पन्ना: आज तक आपने श्रीराम से जुड़े कई मंदिरों-धर्मिक स्थलों के बारे में सुना होगा. पर आज आपको ऐसे स्थान से रूबरू करा रहे हैं. जहां राम ने अपने वनवास का लंबा समय बिताया था. जिसकी कई निशानियां आज भी वहां मौजूद है, जिसे देखकर कोई भी हैरान रह जाता है.
विंध्याचल पर्वत मालाओं के बीच घने जंगल के बीच स्थित सिद्ध आश्रम वो स्थान है, जहां प्रभु श्रीराम की मुलाकात अगस्त्य मुनि से हुई थी. बात कर रहे हैं पन्ना जिले में स्थित अगस्त्य मुनि के सिद्धनाथ आश्रम की. जहां श्रीराम ने रावण जैसे आतातायी के वध का प्रण किया था.
चित्रकूट में 12 वर्ष का समय बिताने के बाद जब श्रीराम अपने वनवास पर आगे बढ़े. तब सीधे अगस्त्य मुनि के आश्रम पहुंचे. पन्ना जिले में स्थित इस स्थान का जिक्र वाल्मीकि और तुलसीकृत रामायण में भी मिलता है. घने जंगल और विध्याचंल पर्वत मालाओं से घिरा सिद्धनाथ आश्रम का रास्ता दुर्गम पाहाड़ियों के बीच से गुजरता है. अगस्त्य मुनि के शिष्य सुतिक्ष्ण ऋषि प्रभु श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण को अपने साथ लेकर यहां पहुंचे थे.
- सुनत अगस्त्य तुरतहीं उठी धाये. हरि बिलोकि लोचन जल छाए।।
- मुनि पद कमल परे दोऊ भाई। ऋषि अति प्रीति लिए उर लाई।।
जब श्रीराम सिद्धनाथ आश्रम पहुंचे, उस वक्त अगस्त्य मुनि तपस्या में लीन थे. सुतीक्ष्ण मुनि ने कहा गुरुदेव आंखे खोलिए और देखिए. आश्रम में ठाकुर जी पधारे हैं. जिसके पीछे भी एक कथा प्रचलित है कि अगस्त्य मुनि सुतिक्ष्ण जी से किसी बात से नाराज होकर उन्हें ये कहते हुए आश्रम से बाहर कर दिया था कि यहां तभी आना, जब मेरे ठाकुर जी साथ हों. यही वजह थी की रामजी पहले सुतिक्ष्ण जी के पास पहुंचे और उनके साथ अगस्त्य मुनि से मिले.
वर्षों की तपस्या के बाद अगस्त्य मुनि ने जब अपने प्रभु को सामने देखा तो उनकी आंखों में आनंद-प्रेम के आंसुओं का सैलाब उमड़ आया. ऋषि भेष में दोनों भाइयों ने अगस्त्य मुनि को दडंवत प्रणाम किया तो मुनि ने दोनों को अपने ह्रदय से लगा लिया.
- अब सोई मंत्र देहू दुज मोही, जिस प्रकार मारू सुरद्रोही
अगस्त्य मुनि के प्रेम से भावविभोर होकर प्रभु श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण के साथ लंबे समय तक उनकी सेवा की और अगस्त्य मुनि से रावण वध का वरदान मांगा. तब अगस्त्य मुनि ने अपने अस्त्र-शस्त्रों का भंडार खोलते हुए श्रीराम और लक्ष्मण को सारे दिव्यास्त्र सौंप दिये. जिसके सहारे राम ने रावण का वध किया.
इस आश्रम में पहुंचकर शांति का अलग ही एहसास होता है. जहां आज भी प्रभु श्रीराम के आगमन के चिह्न मौजूद हैं. सिद्धनाथ आश्रम में वनवासी श्रीराम की धनुष लिए हुये विशाल प्रतिमा. हनुमाजी की प्रतिमा, अगस्त्य मुनि की तपस्या की कुटिया के साथ ही मंदिर की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना लोगों को भाव विभोर कर देता है. जहां पहुंचते ही इंसान के मुंह से केवल इतना ही निकलता है.