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देहरादून: हरेला को लेकर BJP ने अरविंद पांडे को दी ये बड़ी जिम्मेदारी

प्रदेश में चल रहे हरेला पखवाड़ा के लिए बीजेपी ने अरविंद पांडे को जिम्मेदारी दी है. अरविंद पांडे के इस कार्यक्रम का प्रदेश संयोजक बनाया गया है.

Arvind Pandey appointed as state convener of Harela Pakhwada
हरेला पखवाड़ा के प्रदेश संयोजक बनाये गये अरविंद पांडे
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Published : Jul 3, 2022, 10:19 PM IST

देहरादून: प्रदेश के 13 जिलों में 23 जून से 16 जुलाई तक हरेला पखवाड़ा मनाया जा रहा है. इसके लिए पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे को बीजेपी ने प्रदेश संयोजक बनाया है. गदरपुर विधायक अरविंद पांडे हरेला पखवाड़ा की कार्य योजना के साथ-साथ इससे जुड़ी गतिविधियों की रूपरेखा तैयार करेंगे.

हरेला पर्व कार्यक्रम के प्रदेश संयोजक अरविंद पांडेय ने कहा कि प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए पूरे प्रदेश में कार्यक्रम करेंगे. साथ ही उन्होंने कहा हरेला पर्व को लेकर भाजपा पूरे राज्य में पौधारोपण अभियान चलाएगी. बता दें पहाड़ में हरेला पर पौधरोपण करने प्रथा सदियों पुरानी है, मान्यता है कि इस दिन रोपा गया एवं कलम किए गए पौधे जल्द वृद्धि करते हैं.

पढ़ें: हरेला पर्व कार्यक्रम में सीएम धामी हुए शामिल, लोगों से पौधरोपण की अपील

हरेला के साथ ही सावन का महीना शुरू हो जाता है. हरेला पर्व से 9 दिन पहले घर के मंदिर में कई प्रकार का अनाज टोकरी में बोया जाता है और माना जाता है कि टोकरी में अगर भरभरा कर अनाज उगा है तो इस बार की फसल अच्छी होगी. हरेला पर्व के दिन मंदिर की टोकरी में बोया गया अनाज काटने से पहले कई पकवान बनाकर देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है, जिसके बाद पूजा की जाती है. घर-परिवार के सदस्यों को हरेला (अंकुरित अनाज) शिरोधरण कराया जाता है.

हरेला पर्व हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति का प्रतीक है. उत्तराखंड में बेटियों को मायके से खुशहाली के रूप में हरियाली भेजने की परंपरा है. इस प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विविधता के संवर्धन एवं सुवर्धन के लिए हर बार प्रयास किये जाते हैं.उत्तराखण्ड के लोगों के सावन माह की शुरुआत से हरेला मनाते हैं. दरअसल हरेला का पर्व नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है. वहीं सावन मास के हरेले का महत्व उत्तराखण्ड में इसलिए बेहद महत्व है, क्योंकि देव भूमि को देवों के देव महादेव का वास भी कहा जाता है.

हरियाली से बना है हरेला: आम तौर पर हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है. हरेले के पर्व से नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मन्दिर में या ग्राम के मन्दिर के भीतर सात प्रकार के अन्न (जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में रोपित कर दिया जाता है. इसके लिये एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है, पहले रिंगाल की टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं. उसके बादफिर से मिट्टी डाली जाती है, फिर से बीज डाले जाते हैं, यही प्रक्रिया पांच-छह बार अपनाई जाती है.

देहरादून: प्रदेश के 13 जिलों में 23 जून से 16 जुलाई तक हरेला पखवाड़ा मनाया जा रहा है. इसके लिए पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे को बीजेपी ने प्रदेश संयोजक बनाया है. गदरपुर विधायक अरविंद पांडे हरेला पखवाड़ा की कार्य योजना के साथ-साथ इससे जुड़ी गतिविधियों की रूपरेखा तैयार करेंगे.

हरेला पर्व कार्यक्रम के प्रदेश संयोजक अरविंद पांडेय ने कहा कि प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए पूरे प्रदेश में कार्यक्रम करेंगे. साथ ही उन्होंने कहा हरेला पर्व को लेकर भाजपा पूरे राज्य में पौधारोपण अभियान चलाएगी. बता दें पहाड़ में हरेला पर पौधरोपण करने प्रथा सदियों पुरानी है, मान्यता है कि इस दिन रोपा गया एवं कलम किए गए पौधे जल्द वृद्धि करते हैं.

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हरेला के साथ ही सावन का महीना शुरू हो जाता है. हरेला पर्व से 9 दिन पहले घर के मंदिर में कई प्रकार का अनाज टोकरी में बोया जाता है और माना जाता है कि टोकरी में अगर भरभरा कर अनाज उगा है तो इस बार की फसल अच्छी होगी. हरेला पर्व के दिन मंदिर की टोकरी में बोया गया अनाज काटने से पहले कई पकवान बनाकर देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है, जिसके बाद पूजा की जाती है. घर-परिवार के सदस्यों को हरेला (अंकुरित अनाज) शिरोधरण कराया जाता है.

हरेला पर्व हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति का प्रतीक है. उत्तराखंड में बेटियों को मायके से खुशहाली के रूप में हरियाली भेजने की परंपरा है. इस प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विविधता के संवर्धन एवं सुवर्धन के लिए हर बार प्रयास किये जाते हैं.उत्तराखण्ड के लोगों के सावन माह की शुरुआत से हरेला मनाते हैं. दरअसल हरेला का पर्व नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है. वहीं सावन मास के हरेले का महत्व उत्तराखण्ड में इसलिए बेहद महत्व है, क्योंकि देव भूमि को देवों के देव महादेव का वास भी कहा जाता है.

हरियाली से बना है हरेला: आम तौर पर हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है. हरेले के पर्व से नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मन्दिर में या ग्राम के मन्दिर के भीतर सात प्रकार के अन्न (जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में रोपित कर दिया जाता है. इसके लिये एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है, पहले रिंगाल की टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं. उसके बादफिर से मिट्टी डाली जाती है, फिर से बीज डाले जाते हैं, यही प्रक्रिया पांच-छह बार अपनाई जाती है.

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