यहां हो रहा 10 टन का उत्पादन: वहीं, डीएमएन इंटरप्राइजेज के प्रतिनिधि ने बताया कि आज उत्तराखंड के प्रोडक्ट की अंतरराष्ट्रीय मार्केट में काफी ज्यादा डिमांड है. देहरादून के बासमती की अपनी विशेष खासियत है. उन्हें यह काफी पसंद है, लेकिन एक्सपोर्ट की बात की जाए तो एक बार में एक्सपोर्ट करने के लिए कम से कम एक कंटेनर यानी 25 टन की जरूरत होती है, लेकिन उसे मुताबिक अभी इसका उत्पादन यहां पर नहीं हो पा रहा है.

Last Updated : Jan 14, 2024, 5:32 PM IST
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